CG- वीरों का गांव; हर घर से एक बेटा कर रहा देश की सेवा, नौजवान खुद ही करते हैं अभ्यास, जानें कैसे हुई शुरुआत
बालोद। छत्तीसगढ़ के बालोद जिला मुख्यालय से महज नौ किलोमीटर की दूरी पर एक गांव स्थित है, जिसका नाम नेवारीखुर्द है। इस गांव को लोग सैनिक ग्राम से भी जानते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इस गांव से लगभग 70 से 80 लोग देश की सेवा के लिए सैनिक बने। वर्तमान में 61 जवान बीएसएफ, एसटीएफ, कोबरा, पुलिस सहित आर्मी में अपनी सेवा दे रहे हैं।
खास बात तो यह है कि जितने जवान इस गांव से देश की सेवा के लिए चयनित हुए हैं, वह खुद से अभ्यास कर इस मुकाम तक पहुंचे हैं। शारीरिक अभ्यास के लिए हर रोज सुबह-शाम 40 से 50 युवक नदी के किनारे अभ्यास के लिए पहुंचते हैं। साथ ही लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए समूह में बैठकर और इंटरनेट के माध्यम से जानकारी जुटाते हुए तैयारी करते हैं।
कैसे हुई शुरुआत
शुरुआत में गांव के पास ही स्कूल में पढ़ाने वाले गांव के एक व्यक्ति ने लोगों का समूह तैयार किया। वह कबड्डी और खो-खो जैसे खेल का अभ्यास करवाते रहे। परिणाम यह रहा कि गांव की कबड्डी टीम ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराया। इसे देखते हुए गांव के और भी युवा खेल के क्षेत्र में रूचि रखने लगे। इसके बाद धीरे-धीरे कई लोग शिक्षक के साथ जुड़ने लगे।
इसी बीच गांव के रामरतन उइके की नौकरी होमगार्ड में लगी, फिर एसएफ और सीएम सुरक्षा गार्ड के रूप में भी उन्होंने नौकरी की। वहीं, से युवाओं का देश प्रेम के प्रति जज्बा शुरू हुआ। राम रतन ने गांव के युवाओं को प्रेरणा देना शुरू की और देखते ही देखते आज कारवां 70 से 80 लोगों तक पहुंच गया। आज भले ही वह दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी युवाओं के सपनों को साकार करने के लिए प्रेरणादायक हैं।
छोटी सी बस्ती वाले गांव में न केवल देश सेवा करने वाले जवान हैं, बल्कि शुरुआत से ही यह गांव शिक्षा के क्षेत्र में आगे रहा है। यही वजह है कि शुरुआत से ही देश की सेवा के लिए प्रयास करने वाले जवानों को भी पढ़ाई में किसी तरह की दिक्कत नहीं आई। आज भी उन्हीं 61 जवानों को देश की सेवा करते देख और कई युवा देश सेवा करने की तैयारी में जुटे हुए हैं।
खास बात तो यह है कि जो युवा अभी सेना में जाने का अभ्यास कर रहे हैं, उन्होंने खुद से ही मैदान तैयार किए हैं। तैयारी के लिए उपयोग में आने वाले संसाधन भी जुगाड़ से बनाए हैं। बस जरूरत है कि प्रशासन की नजर इन युवाओं पर पड़े, ताकि इन्हें जरूरत पड़ने वाले सभी संसाधन मुहैया कराए जा सकें, जिससे और भी युवा प्रेरित हों।