December 29, 2024

छत्तीसगढ़ : पानी की खेती ने बदल दी लोगों की जिंदगी

kawartha

कवर्धा/रायपुर।  छत्तीसगढ़ का आदिवासी, बैगा बहुल कवर्धा जिला मैकल पर्वत श्रेणी की तलहटी पर बसा हुआ है।  पर्वत, पहाड़ों से घिरा यह जिला वृष्टिछाया (कम वर्षा वाले) जिले के रूप में राज्य में चिन्हांकित है।  औसतन यहां कम बारिश होती है।  तीन साल पहले यहां जल संरक्षण की मुहिम के साथ ही जल से जीवन की नई कहानी ‘पानी की खेती’ शुरू हुई।  


मनरेगा के तहत जल संरक्षण, संवर्धन और भू-जल स्त्रोत बढ़ाने के साथ ही बारिश का पानी इकट्ठा किया गया. जंगल के पानी को पहले नालों और तालाब के जरिए सहेजा गया. फिर नालों के जरिए गांव में बने तालाबों तक पानी पहुंचाने का इंतजाम किया गया. फिलहाल कवर्धा जिले के 5 मध्यम जलाशयों में पर्याप्त पानी है. 101 लघु जलाशय भी लबालब हैं। 

कवर्धा जिले में 301 नए तालाब बनाए गए. 1061 पुराने तालाबों का गहरीकरण कर जलभराव क्षमता बढ़ाई गई. 900 से ज्यादा डबरी और 850 से ज्यादा कुएं बनाए गए. वनांचल क्षेत्रों में पेयजल के लिए 60 से ज्यादा झीरिया (पहाड़ों से रिसता हुआ पानी) का जीर्णोद्धार हुआ. यह तमाम कोशिशें रंग लाईं।कवर्धा में मई 2016 में भूजल स्तर 27 से 33 मीटर था, जो मई 2020 में बढ़कर 28 से 34 मीटर तक हो गया है. सहसपुर लोहारा में भी साल 2016 में भूजल स्तर 26 से 30 मीटर था, जो साल 2020 में बढ़कर 26 से 34 मीटर तक हो गया है। 

पंडरिया और बोड़ला में भी भू-जल स्तर बढ़ा है. इस पूरी कवायद से कवर्धा ज़िले की धरती नम हुई और लोगों की जिंदगी भी बदल गई. कवर्धा जिले में ज्यादातर लोग खेती-किसानी पर निर्भर हैं. लोहारा ब्लॉक के धनगांव के ग्रामीणों के बारिश के दिनों में जंगल से जो पानी नाले से आता है वो पहले बह जाता था. लेकिन अब प्रशासन ने इस पानी के संग्रहण के लिए पत्थर को तार से बांधकर स्ट्रक्चर तैयार किया है. इस स्ट्रक्चर से मिट्टी रुक रही है और लोगों को निस्तारी के लिए साफ पानी तक मिल रहा है. पानी रुकने की वजह से आसपास के कुओं का जलस्तर भी बढ़ गया है. गांव के 3 तालाब 40 साल से सूखे पड़े थे, जिनमें नालों से आने वाला पानी पहुंचाया जा रहा है. इससे जहां किसान पहले एक फसल लेते थे, अब दो फसल ले सकते हैं। 6 करोड़ 48 लाख 75 हजार रुपए की लागत से मनरेगा के तहत जिले में सिंचाई क्षमता बढ़ाने, मरम्मत और रखरखाव के लिए क़रीब 49 काम हुए हैं. जिससे जिले के 2 हजार 7 सौ 79 हेक्टेयर में सिंचाई की कमी की पूर्ति होगी. इससे सिंचित क्षेत्रों का रकबा भी बढ़ेगा। 

खास बात यह भी है कि कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में जितने भी प्रवासी श्रमिक अपने गांव लौटे, उन सभी को मनरेगा के तहत रोजगार देकर ये काम कराए जा रहे हैं. किसी ने सच ही कहा है कि मुश्किलों का सामना अगर धैर्य के साथ किया जाए तो कोई न कोई रास्ता निकल ही आता है. कवर्धा में भी इसी रास्ते का नाम है पानी की खेती, इस खेती ने जल है तो जीवन है की कहावत को सच साबित किया है। 

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