मानवता पर वैश्विक संकट : कोरोना वायरस के बाद की दुनिया
मानवता इस समय एक वैश्विक संकट से जूझ रही है. शायद हमारी पीढ़ी का यह सबसे बड़ा संकट है. अगले कुछ सप्ताहों में आम लोग और सरकारें जिस तरह की निर्णय लेंगी वह शायद यह तय करेगा कि आने वाले वर्षों में दुनिया की तक़दीर कैसी होगी. ये न केवल हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को नया आकार देगा बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था, राजनीति और संस्कृति को भी नए तरह से गढ़ेगा. हमारे लिए शीघ्रता से और निर्णायक रूप से क़दम उठाना बहुत ज़रूरी है. हमें अपने निर्णयों के दीर्घकालिक परिणाम को ध्यान में रखना होगा. जब हम विकल्पों का चुनाव करें तो ख़ुद से सिर्फ़ यही न पूछें कि इस ख़तरे से कैसे निपटा जाए बल्कि यह भी कि इस आपदा के गुज़र जाने के बाद हम किस तरह की दुनिया में रह रहे होंगे. हां, यह तूफ़ान भी एक दिन थमेगा, मानवता बची रहेगी, हम में से अधिकांश अगले दिन के सूरज को देखने के लिए बचे रहेंगे– लेकिन यह दुनिया बदल गई होगी.
कई तात्कालिक आपातकालीन क़दम जीवन का अहम हिस्सा बन जाएंगे. लेकिन आफ़त होती ही ऐसी है. वह ऐतिहासिक प्रक्रिया को बहुत तेज़ी से आगे बढ़ा देती है. सामान्य दिनों में जिस निर्णय को लेने में वर्षों लग जाते हैं उसे घंटों में ले लिया जाता है. कई बार ऐसी तकनीकों का सहारा लिया जाता है जो उपयुक्त नहीं होते हैं या यहां तक कि ख़तरनाक भी होते हैं क्योंकि कुछ नहीं करने का जोखिम बहुत बड़ा होता है. बड़े पैमाने पर होने वाले सामाजिक प्रयोगों का पूरा देश गिनी पिग की तरह निशाना बन जाता है. जब सारे लोग घर से काम करते हैं और एक-दूसरे से दूरी रखते हुए संवाद करते हैं तो क्या होता है? क्या होता है जब सारे स्कूल और विश्वविद्यालय ऑनलाइन हो जाते हैं? सामान्य समय में, सरकारें, व्यवसाय और शैक्षिक बोर्ड्ज़ इस तरह के प्रयोगों के लिए सहमत नहीं होंगे. लेकिन यह सामान्य समय भी तो नहीं है.
महामारी को रोकने के लिए संपूर्ण जनसंख्या को कुछ दिशानिर्देशों का पालन करने की ज़रूरत है. ऐसा मुख्यतः दो तरीक़े से किया जा सकता है. एक तरीक़ा है कि सरकार लोगों की निगरानी करे और उन लोगों को सज़ा दे जो नियम को तोड़ते हैं. आज, मानव इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि तकनीक की वजह से सभी लोगों पर एक साथ हर समय निगरानी संभव है. पचास साल पहले, केजीबी अपने 24 करोड़ लोगों की 24 घंटे निगरानी नहीं कर पाता था और न ही केजीबी की यह क्षमता थी कि वह प्राप्त की गई सभी सूचनाओं को एक साथ प्रभावी रूप से संभाल सके. केजीबी को मानव एजेंटों और विश्लेषकों पर निर्भर रहना पड़ता था और उसके लिए यह संभव नहीं था कि वह वह हर नागरिक की निगरानी के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति कर दे. पर अब सरकारें हाड़-मांस के बने किसी जासूस की अपेक्षा अचूक सेंसरों और शक्तिशाली गणनाओं पर भरोसा कर सकती हैं.
