जब बेटियों ने मां की अर्थी को दिया कंधा और चिता को दी मुखाग्नि,मौजूद लोगों की आंखें भर आई
दुर्ग। छत्तीसगढ़ के दुर्ग में परंपराओं को तोड़कर बेटियों ने एक नई परंपरा बनाई। बेटियों ने भी बेटों की ही तरह अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाई। मां की मृत देह को सजा धजाकर अंतिम यात्रा के लिए तैयार किया। मां को कंधे पर उठाकर सद्गति दी.. मुखाग्नि दी। यह देखकर मौजूद लोगों की आंखें भर आई। बेटियों ने मां को पूरे रस्मों रिवाज के साथ अंतिम विदाई दी।
भारतीय परंपरा के मुताबिक बेटे ही माता-पिता को मुखाग्नि देते रहे हैं, लेकिन अब यह परंपरा टूट चुकी है। यह सवाल भी पीछे छूट चुका है कि बेटे के बिना माता-पिता को मुखाग्नि कौन देगा, लेकिन अब यह बातें बीते जमाने की हो गई। दुर्ग की राजपूत बहनों ने अपनी मां को मुखाग्नि देकर समाज में एक मिसाल पेश की। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर निकिता और मुक्ता द्वारा पेश किए उदाहरण से बड़ा और कुछ नहीं हो सकता।
रविवार को जहां एक ओर देश और दुनिया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहा था, तो दूसरी ओर कादंबरी नगर दुर्ग की दो बहनें निकिता राजपूत और मुक्ता राजपूत रुढ़ीवादी परंपरा को तोड़कर एक नई परंपरा गढ़ रही थी। निकिता और मुक्ता ने मां को रविवार को मुखाग्नि दी। दोनों बहनों ने समाज की पुरानी कुरीति को तोड़ते हुए बराबरी का संदेश दिया। दोनों ने मिलकर संयुक्त रूप से हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार मां को अंतिम विदाई दी।
एक तरफ देशभर में महिला दिवस धूमधाम से मनाने की तैयारी चल रही थी तो वहीं दूसरी तरफ कादंबरी नगर निवासी दिलीप राजपूत के घर में मातम पसरा था। दिलीप की पत्नी मंजू राजपूत का शनिवार-रविवार की दरमियानी रात ढाई बजे देहांत हो गया। चार सदस्यीय दिलीप के परिवार में केवल दो बेटियां निकिता और मुक्ता ही हैं। दिलीप के रिश्तेदार और चित-परिचितों में चिंता थी कि मंजू को मुखाग्नि कौन देगा।
दिलीप की केवल दो ही बेटियां है। ऐसे वक्त पर दोनों बेटियां खड़ी हुई। परिवार व परिचितों की चिंता दूर की। कहा मां ने सारा जीवन हमारे लिए होम कर दिया। आज परंपराओं को तोड़कर उनको ससस्मान अंतिम विदाई देने की जिम्मेदारी हमारी है। उनकी दोनों ही बेटियों ने मां को मुखाग्नि दी। मंजू की अंतिम यात्रा कादंबरी नगर निवास से निकली तो लोग भावुक हो गए। बेटियों के कंधे में मां की अर्थी देख लोगों की आंखें भींग आई। (चित्र : प्रतीकात्मक )