December 21, 2024

छत्तीसगढ़ : अनोखी परंपरा, दिवाली पर दरवाजे में लगाई जाती है ‘चिरई चुगनी’, बाजारों में रहती है डिमांड

chirai chugni

रायपुर। देशभर में दीपावली का पर्व मनाया जा रहा है, वहीं छत्‍तीसगढ़ में भी बाजारों में भारी भीड़ दिखाई दे रही है, लेकिन सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान खींचती है वो है, धान के बालियों से बनी झालर जिसे छत्तीसगढ़ में “चिरई चुगनी” बोला जाता है, बता दें कि दीपावली के दौरान खेतों में जब नई फसल पक कर तैयार हो जाती है, तब गांववाले धान की नर्म बालियों से कलात्मक झालर तैयार करते हैं.

दिवाली में घरों में लगाई जाती है “चिरई चुगनी”
छत्तीसगढ़ की परंपरा के अनुसार, धान की झालर को अपने घरों की सजावट कर लोग अपनी सुख और समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए उन्हें पूजन के लिए आमंत्रित करते हैं. ऐसा माना जाता है कि उनका यह आमंत्रण उन चिड़ियों के माध्यम से देवी तक पहुंचता है, जो धान के दाने चुगने आंगन और दरवाजे पर उतरती हैं.

बाजारों में होती है डिमांड
राज्‍य में धान की झालरों को अपने घरों में सजाने की परंपरा बहुत पुरानी है. धनतरेस के साथ ही बाजारों में भी झालरें यानी चिरई चुगनी बिकने लगती हैं. बाजारों में इस तरह की झालर की खूब डिमांड रहती है.

छत्तीसगढ़ में दिवाली की सांस्कृतिक परंपरा आज भी बरकरार है। अपने घरों के गेट पर धान की झालर लगाकर इस रस्म को निभाया जा रहा है। दिवाली के दौरान, जब खेत नई फसलों से पक जाते हैं, तो ग्रामीण नरम धान की बालियों से कलात्मक चूड़ियाँ बनाते हैं। आजकल बाजारों में रेडीमेड चीजें उपलब्ध हैं। हालाँकि शहरी क्षेत्रों में यह परंपरा धीरे-धीरे कम हो रही है, फिर भी धान के झूमरों का आकर्षण बना हुआ है। बाजार में छोटे आकार के झूमर भी उपलब्ध हैं, जिनकी कीमत 50 से 200 रुपये तक है। व्यापारियों का कहना है कि इन झूमरों की मांग खासतौर पर शहरी बच्चों के बीच ज्यादा है, जो इस परंपरा को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं।

लोगों का मानना है कि इस तरह राज्य की लोक संस्कृति प्रकृति के साथ अपनी खुशियाँ बांटती है और उसे संरक्षित करती है। छत्तीसगढ़ में बस्तर से लेकर सरगुजा तक घरों के आंगन और दरवाजों पर धान की झालर लटकाने की परंपरा है। इसे पहटा या पिंजरा भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ में दिवाली पर धान से बने झूमर की यह परंपरा नई फसल के स्वागत और अन्न पूजन का प्रतीक मानी जाती है, जो सदियों से ग्रामीण और शहरी इलाकों में अपनी पहचान बनाए हुए है।

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