महिला आरक्षण संसद में आसानी से हो जाएगा पास, लेकिन ओबीसी बन सकता बीजेपी के गले की फांस
केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का ऐतिहासिक कदम उठाया है. पिछले 3 दशकों से अधर में लटके महिला आरक्षण बिल हकीकत में तब्दील होने जा रहा है. मोदी सरकार ने आधी आबादी को एक तिहाई हिस्सेदारी देकर 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा सियासी दांव चला है, लेकिन महिला आरक्षण में ओबीसी समुदाय के लिए कोटा फिक्स नहीं किया जाना बीजेपी के लिए कहीं राजनीतिक रूप से महंगा न पड़ा जाए?
महिला आरक्षण विधेयक में एससी-एसटी महिलाओं के लिए कोटा फिक्स किया गया है, लेकिन ओबीसी की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण नहीं दिया गया है. ऐसे में कांग्रेस से लेकर सपा, आरजेडी, बसपा, जेडीयू सहित तमाम दलों ने मोदी सरकार से ओबीसी समुदाय की महिलाओं के लिए अलग से कोटा दिए जाने की मांग कर रहे हैं.
विपक्ष ही नहीं बल्कि बीजेपी की ओबीसी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने भी महिला आरक्षण बिल में ओबीसी के लिए आरक्षण न होने पर अपनी नारजगी जाहिर की है. इस तरह ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण का एजेंडा सेट किए जाने लगा है.
सोनिया गांधी ने खेला ओबीसी कार्ड
महिला आरक्षण विधेयक पर लोकसभा में चर्चा के दौरान कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी बिल का समर्थन किया, लेकिन साथ ही ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग उठाई. उन्होंने कहा कि जनगणना करा कर पिछड़े तबके से आने वाली महिलाओं को आरक्षण मिलना ही चाहिए. महिलाओं के प्रति आभार प्रकट करने का ये सबसे अहम समय है. उन्होंने कहा,” मैं सरकार से मांग करती हूं कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम की सारी दिक्कतें दूर कर इसे जल्द से जल्द लागू किया जाए. ” सोनिया ने कहा कि कांग्रेस मांग करती है कि एससी, एसटी, ओबीसी के लिए उप-कोटा के साथ महिला कोटा बिल तुरंत लागू किया जाए. ओबीसी को लेकर कांग्रेस के स्टैंड में बड़ा बदलाव दिख रहा है.
सपा से जेडीयू तक ओबीसी कार्ड खेल रही
महिला आरक्षण की राह में तीन दशक बाधा बन रहे राजनीतिक दलों का मूड भी वक्त के साथ बदल गया है, लेकिन अभी भी अपने स्टैंड कायम हैं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि महिला आरक्षण लैंगिक न्याय और सामाजिक न्याय का संतुलन होना चाहिए. इसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी (PDA) की महिलाओं का आरक्षण निश्चित प्रतिशत रूप में स्पष्ट होना चाहिए.
सपा सांसद डिंपल यादव ने ओबीसी की मांग उठाई तो रामगोपाल यादव ने कहा कि हम समर्थन करेंगे, लेकिन महिला आरक्षण बिल पर हमारी हमेशा मांग रही है ओबीसी महिलाएं, उच्च जाति की पढ़ी-लिखी महिलाओं का सही तरीके से मुकाबला नहीं कर सकतीं. इसलिए उनके लिए कोटे के अंदर कोटा होना चाहिए. इसी तरह से जेडीयू के नेता नीतीश कुमार ने भी समर्थन किया, लेकिन महिला आरक्षण के दायरे में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की तरह पिछड़े और अतिपिछड़े वर्ग की महिलाओं के आरक्षण की मांग रखी.
बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मंगलवार को कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए महिला आरक्षण विधेयक में एससी, एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए अलग कोटा प्रदान किया जाना चाहिए था. लेकिन, मोदी सरकार ने एससी, एसटी और ओबीसी के साथ धोखा किया है. बसपा प्रमुख मायावती ने एससी-एसटी समुदाय की महिलाओं को अतरिक्त आरक्षण दिया जाए. महिला आरक्षण में ओबीसी कोटा भी होना चाहिए, अगर ऐसा नहीं हुआ तो इन वर्गों के साथ नाइंसाफी होगी.
उमा भारती ने उठाया ओबीसी का मुद्दा
महिला आरक्षण पर उमा भारती ने कहा कि वह इस बात से निराश हैं कि बिल में अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं है. उन्होंने कहा कि हम ओबीसी महिलाओं के लिए अगर आरक्षण सुनिश्चित नहीं करते हैं, तो बीजेपी से उनका विश्वास टूट जाएगा.