आप यह कह सकते हैं कि इन बातों में कुछ भी नया नहीं है. हाल के वर्षों में सरकारें और निगम लोगों की निगरानी, उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने और उनको मैनिपुलेट करने के लिए उन्नत तकनीकों का प्रयोग करने लगी हैं. और अगर हम सावधान नहीं रहे, तो यह महामारी निगरानी के इतिहास में एक बहुत बड़ा मोड़ साबित हो सकती है. सिर्फ़ इसलिए नहीं कि अब तक इनकी मदद लेने से इंकार करने वाले देश अब सामान्य रूप से इनका प्रयोग करेंगे बल्कि इसलिए कि पहले जो निगरानी गुपचुप तरीक़े से होता था, अब खुलेआम होगा.
अभी तक तो जब हमारी उंगलियां हमारे स्मार्टफ़ोन की स्क्रीन को छूती थीं और किसी लिंक पर क्लिक करती थीं, तो सरकारें यह जानने का प्रयास करतीं कि हमारी उंगलियां किस तरह की लिंक को क्लिक करती हैं. पर अब कोरोना वायरस के फैलने के बाद, दिलचस्पी का क्षेत्र बदल गया है. अब सरकारें आपकी उंगलियों का तापमान और उसकी चमड़ी के नीचे ब्लड-प्रेसर के बारे में जानना चाहती हैं.
आपातकाल की खिचड़ी
अब इसका घाटा यह है कि यह एक बहुत ही ख़ौफ़नाक निगरानी व्यवस्था को वैध बना देगा. उदाहरण के लिए, मैंने सीएनएन लिंक पर क्लिक नहीं करके फ़ॉक्स न्यूज़ के एक लिंक पर क्लिक किया और यह आपको मेरे राजनीति विचारों और शायद यहां तक कि मेरे व्यक्तित्व के बारे में भी आपको बहुत कुछ बता देता है. पर जब मैं इस वीडियो क्लिप को देखता हूं उस दौरान अगर आप हमारे शरीर के तापमान, ब्लड-प्रेसर, और हृदय-गति की निगरानी कर सकते हैं, तो आपको पता चल सकता है कि मैं किस बात पर हंसता हूं, किस बात पर रोता हूं और किस बात पर मैं ग़ुस्सा हो जाता हूं.
आप यह कह सकते हैं कि बायोमेट्रिक निगरानी सिर्फ़ आपातकालिक दौर के लिए है. एक बार जब आपातकालीन स्थिति समाप्त हो जाती है तो इसे समाप्त कर दिया जाएगा. लेकिन अस्थाई क़दम के साथ सबसे ख़तरनाक बात यह है कि यह आपातकाल से भी ज़्यादा ख़तरनाक होता है विशेषकर इस वजह से क्योंकि एक न एक आपातकाल तो हमेशा मंडराता रहता है. उदाहरण के लिए, मेरे देश इस्राइल ने 1948 की आज़ादी की लड़ाई के दौरान आपातकाल घोषित कर दिया और इसमें प्रेस पर प्रतिबंध और ज़मीन की ज़ब्ती से लेकर खिचड़ी बनाने तक के बारे में विशेष नियम बनाए (आप इसे मज़ाक़ मत समझिए) और इन क़दमों को उचित ठहराया. आज़ादी की लड़ाई कब की जीत ली गई पर इजराइल ने आज तक आपातकाल के समाप्त होने की घोषणा नहीं की और और 1948 में उसने जो ‘अस्थाई’ क़दम उठाए थे उनमें से कई को समाप्त करने की घोषणा आज तक नहीं की है (शुक्र है कि खिचड़ी के बारे में आपातकाल की घोषणा को 2011 में समाप्त कर दिया गया).
