बिलासपुर हाईकोर्ट ने 82 फीसदी आरक्षण के खिलाफ लगी याचिका को किया खारिज
बिलासपुर । छत्तीसगढ़ सरकार के आरक्षण को 82 फीसदी बढ़ाए जाने के खिलाफ दायर याचिका को हाईकोर्ट ने गुरुवार को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि जब विधानसभा में इसे पारित ही नहीं किया जा सका है, तो फिर सुनवाई के योेग्य भी नहीं है। हालांकि कोर्ट ने यह जरूर कहा कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2012 में 50 से 58 फीसदी किए गए आरक्षण मामले में जरूर सुनवाई की जा सकती है।
दरअसल, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 15 अगस्त 2019 को रायपुर परेड मैदान में हुए कार्यक्रम के दौरान आरक्षण बढ़ाए जाने की घोषणा की थी। इसके बाद राज्य सरकार ने 4 सितंबर 2019 को अध्यादेश जारी कर आरक्षण के प्रतिशत को 82 प्रतिशत कर दिया था। इसमें राज्य के अनुसूचित जनजाति को 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13 फीसदी और अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाना था।
इसको लेकर बिलासपुर के आदित्य तिवारी और रायपुर के कुणाल शुक्ला ने अधिवक्ता पलाश तिवारी व संजीव पांडेय के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत की। इस आरक्षण बढ़ोतरी को असंवैधानिक और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ बताया था। इस पर कोर्ट ने 4 अक्टूबर को आरक्षण के अध्यादेश पर रोक लगा दी थी। बाद में शासन ने कोर्ट में स्वीकार किया कि 2 अक्टूबर हुई विधानसभा में अध्यादेश को पास नहीं कराया जा सका है।
किसी भी अध्यादेश को छह सप्ताह के भीतर विधानसभा में पारित कराना होता है। कोर्ट ने पाया कि अध्यदेश की अवधि समाप्त हो चुकी है। कोर्ट ने कहा कि पूर्व में इस अध्यादेश पर स्टे लगाना लाभकारी रहा है। कोर्ट ने याचिका निराकृत कर दी। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा सहानी मामले में दिए 50 प्रतिशत आरक्षण की बाध्यता रखने वाले निर्णय के पालन के लिए कहा कि 2012 के 58 प्रतिशत आरक्षण मामले में बहस की जा सकती है।