बेमेतरा में भू-जल संकट क्रिटिकल स्टेज पर, ये ब्लॉक अर्धसंकटकालीन श्रेणी में शामिल, जल संसाधन विभाग ने कलेक्टरों को जारी किया पत्र

रायपुर। छत्तीसगढ़ में भू-जल सर्वेक्षण एवं दोहन पर सतत निगरानी रखते हुए भू-जल संवर्धन के लिए आवश्यक संरचनाओं का निर्माण मनरेगा, जिला खनिज न्यास मद एवं आपदा प्रबंधन कोष आदि के माध्यम से कराए जाने के निर्देश दिए गए हैं. जारी आदेश मंत्रालय महानदी भवन स्थित जल संसाधन विभाग द्वारा प्रदेश के सभी कलेक्टरों को पत्र जारी किया गया है.

पत्र में क्षेत्रीय निदेशक केंद्रीय भूमि जल बोर्ड भारत सरकार, जल शक्ति मंत्रालय, द्वारा तैयार की गई भू-जल सर्वेक्षण रिपोर्ट को संदर्भित कर कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में 146 विकासखंड हैं, जिसमें से 5 विकासखंड जिनमें बालोद जिले के गुरूर, बेमेतरा जिले के नवागढ़, बेमेतरा, बेरला और रायपुर जिले के धरसींवा भू-जल सर्वेक्षण एवं दोहन रिपोर्ट के हिसाब से संकटकालीन (क्रिटिकल) स्थिति में हैं. भूजल विदों का कहना है कि राज्य में पहले 36 फीसदी भूजल का इस्तेमाल होता था, जो बढ़कर 44 फीसदी हो गया है। अभी हालात बिगड़े नहीं हैं, लेकिन अगर सुधार की दिशा में काम नहीं किया गया तो अन्य हिस्सों में भी पानी के लिए त्राहि-त्राहि शुरू हो जाएगी।

रिपोर्ट के अनुसार 21 विकासखंड, जिनमें बालोद जिले के बालोद, गुंडरदेही; बेमेतरा जिले के साजा; बिलासपुर जिले के तखतपुर, बेल्हा; धमतरी जिले के धमतरी और कुरूद; तथा दुर्ग जिले के दुर्ग और धमधा; गरियाबंद जिले के राजिम व फिंगेश्वर; कबीरधाम जिले के पंडरिया; कांकेर जिले के चारामा; खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले के खैरागढ़; महासमुंद जिले के बसना व पिथौरा; रायगढ़ जिले के पुसौर; राजनांदगांव जिले के राजनांदगांव, डोंगरगांव, डोंगरगढ़; और सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिले के बरमकेला तथा सुरजपुर जिले के सुरजपुर विकासखंड अर्धसंकटकालीन (सेमी क्रिटिकल) स्थिति में हैं. शेष 120 विकासखंड को रिपोर्ट में सुरक्षित माना गया है.
भू-जल के इस्तेमाल के मुताबिक केटेगरी
जहां भूजल का 100 फीसदी या इससे ज्यादा इस्तेमाल होता है, उस विकासखंड को अतिदोहन की श्रेणी में रखा जाता है। जबकि 90 से 100 फीसदी तक भूजल पर निर्भर रहने वाले ब्लॉकों को क्रिटिकल यानी संकटपूर्ण माना जाता है। 70 से 90 फीसदी तक इस्तेमाल करने वाले सेमी क्रिटिकल और 70 फीसदी से कम भूजल स्त्रोत का दोहन करने वाले ब्लॉक को सुरक्षित श्रेणी में रखा जाता है।
भू-जल प्रबंधन के लिए ये ग्यारह सूत्रीय सिफारिशें दी हैं
कुछ वर्ष पहले एक भूजल कांफ्रेंस में वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ में भूजल प्रबंधन के लिए ये ग्यारह सूत्रीय सिफारिशें दी थी। इसमें नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी से जल प्रबंधन, जल गुणवत्ता और आंकड़ों के संग्रहण के लिए नई तकनीक
जनसहभागिता बढ़ानी होगी, उद्योगों में भी पानी के प्रबंधन पर फोकस, सिंचाई के नए तरीके, जल प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी, कम पानी की खपत वाली फसलों को प्रोत्साहन, वनीकरण रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वाटर शेड्स तालाबों का निर्माण, डबरी का निर्माण, बहुत गहरे में जा चुके स्त्रोत से कम निकासी। इत्यादि शामिल थे।