December 26, 2024

रणनीति या बेचैनी : क्यों आनन-फानन तलब किए गए भाजपा शासित राज्यों के सीएम-डिप्टी सीएम?

modi-shah

नईदिल्ली। भारतीय जनता पार्टी शीर्ष नेतृत्व ने आगामी 11 जून को अपने मुख्यमंत्रियों, उप मुख्यमंत्रियों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक यूं ही नहीं बुलाई है. उसके सामने पहाड़ सी चुनौतियां हैं. इसी साल एमपी, राजस्थान समेत कई राज्यों में विधानसभा चुनाव है. अगले साल लोकसभा यानी आम चुनाव है. भाजपा कुछ हद तक चिंतित भी है. चुनौतियों और चिंता के बीच भविष्य की रणनीति भी जरूरी है. मौजूदा हालत में यह बैठक अहम हो सकती है. अभी 28 मई को ही तो ये सभी लोग पीएम मोदी के साथ बैठे थे फिर इतनी जल्दी इस मीटिंग की जरूरत भला क्यों आन पड़ी?

यहां पर स्पष्ट करना जरूरी है कि पीएम के साथ हुई 28 मई की बैठक का एजेंडा 100 फीसद सरकारी था. केन्द्रीय योजनाओं की समीक्षा के उद्देश्य से हुई थी वह मुलाकात. 11 जून की मीटिंग का उद्देश्य एकदम जुदा है. यह इलेक्शन के मद्देनजर बुलाई गयी है. संगठनात्मक बैठक है. भारतीय जनता पार्टी अपने उद्भव काल में जैसी भी रही लेकिन मोदी-शाह की भाजपा एकदम अलग है. अब की भाजपा एक चुनाव हारती या जीतती है तो संगठन उसकी समीक्षा निश्चित ही करता होगा लेकिन नेतृत्व अगले चुनाव की तैयारियों में जुट जाता है. भारत यूं भी चुनावी उत्सवधर्मिता के लिए जाना जाता है. यहां देश के किसी न किसी कोने में कोई न कोई चुनाव चलता ही रहता है. मोदी-शाह की जोड़ी इस पर नजर रखती है और सभी दलों की तरह हर चुनाव जीतने की कोशिश करती हुई दिखती है.

एक कार्यकर्ता की तरह मेहनत करते हैं शाह-मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह, जब चुनावी समर में होते हैं तो ये पार्टी कार्यकर्ता की तरह संघर्ष करते देखे जाते हैं. अनेक बार राजनीतिक विश्लेषक कहते हुए सुने जाते हैं कि अमुक चुनाव में पीएम ने जान लगा दी फिर भी हार गए. कर्नाटक के परिणामों के बाद भी ऐसा ही कहा गया. कहने वाले यह भी कहते रहे कि कर्नाटक में इस बार नरेंद्र मोदी का जादू नहीं चला. इन्हीं चर्चाओं के बीच पीएम नरेंद्र मोदी भविष्य की योजनाओं पर काम करते देखे जा रहे हैं. 11 जून की बैठक के एजेंडे में अभी तक भले ही पीएम का शामिल होना तय नहीं है लेकिन कोई बड़ी बात नहीं कि पीएम इस बैठक का हिस्सा भी बनें. नरेंद्र मोदी कई बार चौंकाने के लिए भी जाने जाते हैं.

चुनावों के लिए खुद को तैयार करती बीजेपी
भाजपा अपने सामने खड़ी चुनौतियों को लेकर सचेष्ट है. उसे भी पता है कि कर्नाटक चुनाव हारने के बाद कांग्रेस मजबूत हुई है. भाजपा नेतृत्व को यह भी पता है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, छतीसगढ़, तेलंगाना, मिजोरम में चुनाव की प्रक्रिया इसी साल के अंत में शुरू हो जानी है. उसके तुरंत बाद लोकसभा चुनाव घोषित हो जाएगा. इस बीच कई बड़े दल एनडीए का साथ छोड़ चुके हैं. उसका स्वाभाविक असर पड़ना ही है. ऐसे समय में मुख्यमंत्रियों की यह बैठक जमीनी हकीकत को समझने, किस राजनीतिक दल के साथ गठजोड़ करने में फायदा है, लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए भाजपा शासित राज्य कितने तैयार हैं, यह जानना बेहद जरूरी है.

अमित शाह का नेटवर्क सबसे मजबूत
संगठन की दृष्टि से अमित शाह को पार्टी के कार्यकर्ता-पदाधिकारी चाणक्य कहते हैं. वे भले ही संगठन में किसी पद पर नहीं हैं लेकिन उनका नेटवर्क बेहद मजबूत है. आज भी वे राज्यों में विधायकों, संगठन के पदाधिकारियों से तय अंतराल पर बात करते हैं. उनकी यह बातचीत फोन पर भी खूब होती है. वे देश के गृह मंत्री हैं, ऐसे में पूरा खुफिया तंत्र भी उन्हें सूचनाएं देता है. अपने स्तर की सूचनाओं को वे संगठन और राज्य सरकारों की सूचनाओं से मैच कर फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं.

आसान नहीं होगा 303 का आंकड़ा
भाजपा को यह पता है कि साल 2024 में 303 लोकसभा सीटों का आंकड़ा आसान नहीं है. इसके अनेक कारण हैं. इसीलिए आने वाले पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव में प्रदर्शन का संदेश हर हाल में लोकसभा चुनावों पर पड़ने वाला है. ऐसे में 11 जून की मीटिंग रणनीतिक दृष्टि से वाकई महत्वपूर्ण है. जनता दल यूनाइटेड, शिरोमणि अकाली दल साथ में नहीं हैं. हरियाणा में जेजेपी और तमिलनाडु में जयललिता की एआईडीएमके से रार चल रही है. पता नहीं चुनाव तक यह गठबंधन रहेगा या नहीं. कई अन्य छोटे दल भुभकी देते रहते हैं. बीजेपी फुल तैयारी के साथ चुनाव लड़ती है. 11 जून को होने वाली बैठक तो महज शुरुआत है. आगे आने वाले दिनों में तैयारियां तेज होती दिखेंगी.

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