अगर कोरोना वायरस से होने वाला संक्रमण शून्य तक नीचे आ जाता है तब भी आंकड़ों के भूखे कुछ देश यह दलील देंगे कि उन्हें निगरानी व्यवस्था को कुछ और समय तक बनाए रखना होगा क्योंकि उन्हें डर है कि कोरोना वायरस का दूसरा दौर आ सकता है या इसलिए कि मध्य अफ़्रीका में इबोला की एक नई प्रजाति जन्म ले रही है या… आप जान गए न. हमारी निजता को लेकर हाल के वर्षों में एक बड़ी लड़ाई चल रही है. कोरोना वायरस का संकट इस लड़ाई का चरम बिंदु हो सकता है. क्योंकि जब लोगों को निजता और स्वास्थ्य के बीच कोई एक विकल्प चुनने को कहा जाएगा तो वे सामान्यतया स्वास्थ्य को चुनेंगे.
साबुन-पुलिस
लोगों को निजता और स्वास्थ्य के बीच किसी एक को चुनने के लिए कहना, वास्तव में इस समस्या की जड़ है. क्योंकि यह एक मिथ्या विकल्प है. हमें निजता और स्वास्थ्य दोनों की ज़रूरत है. हम अपने स्वास्थ्य की रक्षा का चुनाव कर सकते हैं पर कोरोना वायरस महामारी को निगरानी व्यवस्था को संस्थागत स्वरूप देकर नहीं बल्कि नागरिकों को सशक्त बनाकर रोक सकते हैं. हाल के सप्ताहों में, कोरोना वायरस महामारी को क़ाबू में करने का सबसे सफल प्रयास दक्षिण कोरिया, ताइवान और सिंगापुर ने किया है. इन देशों ने ट्रैकिंग ऐप्लिकेशन का कुछ हद तक प्रयोग किया है पर सबसे ज़्यादा व्यापक जांच और बेहतर-जानकारी रखने वाली और सहयोग करनेवाली जनता पर भरोसा किया है.
केंद्रीकृत निगरानी और कठोर दंड एकमात्र ऐसे उपाय हैं जो लोगों को लाभकारी दिशानिर्देशों को मानने के लिए बाध्य करता है. जब लोगों को वैज्ञानिक तथ्यों से रू-ब-रू कराया जाता है और जब लोगों को पब्लिक अथॉरिटीज़ पर भरोसा होता है और वे उनको इन तथ्यों से अवगत कराएं, तो जनता अमूमन सही काम करती है भले ही उनकी कोई निगरानी नहीं करे. स्व-उत्साहित और पूरी जानकारी रखने वाली जनता अमूमन निगरानी के अधीन और जाहिल जनता से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली और प्रभावी होती है.
पर इस तरह का परिणाम और सहयोग हासिल करने के लिए आपको विश्वास की ज़रूरत होती है. यह ज़रूरी है कि लोग विज्ञान में विश्वास करें, पब्लिक अथॉरिटीज़ में विश्वास करें और मीडिया में विश्वास करें. पिछले कुछ सालों से, ग़ैरज़िम्मेदार राजनीतिकों ने विज्ञान, पब्लिक अथॉरिटीज़ और मीडिया में लोगों के विश्वास की जानबूझकर अनदेखी की है. अब वही ग़ैरज़िम्मेदार राजनीतिक अधिनायकवाद का रास्ता यह कहते हुए अपना सकते हैं कि आप जनता से यह उम्मीद नहीं कर सकते कि वह कोई ठीक काम करेगी.
इस विश्वास को पिछले कई सालों में तोड़ा गया है और इसे तत्काल बहाल नहीं किया जा सकता. पर यह सामान्य समय नहीं है. संकट के समय में, दिमाग़ को भी बदलते देर नहीं लगती. आपका अपने भाई-बहन से सालों से मतांतर हो सकता है पर जब कोई आपात स्थिति आती है तो आप तुरंत अपने अंदर एक-दूसरे के लिए प्यार और विश्वास के सोते को उमरता पाते हैं. निगरानी की व्यवस्था के बदले, विज्ञान, पब्लिक अथॉरिटीज़ और मीडिया में आम लोगों के विश्वास को दुबारा क़ायम करने के प्रयास के लिए अब भी समय चूका नहीं है. हम नई तकनीक का बेशक प्रयोग करें, पर ये तकनीक जनता को सशक्त करे. मैं शरीर के तापमान और ब्लड प्रेसर पर नज़र रखने के पक्ष में हूं, पर इस डाटा का प्रयोग एक शक्तिशाली सरकार बनाने में नहीं होना चाहिए. बल्कि चाहिए कि यह डाटा मुझे एक बेहतर विकल्प के चुनाव में मदद करे और सरकार को उसके निर्णयों के लिए ज़िम्मेदार ठहराए.
