September 21, 2024

UPSC : बिना परीक्षा लेटरल एंट्री से RSS के लोगों की भर्ती करने का आरोप, सरकार ने वापस लिया फैसला

नईदिल्ली। UPSC Lateral Entry U Turn: लेटरल एंट्री (Lateral Entry) को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को पत्र लिखा है. मंत्री ने पत्र में संघ लोक सेवा आयोग से लेटरल एंट्री के आधार पर निकाली गई भर्तियों को वापस लेने को कहा है. पत्र में कहा गया है कि लेटरल एंट्री के आधार पर निकाली गई भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है, जिसे ध्यान में रखते हुए इसे वापस लिया जाए. वहीं इस फैसले के बाद लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लिखा है कि संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हम हर कीमत पर रक्षा करेंगे. भाजपा की ‘लेटरल एंट्री’ जैसी साजिशों को हम हर हाल में नाकाम कर के दिखाएंगे. मैं एक बार फिर कह रहा हूं – 50% आरक्षण सीमा को तोड़ कर हम जातिगत गिनती के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेंगे. जय हिन्द.

UPSC को लिखे पत्र में क्या कहा गया है?
पत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उच्च पदों पर लेटरल एंट्री के लिए संविधान में निहित सामाजिक न्याय और आरक्षण पर जोर देना चाहते हैं. इसलिए इस विज्ञापन को वापस लिया जाय. केंद्र ने पत्र में सामाजिक न्याय के प्रति संवैधानिक जनादेश को बनाए रखने के महत्व पर भी प्रकाश डाला. केंद्र ने कहा कि हाशिए पर मौजूद योग्य उम्मीदवारों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिले, इसकी जरूरत है.

भर्ती का हुआ था जमकर विरोध
17 अगस्त को संघ लोक सेवा आयोग ने लेटरल एंट्री के आधार पर नियुक्तियों के लिए विज्ञापन जारी किए थे जिसका कांग्रेस सहित विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया था. विपक्ष का कहना है कि इससे आरक्षण खत्म हो जाएगा और सामाजिक न्याय की बात अधूरी रह जाएगी. बीते दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर इसका विरोध किया था. राहुल ने कहा था कि केंद्र सरकार लेटरल एंट्री के जरिए दलितों, आदिवासियों और पिछड़ा वर्ग से उनका आरक्षण छीनने की कोशिश कर रही है, जो कि स्वीकार्य नहीं है.

पारदर्शी निर्णय : केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, “UPSC में लेटरल एंट्री का जो पारदर्शी निर्णय लिया था उसमें आरक्षण का सिद्धांत लगे ऐसा निर्णय लिया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमेशा सामाजिक न्याय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है. NEET, मेडिकल एडमिशन, नवोदय विद्यालय में आरक्षण के सिद्धांत को लगाया. पीएम मोदी की प्रतिबद्धता है वो आज के UPSC में लेटरल एंट्री में आरक्षण का सिद्धांत लगाने के निर्णय में साफ दिखाई देती है. 2014 से पहले कांग्रेस की सरकार में लिए गए निर्णयों में आरक्षण के सिद्धांत का ध्यान नहीं रखा जाता था. इसका जवाब भी कांग्रेस को देना चाहिए.”

यूपीएससी में लेटरल एंट्री रद्द करने के लिए यूपीएससी के अध्यक्ष को पत्र लिखने पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा, “PM ने आज सामाजिक न्याय को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है, जो पिछले 3-4 दिनों से एक लेटरल एंट्री का विषय चल रहा था उसके लिए डॉ जितेंद्र सिंह जी ने एक पत्र UPSC को लिखा है कि जब तक आरक्षण के पूरे प्रवाधान नहीं होते तब तक इसे विड्रॉ किया जाए. ये दर्शाता है कि पीएम सामाजिक न्याय के प्रतिबद्ध है. इस निर्णय के लिए हम पीएम की प्रशंसा करते हैं.”

तेजस्वी यादव ने भी ‘लेटरल एंट्री’ पर उठाए थे सवाल
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने लेटरल एंट्री के जरिये केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने मंगलवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संविधान और आरक्षण को खत्म कर असंवैधानिक तरीके से लेटरल एंट्री के जरिए उच्च सेवाओं में आईएएस, आईपीएस की जगह बिना परीक्षा दिए आरएसएस के लोगों को भर रहे हैं.

बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने एक बयान जारी कर 18 बिंदुओं के जरिये सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि संविधान सम्मत उच्च सेवाओं में भर्ती संघ लोक सेवा आयोग द्वारा सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से होती है जिसमे प्रारंभिक, मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार होता है. इसमें एससी, एसटी, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस के लिए रिजर्वेशन लागू होता है. लेकिन लेटरल एंट्री में भर्ती सिर्फ साक्षात्कार के माध्यम से हो रही है और बिना परीक्षा के. इसमें सभी लोग भाग नहीं ले सकते.

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी आरक्षण विरोधी हैं, इसलिए इन उच्च पदों में आरक्षण को खत्म करने के लिए इसे एकल पद दिखाया गया है जबकि कुल पद 𝟒𝟓 हैं. अगर इसमें आरक्षण लागू होगा तो इनमें से 50 प्रतिशत पद दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलते। बिना परीक्षा की ऐसी सीधी नियुक्ति में इन्हें सीधा नुकसान होगा.

उन्होंने यह भी कहा कि यह भाई-भतीजावाद एवं विशेष विचारधारा के लोगों की बैक डोर एंट्री है अन्यथा आईएएस, आईपीएस में भर्ती युवा हर क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं. जरूरत है सिर्फ सही अधिकारी की सही पोस्टिंग करने की. लेकिन पोस्टिंग के वक्त मोदी सरकार अधिकारियों की जाति के आधार पर प्राथमिकता देती है. यही कारण है कि केंद्रीय सरकार में सचिव स्तर पर एससी, एसटी और ओबीसी के अधिकारी ना के बराबर हैं.

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