November 14, 2024

CG : गणेश के कामों से गदगद हुए गडकरी; बांस से बनाई इको-फ्रेंडली तकनीक, सड़कों और ट्रेनों की होगी सुरक्षा

रायपुर। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के कृषक गणेश वर्मा इन दिनों चर्चा में हैं। उन्होंने बांस से इको फ्रेंडली रोड-रेलवे सुरक्षा उपकरण तैयार किया है। इन्हें बाहु-बल्ली नाम दिया है। बांस से बने सुरक्षा उपकरणों से नेशनल हाइवे के 60 अलग-अलग स्थानों में 12 किमी से अधिक बंबू क्रैश बैरियर स्टाल कर दिया गया है। रेलवे में 20 किमी से अधिक का फैंसी पोल और चार किमी से अधिक कैटल फेंस लगाई गई है। वंदे भारत ट्रेन रूट पर कैटल फेंस लगाए जाने का आर्डर दिया गया है। भारतीय सड़क कांग्रेस के 83वें अधिवेशन में रायपुर पहुंचे केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गणेश वर्मा के स्टार्टअप का जिक्र करते हुए अधिक से अधिक बांस के उपकरणों का इस्तेमाल करने के निर्देश दिए हैं।

बता दें कि बाहु-बल्ली से फेंसिंग पोल, रेलिंग, फेंसिंग, इलेक्ट्रिक पोल सुरक्षा सहित घरेलू उपयोगी चीजें भी बनाई जा रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि स्टील की कीमतों में हो रही बढ़ोतरी और खनन चुनौतियों के कारण बांस एक स्थिर मूल्य विकल्प साबित हो सकता है। बड़े पैमाने पर उत्पादन में बांस स्टील की तुलना में किफायती साबित हो सकता है।

रेलवे और सड़क परिवहन मंत्रालय बांस आधारित बाड़ लगाने के उपायों को लागू करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं, ताकि अतिक्रमण और जानवरों की टक्कर से होने वाली दुर्घटनाओं को रोका जा सके। ऐसे में ये उपकरण भले ही पूरी तरह से लोहे का विकल्प न बन पाएं, मगर कुछ प्रतिशत कामों के लिए बांस से बने ये उपकरण सहयोगी होगें, साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए कारगर साबित होंगे।

विशेषज्ञों के मुताबिक दो लाख 50 हजार टन से बने बांस के उपकरण 44 हजार टन स्टील के उपयोग को कम करेगा, इससे 80 हजार टन कार्बन कम होगा। बांस उत्पादन से एक लाख टन कार्बन डाई आक्साइड वातावरण से अवशोषित होगा। इतना ही नहीं, लोहे से बने सुरक्षा उपकरणों के लिए जो भी ईंधन का इस्तेमाल हाेता है उसकी भी बचत होती है। बांस के उपकरण बनाते समय काफी मात्रा में अनुपयोगी बांस बच जाता है, जिसका उपयोग बायो चारकोल बनाने में होता है। इस प्रक्रिया में काफी मात्रा में बायोविनेगर और बायोबीटूमिन का उत्पादन भी किया जाता है।

बेमेतरा जिले के कृषक गणेश वर्मा ने वर्ष 2021 में विभिन्न बांसों के उपयोग के अनुसंधान पेपरों का अध्ययन किया। इसके बाद विशेषज्ञों की मदद से अधिक मजबूती वाले बांस की प्रजाति पर पानी, धूप और दीमकरोधी ट्रीटमेंट किया, पालीमर से कोटिंग की। इससे बांस लोहे की तरह मजबूत हो गया। इसे पेटेंट भी कराया। स्टील की तुलना में बांस के उपकरण की कीमत भी आधी से भी कम है।

गणेश ने भव्य सृष्टि उद्योग के नाम से जिले के कठिया में स्टार्टअप शुरू किया और अब उनका टर्न ओवर 10 करोड़ तक पहुंच गया। जिस बांस का उपयोग सुरक्षा उपकरण बनाने में हो रहा है वह असम का बम्बुसा बालकोया प्रजाति का है। इसके लिए छत्तीसगढ़ में भी उपयुक्त जलवायु पाई गई है। गणेश ने अब किसानों से अनुबंध करना शुरू कर दिया है। दावा है कि जो किसान इस बांस का उत्पादन करेगा उसे प्रति एकड़ में डेढ़ लाख रुपये का लाभ मिलेगा।

बांस से टावर बनाकर सुर्खियों में रहे गणेश
इसके पहले 18 सितंबर 2024 को बांस से सबसे बड़े टावर को बनाकर गणेश सुर्खियों में रहे हैं। 11 लाख की लागत से बने टावर की ऊंचाई 140 फीट है, जिसका वजन करीब 7400 किलोग्राम है। इस टावर को गोल्डन बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी शामिल किया गया है। गणेश ने बताया कि “यह बैंबू टावर वैक्यूम प्रेशर इम्प्रेग्नेशन से उपचारित है और हाई-डेंसिटी पालीएथिलीन कोटेड बांस से बना है। इसका जीवनकाल 25 वर्षों से अधिक है। हल्का होने के कारण इसे आसानी से दूसरे जगह स्थानांतरित किया जा सकता है।

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