इस तरह, कोरोना वायरस महामारी नागरिकता की वास्तविक परीक्षा है. आने वाले दिनों में, हमें षड्यंत्र के निराधार सिद्धांतों और अपना हित देखने वाले राजनीतिकों और वैज्ञानिक आंकड़ों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों में से किसी एक का चुनाव करना है. अगर हम सही विकल्प चुनने में विफल रहते हैं तो हम अपनी बहुमूल्य स्वतंत्रता को यह सोचते हुए गिरवी रख देंगे कि अपने स्वास्थ्य को बचाने का केवल यही तरीक़ा है.
हमें चाहिए एक वैश्विक योजना
दूसरा विकल्प जिस पर हमें विचार करना है वह है राष्ट्रवादी अलगाव और वैश्विक एकता में से एक को चुनने की. ख़ुद महामारी और इससे अर्थव्यवस्था को होने वाला नुक़सान वैश्विक समस्या है. सिर्फ़ वैश्विक सहयोग से ही इसका प्रभावी हल हो सकता है.
सबसे पहले, वायरस को परास्त करने के लिए हमें वैश्विक स्तर पर सूचना को साझा करना चाहिए. मानव को वायरस पर यह बहुत बड़ी बढ़त हासिल है. चीन में और अमेरिका में संक्रमण फैलाने वाले कोरोना वायरस आपस में बात करके मानव में संक्रमण फैलाने के तरीक़ों पर ग़ौर नहीं कर सकते. लेकिन चीन कोरोना वायरस से लड़ने के बारे में अमरीका को बहुमूल्य सलाह दे सकता है. इटली के किसी डॉक्टर को सुबह-सुबह मिलान में जो जानकारी मिलती है वह शाम को तेहरान में किसी की जान बचा सकता है. जब यूके की सरकार इस बारे में हिचक रही है कि वह कौन सी नीति अपनाए, उसे कोरिया से इस बारे में सलाह मिल सकती है जो ख़ुद उस स्थिति से एक महीने पहले गुज़र चुका है. लेकिन ऐसा हो इसके लिए हमें वैश्विक सहयोग और विश्वास की ज़रूरत है.
विभिन्न देशों को सूचनाएं खुलेआम साझा करनी चाहिए और दूसरों से विनम्रता से सलाह लेनी चाहिए और प्राप्त होने वाले डाटा और तथ्यों पर विश्वास करना चाहिए. हमें मेडिकल उपकरणों विशेषकर जांच किट और सांस की मशीनों के उत्पादन और वितरण में वैश्विक स्तर पर प्रयास करने की ज़रूरत है. हर देश इस बात को स्थानीय रूप से करे और जो भी उपकरण उसके हाथ लगे उसे वह अपने पास ही जमा कर ले इसकी बजाय वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग से इसका उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और जीवन-रक्षक इन उपकरणों को सब तक न्यायोचित तरीक़े से पहुंचा सकता है. जैसे कोई देश युद्ध के समय में अपने प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करता है, कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ मानव की लड़ाई के लिए ज़रूरी है कि हम उत्पादन का “मानवीकरण” करें. ऐसे धनी देशों को जहाँ सिर्फ़ कुछ ही कोरोना वायरस के मामले हुए हैं को चाहिए कि वह उन देशों को जहां ये मामले अधिक हुए हैं यह सोचते हुए अपने बहुमूल्य उपकरण देकि जब उसको ज़रूरत होगी तो दूसरे देश उसकी मदद को आगे आयेंगे.
