CG : द्वापर युग और त्रेता युग दोनों से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास, जानें इसकी मान्यता
महासमुंद। छत्तीसगढ़ में धार्मिक स्थल तो बहुत हैं, और आप घूमें भी होंगे. प्रदेश में कुछ ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जिनका इतिहास द्वापर से लेकर त्रेतायुग तक जुड़ा हुआ है. आज हम आपको एसे ही एक मंदिर के बारे में बारे में बताने जा रहे हैं. जहां भगवान श्री राम और पांडव तक अपना समय बिताते थे, ये मंदिर खल्लारी माता मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो कि भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर का इतिहास भी काफी पुराना माना जाता है, आपको बता दें कि यहां माता खल्लारी सन 1414 वीं शताब्दी से विराजमान हैं.
खल्लारी माता मंदिर के बारे में पंडित ने कहा कि माता खल्लारी की पूजा अर्चना उस समय राजाओं के द्वारा शुरू की गई थी. उन्होंने आगे कहा कि गोंडवाना शासन काल के राजा के स्वप्न में माता आई, तभी से यहां पूजा अर्चना की शुरूआत की गई. पंडित जी के अनुसार महासमुंद के पास बिमचा नामक गांव से माता जी खल्लारी बाजार आया करती थी. माता जी सोरसी का रूप धारण कर आया करती थी. जब वो बंजारा माता जी का पीछा करते करते उपर पहाड़ी तक पहुंच तब माता रानी ने बंजारा को श्राप दिया और वो बंजारा पसाण रूप में परिवर्तित हो गया. तब से माता रानी यहां विराजमान हैं.
द्वापर में पांडव, त्रेतायुग में श्रीराम आए
द्वापर युग में वनवास काल के समय पांडव यहां आए थे, तबसे उनका यहां पद चिन्ह है. वहीं खाना बनाने के लिए उपयोग किए जाने वाला चूल यानी चूल्हा भी है. त्रेता युग में भगवान श्री राम जी का यहां आगमन हुआ था. आपको बता छत्तीसगढ़ श्री राम जी का ननिहाल है. यहां कि ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री राम जिस नाव से यहां आए थे, अब वो पत्थर में तब्दील हो चुका है, और वो वैसा का वैसा ही है.
खल्लारी माता के मंदिर कैसे पहुंचे
खल्लारी माता मंदिर प्रदेश की राजधानी रायपुर से मात्र 80 किलोमीटर हैं, रायपुर से आपको खल्लारी के लिए डायरेक्ट बस ,ट्रेन आदि सुविधाएं मिल जातीहै।पंडित जी के अनुसार महासमुंद के पास बिमचा नामक गांव से माता जी खल्लारी बाजार आया करती थी तब उनके रूप को देखकर एक बंजारा माता जी का पीछा करने लगा और अभी जिस पहाड़ पर माता रानी विराजमान है वहां तक पहुंच गए.माता जी सोरसी का रूप धारण कर आया करती थी , जब वो बंजारा माता जी का पीछा करते करते उपर पहाड़ी तक पहुंच तब माता रानी ने बंजारा को श्राप दिया और वो बंजारा पसाण रूप में परिवर्तित हो गया तब से माता रानी यहां विराजमान हैं.