CG : फीस की भंवर में फंसता भविष्य; स्कूलों में पढ़ाना हुआ और महंगा, इन पैंतरों से जेब काट रहे स्कूल वाले
रायपुर। राजधानी के स्कूलों में एक अप्रैल से शैक्षणिक सत्र 2024-25 की शुरूआत होने जा रही है। इस सत्र के लिए भी अभिभावकों का स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना महंगा हो गया है। निजी स्कूलों ने ना केवल फीस में 10-15 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है बल्कि यूनिफॉर्म, किताबें व परिवहन शुल्क में बढ़ोतरी उनके बजट को बिगाड़ रहे हैं। स्कूल निजी प्रकाशकों की किताबों के नाम पर मनमानी रकम वसूल रहे हैं। जबकि निदेशालय के आदेशों के अनुसार स्कूल उन्हें निजी प्रकाशकों की पुस्तकें लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं।
स्कूलों के मनमाने रवैये के कारण अभिभावक बाजार रेट से ज्यादा कीमत देने को मजबूर हैं। फीस और किताबें, यूनिफॉर्म के खर्चे मिलाकर एक बच्चे पर ही अभिभावकों को औसतन 20 हजार से 30 हजार रुपये खर्च करने पड़े हैं। पैरेंट्स एसोसिएशन की एक पदाधिकारी ने बताया कि अभिभावकों से लगातार फीस बढ़ोतरी, निजी प्रकाशकों की महंगी पुस्तकें, यूनिफॉर्म लेने के लिए स्कूल की ओर से बाध्य किए जाने की शिकायतें मिल रही हैं।
वह बताती हैं कि 2019 में कोर्ट का आदेश आया था कि सीबीएसई से संबद्ध स्कूल एनसीईआरटी या एससीईआरटी की किताबें ही पढ़ाएंगे। जबकि स्कूल प्राइवेट प्रकाशकों की किताबें लेने के लिए मजबूर करते हैं। एनसीईआरटी की किताबें निजी प्रकाशकों की किताबों की तुलना में सस्ती पड़ती हैं। इतना ही नहीं नोट बुक (कॉपियों) को भी कई स्कूल प्रबंधन अपने यहाँ से ही लेने के लिए बाध्य किया जा रहा है। एक कॉपी का रेट जो बाजार में 30-40 रुपये है उसके लिए स्कूल में 60-80 रुपये तक लिए जा रहे हैं। यूनिफॉर्म भी कई स्कूलों ने बदल दी है। जबकि शिक्षा निदेशालय के दिशा-निर्देशानुसार तीन साल से पहले यूनिफॉर्म में बदलाव नहीं किया जा सकता है।
अभिभावक आकांक्षा पाणिग्रही ने कहा कि एनसीईआरटी भी किताबें छापने में देरी करती है। इससे स्कूलों को निजी प्रकाशकों की पुस्तकें पढ़ाने का मौका मिल जाता है। सत्र शुरू होने में एक सप्ताह बाकी है और अब तक एनसीईआरटी की तीसरी से छठी तक की किताबें नहीं मिल रही हैं।
किताबें और ड्रेस खरीदने को लेकर शिक्षा निदेशालय की गाइडलाइंस
शिक्षा निदेशालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार निजी स्कूलों को नए सत्र में प्रयोग में आने वाले किताबों व अन्य पाठ्य सामग्री की कक्षावार सूची नियमानुसार स्कूल की वेबसाइट पर प्रदर्शित करनी होती है। स्कूलों को अपनी वेबसाइट पर स्कूल के नजदीक की कम से कम पांच दुकानों का पता और टेलीफोन नंबर भी प्रदर्शित करना होता है। जहां से अभिभावक किताबें और यूनिफॉर्म खरीद सकें। किसी भी निजी स्कूल को कम से कम तीन साल तक स्कूल ड्रेस के रंग, डिजाइन व अन्य चीजों को बदलने की इजाजत नहीं है।
क्या कहता है निदेशालय
शिक्षा निदेशालय के मुताबिक यदि स्कूल यूनिफॉर्म व पुस्तकों को खरीदने के लिए बाध्य कर रहे हैं, तो वह गलत है। स्कूल किसी भी सूरत में अभिभावकों को बाध्य नहीं कर सकते हैं। यदि निदेशालय के पास शिकायतें पहुंचेंगी तो स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
पुस्तकों का खर्च
नई ड्रेस व जूतों पर खर्च
3100-4000
परिवहन शुल्क
2500-4000
नोट- स्कूल के हिसाब से यह तमाम खर्चे अलग-अलग हो सकते हैं। फीस में अलग-अलग मदों में बढ़ोतरी की गई है। यह एक औसतन राशि है। छोटी कक्षाओं में आर्ट वर्क के नाम पर राशि में बढ़ोतरी हो जाती है।