November 8, 2024

खतरे में बस्तर बियर का अस्तित्व : आदिवासियों का कल्पवृक्ष ‘सल्फी’ की घट रही संख्या, ग्रामीणों की आय पर पड़ रहा बुरा असर

रायपुर। छत्तीसगढ़ ही नहीं पूरे देश में बस्तर बियर के नाम से मशहूर और बस्तर में आदिवासियों का कल्पवृक्ष कहे जाने वाले सल्फी पेड़ों का अस्तित्व खतरे में नजर आ रहा है, दरअसल फ़ीजेरियन ऑक्सीएक्सोरम नामक एक फंगस के कारण सल्फी के पेड़ मर रहे हैं. यह फंगस इतने तेजी से सल्फी के पेड़ों को खत्म कर रहा है जिसके चलते इसकी ग्रामीणों को चिंता सताने लगी है।

दरअसल आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में सल्फी पेड़ का रस ग्रामीणों के लिए आय का मुख्य स्रोत है. गांव के हाट बाजारों में और गांव गांव में सल्फी का रस बेचकर ग्रामीणों को आमदनी होती है लेकिन जब से सल्फी के पेड़ इस फंगस के चपेट में आ रहे हैं, तब से पेड़ तेजी से सूख रहे हैं. हालांकि कृषि वैज्ञानिकों ने शोध कर इसका समाधान जरूर निकाला है लेकिन ग्रामीण इसे बचा नहीं पा रहे हैं, सल्फी पेड़ों को नहीं बचा पाने का कारण अधिकतर ग्रामीणों को इसके उपाय की जानकारी नहीं है. इसके कारण अब ग्रामीण सल्फी के पौधे ही लगाना छोड़ रहे हैं।

बस्तर में आदिवासी ग्रामीणों की सल्फी पेड़ का रस आय के मुख्य स्रोत में से एक हैं. यह रस यहां के स्थानीय ग्रामीणों के साथ-साथ बस्तर घूमने आने वाले पर्यटको की भी पहली पसंद होती है. बड़े आनंद से सल्फी का रस स्थानीय ग्रामीण और पर्यटक पीते हैं, बस्तर संभाग के सभी जिलों में और ग्रामीणों के हर घर में सल्फी का पेड़ मौजूद होता है और ग्रामीण इस पेड़ को अपने औलाद की तरह देखरेख करते हैं लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस पेड़ में फ़ीजेरियम ऑक्सीएक्सोरम नामक फंगस ने ग्रामीणों को मुसीबत में डाल दिया है. अचानक से यह फंगस सल्फी पेड़ों को तेजी से नुकसान पहुंचा रहे हैं, इस फंगस से पेड़ तेजी से सूख रहे हैं और मर रहे हैं, जो पूरे ग्रामीणों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।

ग्रामीणों का कहना है कि करीब 10 से 15 साल पहले बस्तर के हर गांव के घर की बाड़ियों में बड़ी संख्या में सल्फी के पेड़ नजर आते थे, लेकिन अब धीरे धीरे ग्रामीणों अंचलों में सल्फी के पेड़ घट रहे है. दरअसल ग्रामीण सल्फी रस को अपने पेट की बीमारी को दूर करने इसका सेवन करते हैं. एक सल्फी पेड़ से करीब 15 साल बाद रस निकलना शुरू होता है और करीब 25 साल तक यह पेड़ रस देता है, एक पेड़ से हर साल करीब 30 से 40 हजार की आमदनी ग्रामीणों को होती है. यही कारण है कि ग्रामीण सल्फी के पेड़ को अपनी औलाद की तरह इसका जतन करते हैं।

पौधारोग विशेषज्ञ और शहीद गुंडाधुर कृषि विश्वविद्यायल के वैज्ञानिक बताते हैं कि सल्फी पेड़ को मरने से बचाने के लिए पेड़ के जड़ के किनारे गड्ढा खोदकर डाईकोडर्मा व डेनोमाइल नामक एंटीफंगस केमिकल डालने से फंगस नष्ट होता है. फंगस के नष्ट होने से पेड़ को पोषक तत्व मिलने लगता है और पेड़ सूखने से बच जाता है उन्होंने कहा कि यह प्रयोग सल्फी पेड़ में लक्षण दिखने के साथ ही करना चाहिए किन अंदरूनी इलाकों में कई ग्रामीणों को इसकी जानकारी नहीं होने की वजह से फंगस लगने के बाद पेड़ की देखरेख नहीं करते और यह फंगस तेजी से पेड़ को सुखाने लगता है जिससे पेड़ मर जाते हैं।

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