CG : राजधानी से धरसींवा तक दम घुटती जिंदगी, गांवों में खतरनाक होती सुबह और रात की हवा…

रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद प्रदेश में औद्योगीकरण की तेज़ी के चलते राजधानी रायपुर से धरसींवा तक के दर्जनभर गांवों में हवा जहरीली हो चुकी है। इस क्षेत्र में फैक्ट्रियों से निकलने वाले काले धुएं और प्रदूषण के कारण वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है। औद्योगिक विकास से जहां प्रदेश ने प्रगति की राह पकड़ी, वहीं इस क्षेत्र के ग्रामीणों को इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। बिरगांव, उरला इलाकें में तो हालत और भी बदतर हैं।

बीरगांव के निवासी सुकाल स्वरूप ने जनरपट को बताया कि यहां से सटा हुआ इलाका उरला है, जहां पर तमाम फैक्ट्रियां हैं। रात भर फैक्ट्रियों में काम चलता है, जिसकी वजह से सुबह उठते ही उन्हें हर रोज धुआं ही धुआं दिखाई देता है। यहां पर हर घर की छत पर कालिख देख सकते हैं। स्वरूप बताते हैं कि वायु प्रदूषण की वजह से यहां के लोगों में सांस की बीमारी आम है। वहीं फैक्ट्रियों की वजह से यहां के आस-पास के गांव में फसलें बर्बाद हो गई हैं। और तो और आस-पास के तालाबों में अगर आप नहा लिये तो त्वचा में खुजली होने लगेगी। बचपन से ही उरला में रह रहे स्वरूप बताते हैं कि एक समय था जब उरला और उसके आस-पास के इलाकों में हरियाली थी, अब तो कालिख के सिवा कुछ नहीं दिखता।

स्थानीय ग्रामीणों पर पड़ रहा गंभीर असर
पिछले 25 वर्षों में रायपुर से लगे उरला, बिरगांव, सिलतरा, साकरा, सौंदरा, टाडा और धरसींवा सहित कई आसपास के गांवों में उद्योगों की बाढ़ आ गई, जिससे स्थानीय लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा है। किसान और रहवासी जहरीली हवा और बाहरी तत्वों की गुंडागर्दी से परेशान हैं। वहीं, स्थानीय युवाओं को रोजगार न मिलने की समस्या भी झेलनी पड़ रही है। दुर्घटनाएं अलग से बढ़ गयी हैं।

बीमारियों का बढ़ता प्रकोप
कोरोना महामारी के बाद भी क्षेत्र की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। त्योहारों पर आतिशबाजी, पराली जलाने और फैक्ट्रियों के धुएं के कारण वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। निर्माण कार्यों से उड़ने वाली धूल भी हवा को जहरीला बना रही है। परिणामस्वरूप, बड़ी संख्या में लोग सांस की बीमारियों और चर्म रोगों की चपेट में आ रहे हैं।
स्थानीय युवाओं की चिंता
धरसींवा के युवा और समाजसेवी इस बढ़ते प्रदूषण को लेकर चिंतित हैं। समाजसेवी राजकुमार तिवारी और शिक्षा विद् मोहन दास का कहना है कि क्षेत्र में फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं और वाहनों की संख्या में वृद्धि वायु प्रदूषण को चरम स्तर पर पहुंचा रही है। रायपुर से धरसीवां तक 200 से अधिक पावर प्लांट्स से निकलने वाला धुआं कैंसर और असमय प्रसव जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दे रहा है।

मॉनिटरिंग की कमी और प्रशासन की उदासीनता
सिलतरा और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण की मॉनिटरिंग की कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के कारण स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। पर्यावरण संरक्षण के लिए व्यक्तिगत प्रयास करने वालों को भी कोई सहयोग नहीं मिलता, जिससे स्थिति और बिगड़ती जा रही है।
चिकित्सकों की चेतावनी
धरसींवा बीएमओ डॉ. विकास तिवारी ने बताया कि गर्मी के साथ-साथ वायु प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है, जिससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है। अस्पतालों में दमा और चर्म रोग के मरीजों की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। निजी चिकित्सक प्रवीण वर्मा ने वर्तमान स्थिति को भयावह और काफी चिंताजनक बताते हुए लोगों से बाहर निकलने के पहले मास्क,स्कार्फ और चस्मा का उपयोग करने की सलाह दी हैं।

रायपुर में तीव्र वायु प्रदूषण के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं: जहरीला औद्योगिक कचरा, घरेलू कचरा, अत्यधिक वाहन (मोटे अनुमान के अनुसार पिछले दो वर्षों में वाहनों की संख्या दोगुनी हो गई है), तेजी से बढ़ते निर्माण कार्य और तेजी से बढ़ती जनसंख्या। इस क्षेत्र में कई स्पंज आयरन इकाइयाँ स्थापित हो चुकी हैं और कई अन्य प्रक्रिया में हैं। अनुमान है कि कार्यात्मक स्पंज आयरन इकाइयों द्वारा लगभग 10,000 टन कोयले का उपयोग किया जाता है। रायपुर के आसपास लगभग 50-60 ईंट भट्टों जैसे कुछ छोटे पैमाने के उद्योग भी तेजी से बढ़ रहे हैं। एनजीएम द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि इनमें से अधिकांश भट्टे बुल ट्रेंच भट्टों के रूप में संचालित होते हैं और फिक्स्ड चिमनी विधियों के मानदंडों का पालन नहीं करते हैं। उनके अपशिष्ट के कारण आरएसपीएम की मात्रा अनुमेय सीमा से चार-पांच प्रतिशत अधिक हो जाती है।
रायपुर की खराब गुणवत्ता वाली हवा में सांस लेने के परिणाम
वायु प्रदूषण के कारण छत्तीसगढ़ के लोग अपने जीवन के साढ़े तीन साल खो रहे हैं। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय की शोध संस्था एपिक द्वारा तैयार वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक के नए विश्लेषण में यह बात सामने आई है। आंकड़ों के अनुसार, अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए तो रायपुर के लोग 4.9 साल तक अधिक जी सकते हैं।