CG – लाल सोना : इस जिले में भी होगा रक्त चंदन का जंगल, 52 एकड़ में लगाए जाएंगे 7390 चंदन के पेड़
दुर्ग। साऊथ की चर्चित फिल्म ‘पुष्पा’ आपने देखी होगी। पूरी फिल्म लाल चंदन (रक्त चंदन) की तस्करी पर आधारित थी। अब यही लाल चंदन दुर्ग जिले के जंगल में भी नजर आएगा। इसके पौधे वन विभाग उपलब्ध कराएगा। भारत में फिलहाल यह आंध्र प्रदेश के चार जिलों सिर्फ चित्तूर, कडप्पा, नेल्लोर, कुरनूल की पहाड़ियों में पाया जाता है।
लाल चंदन काफी कीमती होता है। इसकी कीमत बाजार 20 लाख से लेकर 50 लाख रुपए प्रति क्विंटल तक होती है। जबकि सफेद चंदन 3 से 7 लाख रुपए क्विंटल तक बिकता है। वन विभाग मुख्यमंत्री वन संपदा योजना के तहत जिले में 1514 एकड़ में अलग-अलग प्रजातियों के 4,89,904 वृक्षों का जंगल तैयार कर रहा है।
खास बात यह है कि इसमें 52 एकड़ में चंदन के 7390 के भी पेड़ तैयार किए जा रहे हैं, इसमें लाल और सफेद चंदन दोनों शामिल है। दरअसल, बालोद और बेमेतरा में काफी मात्रा में जंगल है। लेकिन इनके अलग जिला बनने बाद दुर्ग जंगल विहीन हो गया है।
इसी के मद्देनजर विभाग विभाग किसानों को चंदन सहित कई प्रजाति के पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इससे क्लोनल नीलगिरी, टिशु कल्चर बांस, टिशु कल्चर सागौन, मिलिया डुबिया (मलाबार नीम) और खम्हार जैसे अन्य आर्थिक लाभकारी प्रजाति के पौधे रोपे जाएंगे।
लाइसेंस जरूरी नहीं
2002 तक आम लोगों के चंदन की खेती करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन अब इसके हम पेड़ तो लगा सकते हैं। लेकिन, लकड़ी को खुद काटना और खुले बाजार में बेचना गैरकानूनी है। वन विभाग अनुमति के बाद कटाई की जा सकती है।
15 साल में तैयार होता है पेड़
एक बार चंदन का पेड़ 8 साल का हो जाता है, तो उसका हर्टवुड बनना शुरू हो जाता है और रोपण के 12 से 15 साल बाद कटाई के लिए तैयार हो जाता है। जब पेड़ बड़ा हो जाता है तो किसान हर साल 15-20 किलो लकड़ी आसानी से काट सकता है।