लॉकडाउन में ‘पीला सोना’ बीनते बुजुर्ग और बच्चों की सुकून देने वाली ये मनोरम तस्वीर
राजनांदगांव। भारत ही नहीं पूरी दुनिया कोरोना वायरस महामारी का संकट झेलने को विवश है। लाखों लोग इस संक्रमण की चपेट में हैं। हजारों लोगों की इससे जान जा चुकी है। इन सबके बीच छत्तीसगढ़ के धुर नक्सल इलाके की खूबसूरत तस्वीर आपको नई उम्मीद और ऊर्जा से भर देगी। राजनांदगांव जिले के अंदरूनी इलाकों में ग्रामीण महुआ एकत्र कर रहे हैं। अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने की कवायद इन ग्रामीणों ने शुरू कर ली है।
टोकनी के खजाने में छिपा महुआ, चार, तेंदू और खट्टी मीठी इमली, पहाड़ों पर कुदरत की मेहरबानी, महकते फल-फूलों राजनांदगांव जिले के नक्सल प्रभावित दूरस्थ ग्राम हलोरा की यह तस्वीर आपका दिल जीत लेगी। लॉकडाउन के बीच यहां महिलाएं लघुवनोपज संग्रहित कर रही हैं। बुजुर्ग और बच्चों की ये मनोरम तस्वीर लॉकडाउन के समय सुकून देने वाली है।
जिले के अंदरूनी इलाकों में सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए गांव की महिलाएं लघुवनोपज संग्रहित कर रही हैं। यह उनके आजीविका का प्रमुख आधार है। इस वनोपज को बेचकर आमदनी एकत्रित कर ग्रामीण अपना जीवन स्तर उन्नत कर रहे हैं। पहाड़ियों की गोद में छिपे इस मनोरम दृश्य को देखकर ऐसा लग रहा है कि ग्रामीण अंचलों में कोरोना जैसे गंभीर बीमारी को मात देकर लोग सुकून से अपनी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। हलोरा गांव की सिमा मिस्त्री कहती हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी लॉकडाउन का पूरी तरीके से पालन किया जा रहा है। लोग इसमें पूरा सहयोग भी कर रहे हैं. जो एक अच्छी पहल है।
राजनांदगांव जिले का हलोरा गांव धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण यहां रोजगार के साधन नहीं हैं. लोगों की आजीविका का साधन वन उपज ही है। इस इलाके में लोगों का घर का चूल्हा भी इसी से चलता है। राजनांदगांव जिले के दूरस्थ वनांचल में ग्रामीण महिलाएं बुजुर्ग और युवा महुआ फिलहाल इस समय महुआ संग्रहण कर रहे हैं। साथ ही तेंदू और छार का संगठन भी इन ग्रामीणों द्वारा किया जाता है. इनकी आजीविका का साधन भी यही माना जाता है। मावे के फूल को पूरी दुनिया में पीला सोना के नाम से जाना जाता है. इन लोगों को इसका संग्रहण करने के बाद जो राशि मिलती है उससे उनका घर-परिवार चलता है।