उमा भारती ने कहा कि उन्होंने इस संबंध में पीएम मोदी को पत्र भी लिखा था. उमा भारती ने कहा कि मैंने पत्र में उस बात का जिक्र किया है जब मैंने इस बिल का विरोध किया था. देवगौड़ा की सरकार ने बिल पेश किया था तो वो विरोध करने के लिए अपनी सीट पर खड़ी हो गई थीं. इसके बाद उस विधेयक को स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था.
उमा भारती ने कहा कि जब ओबीसी के लिए कुछ करने का समय आया तो हम पीछे हट गए. हालांकि, मुझे विश्वास था कि पीएम मोदी इसका ध्यान रखेंगे. मैंने सुबह प्रधानमंत्री को पत्र लिखा और बिल पेश होने तक चुप्पी साधे रखी थी. यह देखकर मुझे बहुत निराशा हुई कि विधेयक में ओबीसी आरक्षण नहीं है. मुझे निराशा हुई क्योंकि पिछड़े वर्ग की महिलाओं को जो मौका मिलना चाहिए था, वह नहीं दिया गया है. उमा भारती ही नहीं बीजेपी की सहयोगी अपना दल (एस) की नेता और मोदी सरकार में मंत्री अनुप्रिया पटेल ने महिला आरक्षण बिल का समर्थन करते हुए ओबीसी समुदाय को भी शामिल किए जाने की मांग रखी.
OBC का एजेंडा बीजेपी के लिए चुनौती
विपक्षी दल के साथ-साथ बीजेपी और उसके सहयोगी दल जिस तरह से महिला आरक्षण में ओबीसी समुदाय के लिए अलग से आरक्षण की मांग उठा रहे हैं, उससे निपटना मोदी सरकार के लिए आसान नहीं होगा. बीजेपी के राजनीतिक उभार के पीछे ओबीसी समुदाय के मतदताओं की अहम भूमिका रही है. बीजेपी ने पीएम मोदी को ओबीसी चेहरे के तौर पर स्थापित करने की कोशिश की है, जिसका सियासी फायदा भी पार्टी को मिल है.
महिला आरक्षण बिल पिछले तीन दशकों से इसीलिए लटका हुआ था, क्योंकि ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण दिया नहीं जा रहा था. इसी बात को लेकर शरद यादव, मुलायम सिंह यादव और लालू यादव महिला आरक्षण का विरोध करते रहे हैं.
महिला आरक्षण पर इसीलिए सवाल उठाते रहे हैं कि इसका फायदा कुछ विशेष वर्ग तक सीमित रह जाएगा. देश की दलित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में कमी हो सकती है. इन नेताओं की मांग है कि महिला आरक्षण के भीतर ही दलित, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित की जाए.
इसी बात को लेकर सपा, आरजेडी और जेडीयू महिला आरक्षण बिल का विरोध करते रहे हैं. संसद में जब भी महिला आरक्षण बिल को लाने का प्रयास किया गया तो इन दलों के नेताओं ने सिर्फ विरोध ही नहीं किया बल्कि बिल तक फाड़ दिए थे. ऐसे में मोदी सरकार महिला आरक्षण लेकर आई है तो उसमें भी ओबीसी के लिए अलग से कोटा निर्धारित नहीं किया गया.
बीजेपी कैसे ओबीसी समाज को साधेगी
मंडल कमीशन लागू किए जाने बाद देश की सियासत पूरी तरह से बदल गई है और ओबीसी के इर्द-गिर्द पूरी राजनीति सिमट गई है. पिछड़ा वर्ग राजनैतिक धुरी बने हुए हैं. बीजेपी 2014 में नरेंद्र मोदी के अगुवाई सत्ता में आई तो उसमें ओबीसी समुदाय की अहम भूमिका रही थी. ऐसे में महिला आरक्षण में ओबीसी समुदाय के लिए कोटा फिक्स न किए जाने का एजेंडा विपक्ष जिस तरह से उठा रहा है और जातिगत जनगणना की मांग को लेकर मोर्चा खोल रखा है, उससे बीजेपी को निपटना आसान नहीं है.
ओबीसी समुदाय के वोटों को साधने के लिए कांग्रेस पार्टी भी कोशिशों में जुटी है. हैदराबाद में सीडब्ल्यूसी की बैठक में जिस तरह से आरक्षण की 50 फीसदी लिमिट को खत्म करने पर जोर दिया गया और जिसकी जितनी भागेदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी वाले नारे के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया है और सोनिया गांधी ने जिस तरह से महिला आरक्षण में कोटे के अंदर कोटे की मांग की है, उससे बीजेपी के लिए 2024 के चुनाव में चिंता बढ़ सकती है.
नीतीश कुमार से लेकर अखिलेश यादव, लालू प्रसाद यादव जैसे ओबीसी नेता विपक्षी गठबंधन INDIA खेमे के साथ खड़े हैं, जिसमें कांग्रेस भी अहम रोल में है. ऐसे में ओबीसी समुदाय को साधे रखने के लिए बीजेपी और नरेंद्र मोदी को नया राजनीतिक दांव तलाशना पड़ेगा?