कब है बसंत पंचमी? क्या है इस दिन का महात्म्य! मंत्र, पूजा-विधि एवं पारंपरिक कथा!
रायपुर। बसंत पंचमी महज हिंदू धर्म का पर्व नहीं है, बल्कि इसे ऋतुओं का पर्व और फसलों का पर्व भी कहा जाता है. इन्हीं दिनों यानी माघ माह की पंचमी को मां सरस्वती की भी परंपरागत तरीके पूजा की जाती है. इसके अलावा बसंत पंचमी (Basant Panchami) का दिन साल के चार सर्वाधिक शुभ दिनों में एक दिन होता है. यह इतना शुभ और पुण्यदाई दिन होता है कि इस पूरे दिन बिना शुभ मुहूर्त निकाले शुभ-मंगल कार्य किये जा सकते हैं.
चूंकि हमारे यहां मां सरस्वती को ज्ञान, बुद्धि, कला, और संस्कृति की देवी माना जाता है, इसीलिए जिन बच्चों की पढ़ाई का शुभारंभ किया जाता है, उन बच्चों को बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की प्रतिमा के सामने पहला शब्द लिखवाकर उनसे आशीर्वाद लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार बसंत पंचमी का यह उत्सव 16 फरवरी (मंगलवार) 2021 को मनाया जायेगा. आइये जानें बसंत पंचमी की पूजा-अर्चना, महात्म्य, मंत्र और मुहूर्त.
बसंत पंचमी की पूजा विधिः
प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करने के पश्चात घर के मंदिर के सामने पूर्व-पश्चिम दिशा में एक स्वच्छ चौकी रखें. इस पर पीले रंग का आसन बिछाकर उस पर मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित करें. पूजा के स्थान पर बच्चों की शैक्षिक पुस्तकें, और वाद्य यंत्र रखें. इसके पश्चात सरस्वती जी की प्रतिमा को पीले रंग का वस्त्र पहनाकर धूप-दीप प्रज्जवलित करें. अब माता सरस्वती का मंत्र पढ़ते हुए उन्हें सफेद पुष्प, रोली, चंदन, अक्षत, हल्दी, केसर और पीले रंग की खोये की मिठाई अर्पित करें. इस दिन विद्यार्थी वर्ग मां सरस्वती का व्रत रख सकते हैं. अंत में माता सरस्वती की आरती उतारकर इच्छित मनोकामना करें.
सरस्वती मंत्रः
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा
अर्थात
जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली मां सरस्वती हमारी रक्षा करें.
बसंत पंचमी की पारंपरिक कथाः
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने जब जगत का निर्माण के दौरान पेड़-पौधों, पहाड़, नदी, झरनों के साथ जीव जन्तुओं का निर्माण किया तो उन्हें अहसास हुआ कि कहीं कुछ कमी रह गयी है. उन्होंने भगवान विष्णु का संस्मरण किया. भगवान विष्णु प्रकट हुए तो ब्रह्मा जी ने उऩसे अपनी दुविधा बताई. विष्णु जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि आप अपने कमंडल से कुछ जल पृथ्वी पर छिड़कें. कहा जाता है कि जैसे ही ब्रह्मा जी द्वारा छिड़की बूंदें पृथ्वी को स्पर्श कीं, उसी समय श्वेत साड़ी पहने एक सुंदर स्त्री का उद्भव हुआ, जिनके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में पुस्तक, तीसरे हाथ में माला और चौथा हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में था. यह ज्ञान, संगीत और संस्कृति की देवी थीं मां सरस्वती थीं. ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी से वीणा बजाने का अनुरोध किया. कहते हैं कि जैसे ही मां सरस्वती ने वीणा के तार को झंकृत किया, ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित हर वस्तुओं को मानों स्वर मिल गया. इसी वजह से उनका नाम सरस्वती पड़ा. वह दिन था माघ मास के शुक्लपक्ष की पंचमी यानी बसंत पंचमी का. इसके बाद से ही देवलोक और मृत्युलोक में माता सरस्वती की पूजा होती है.
बसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त-
16 फरवरी प्रातः 03. 36 बजे से17 फरवरी प्रातः 05.46 बजे तक
मां सरस्वती की पूजा का मुहूर्त
16 फरवरी प्रातः 06.59 बजे से दोपहर 12.35 मिनट तक