हम मेडिकल कर्मियों के सामूहिक प्रयोग का प्रयास भी इसी तरह कर सकते हैं. इस समय जो देश कम प्रभावित हैं उन्हें अपने मेडिकल स्टाफ़ को ज़्यादा प्रभावित क्षेत्रों में भेजना चाहिए ताकि वे उनकी मदद कर सकें और बहुमूल्य अनुभव प्राप्त कर सकें. अगर बाद में महामारी को लेकर फ़ोकस में बदलाव आता है, तो उन देशों से वापसी में मदद मिल सकती है.
एक अन्य ज़रूरत है यात्रा पर वैश्विक सहमति की. सभी अंतर्रराष्ट्रीय यात्रा पर महीनों तक प्रतिबंध लगाना मुश्किलों को बढ़ाएगा और कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में रुकावट डालेगा. दुनिया के देशों को चाहिए कि वे कम से कम न्यूनतम और आवश्यक यात्रा की अनुमति दें और वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, पत्रकारों, राजनीतिकों और व्यवसायियों को सीमा को पार करने की इजाज़त दें. यात्रियों की उनके देश में यात्रा से पहले जांच की जाए इसे वैश्विक समझौते से संभव बनाया जा सकता है. जब आप जानते हैं कि विमान में सिर्फ़ ठीक तरह से जांच किए गए यात्रियों को ही जाने की अनुमति दी गई है, आप ऐसे यात्रियों को अपने देश में स्वागत करने के लिए तैयार होंगे.
दुर्भाग्य से, इस समय कोई देश ऐसा कुछ भी नहीं कर रहा है. अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय को सामूहिक लकवा मार गया है. ऐसा लगता है कि कोई विचारशील व्यक्ति दुनिया में नहीं बचा है. कुछ सप्ताह पहले ही दुनिया के नेताओं की आपात बैठक की उम्मीद की जा रही थी ताकि कार्रवाई की एक सामूहिक योजना बनाई जा सके. जी-7 नेताओं ने वीडीयो कनफ़्रेंस के माध्यम से बात तो की पर यह इसी सप्ताह हुई है और इसमें भी किसी तरह की कोई योजना नहीं बनी.
इस प्रशासन ने तो अपने निकटतम सहयोगियों के दामन से भी हाथ छुड़ा लिया है. जब उसने ईयूसे आने वाले सभी उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया तो इस बारे में उसने ईयू को किसी तरह की अग्रिम जानकारी भी देना उचित नहीं समझा और ईयू से इस बड़े क़दम से चर्चा की बात छोड़िए. उसने जर्मनी की एक दवा कंपनी को कोविड-19 के वैक्सीन का अधिकार प्राप्त करने के लिए $1 अरब की राशि देने का शर्मनाक प्रस्ताव दिया. अगर वर्तमान प्रशासन अपना रास्ता बदलता भी है और कोई वैश्विक कार्य योजना बनाता है, तो भी इस बात की उम्मीद कम है कि कोई भी ऐसे नेता की बात मानेगा जो किसी भी तरह की ज़िम्मेदारी लेने से बचता है, जो अपने ग़लती स्वीकार नहीं करता है और जो नियमित रूप से सारा श्रेय ख़ुद लूट लेता है जबकि दोष दूसरों के हिस्से में छोड़ देता है.
अगर अमरीका ने जो जगह ख़ाली की है उसे कोई देश नहीं भरता है तो न केवल वर्तमान महामारी को रोकना ज़्यादा मुश्किल होगा बल्कि उसकी यह विरासत अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों को आनेवाले वर्षों में विषाक्त बनाता रहेगा. लेकिन यह भी सही है कि हर संकट एक अवसर लेकर आता है. हमें उम्मीद करनी चाहिए कि वर्तमान महामारी मानवता को यह समझने में मदद करेगी कि वैश्विक समुदाय में फूट होना कहीं बड़ा संकट है.