CG : भूपेश और सिंहदेव लड़ेंगे लोकसभा चुनाव!.. ,अगर नहीं तो कांग्रेस ने क्यों लिया यह चौंकाने वाला फैसला?
रायपुर। जीत के अतिआत्मविश्वास के बीच विधानसभा चुनावों में मिली करारी हार से कांग्रेस अब उबरने की कोशिश में जुटी हुई है। पार्टी ने हार की समीक्षा के लिए राजीव भवन में बैठक भी की जिसमे सभी नेताओं को बुलाया गया था। खासकर उन नेताओं को जिनके टिकट काट दिए गए थे और जिन्हे चुनाव लड़ने का मौका ही नहीं दिया गया था। यहाँ नेताओं के गिले-शिकवे सुने गए और आखिर में एक होकर सभी से 2024 में पीएम मोदी और भाजपा के खिलाफ बिगुल फूंकने का आह्वान हुआ। पार्टी अब नए सिरे चुनाव की तैयारी में जुट चुकी है। एआईसीसी ने शनिवार को ही एक आदेश भी जारी किया है। आलाकमान ने छत्तीसगढ़ की प्रदेश प्रभारी रही कुमारी शैलजा को हटा दिया है जबकि उनकी जगह राजस्थान के युवा नेता सचिन पायलट को महासचिव की जिम्मेदारी देते हुए प्रदेश का नया प्रभारी बनाया गया है। इस तरह कांग्रेस प्रदेश संगठन में सर्जरी भी कर रही है।
लेकिन लोगों की दिलचस्पी इससे ज्यादा छत्तीसगढ़ कांग्रेस के सबसे बड़े दो नेताओं के सियासी भविष्य को लेकर है। छत्तीसगढ़ में सत्ता में रही भूपेश बघेल की सरकार आज भले ही चुनाव हार चुकी हो लेकिन यह भी सच है कि भूपेश बघेल ने निजी तौर पर काफी लोकप्रियता हासिल की थी। वह कांग्रेस के दूसरे पंक्ति के नेताओं में शुमार थे। बड़े बैठकों में शामिल होते थे और गांधी परिवार का उन्हें विशेष वरदहस्त भी प्राप्त था। वह राज्यों में स्टार प्रचारक बनाये जाते थे। उन्हें दिल्ली का बुलावा भी मिलता था। मध्यभारत में कांग्रेस के लिए भूपेश बघेल पिछड़ा समाज का चेहरा भी बनने जा रहा था।
इसी तरह बात टीएस सिंहदेव की करें तो कांग्रेस संगठन में उनका दबदबा भी कायम रहा।अपने ही सरकार से नाराज हुए तो डिप्टी सीएम बना दिए गये, जबकि 2018 में उन्हें चुनावी घोषणा पत्र की भी जिम्मेदारी दे दी गई थी। सिंहदेव को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने टिकटों के बंटवारे में बड़ी भूमिका निभाई थी और अपने मनचाहे नेताओं को टिकट दिलाने और अनचाहे विधायको की टिकट छीनने में भी कामयाब रहे। छत्तीसगढ़ कांग्रेस का एक गुट पुरे समय उन्हें सीएम बनाने की मांग करता रहा हालांकि वह इसमें कामयाब नहीं हो पाएं।
बहरहाल ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस के भीतर अब इन दोनों क्षत्रपों की क्या भूमिका रहेगी? कांग्रेस इन दोनों की लोकप्रियता का किस तरह इस्तेमाल करेगी? इन्हे राज्यों में ही रखा जाएगा या दोनों को दिल्ली भेजा जाएगा यानी लोकसभा चुनाव लड़ाया जाएगा?
यह सवाल इसलिए उठ रहे है क्योंकि कांग्रेस ने पिछले दिनों दो घोषणाएँ की है। इन दोनों ही घोषणाओं में भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को खास तवज्जो दी गई है। दरअसल पार्टी ने नेशनल एलायंस कमेटी का गठन किया है। इस कमेटी में पूर्व सीएम भूपेश बघेल को शामिल किया गया है। इसके अलावा कमेटी में राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, मुकुल वासनिक, सलमान खुर्शीद और मोहन प्रकाश का नाम शामिल है। कुल पांच नेताओं को कमेटी में जगह दी गई है। कांग्रेस के लिए ये पांचों सदस्य एलायंस को लेकर समन्वय बनाने का काम करेंगे। पांचों नेताओं को कमेटी का संयोजक बनाया गया है। इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एलायंस का गठन किया है। इस तरह देखा जाएँ तो भूपेश बघेल के लिए चुनावी हार के बावजूद यह बड़ी छलांग मानी जा रही है।
इसी तरह कांग्रेस ने अगले साल होने वाले आम चुनाव के मद्देनजर 16 सदस्यों वाली घोषणापत्र समिति की घोषणा कर दी है। यह समिति तत्काल प्रभाव से काम करना शुरू करेगी। इसका नेतृत्व पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम करेंगे। छत्तीसगढ़ के पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को समिति का संयोजक बनाया गया है। जाहिर है सिंहदेव अकेले इस टीम में जगह बनाने वाले नेता है। 2024 में कांग्रेस के घोषणापत्र में उनकी झलक भी दिखाई पड़ेगी।
दोनों ही तैयारी लोकसभा चुनाव से जुड़ी हुई है। इसलिए कयास लगाए जा रहे है कि कांग्रेस दुर्ग से पूर्व सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव को किसी राजनांदगांव या किसी अन्य लोकसभा क्षेत्र से आजमा सकती है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि लम्बे समय से कांग्रेस का प्रदर्शन लचर रहा है। हर बार के चुनाव में कांग्रेस महज एक या दो सीटें ही जीत पाती है। कांग्रेस इस बार छत्तीसगढ़ से ज्यादा से ज्यादा सीटें निकालने में जुटी हुई है। इसके लिए जरूरी होगा लोकप्रिय चेहरों का मैदान में उतरना। अब देखना दिलचस्प होगा कि दोनों नेताओं का भविष्य क्या होगा? वे छत्तीसगढ़ में ही रहेंगे या मल्लिकार्जुन के साथ कदमताल करते नजर आएंगे? लेकिन यह तय है कि कांग्रेस इस बार चांस लेने से पीछे नहीं हटेगी और अगर बड़े चेहरों पर दांव लगाने का मौका मिला तो तय है कि दोनों क्षत्रपों को संसद भेजने की तैयारी भी की जाएगी।