November 18, 2024

पहले पुलिस में नौकरी-अब परमात्मा का ‘चौकीदार…’ ऐसी है साकार विश्व हरि ‘भोले बाबा’ की कहानी

लखनऊ । साकार विश्व हरि भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ से 100 लोगों की जान चली गई. बाबा का ये सत्संग सिकंदराराऊ के फुलरई इलाके के रतिभानपुर में आयोजित किया जा रहा था. माना जा रहा है कि इस हादसे में मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है. इस भयानक हादसे के बाद मीडिया से दूरी रखने वाले भोले बाबा फिर चर्चा में आ गए हैं.

स्वयंभू संत भोले बाबा कभी पुलिस की नौकरी करते थे. अब वह खुद को परमात्मा का चौकीदार बताते हैं. हालांकि उनके असंख्य भक्तों का ये मानना है कि भोले बाबा भगवान का अवतार हैं. कासगंज जिले के पटियाली के एक छोटे से घर से सत्संग की शुरुआत करने वाले भोले बाबा का प्रभाव अब पश्चिमी यूपी में पूरी तरह होकर इससे सटे राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में भी हो चुका है.

गांव में झोपड़ी से शुरुआत, अब लगता है बड़ा दरबार
स्वयंभू संत साकार विश्व हरि 26 साल पहले पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात थे. अचानक से वीआरएस लेकर पटियाली के गांव बहादुरनगरी में अपनी झोपड़ी से ही सत्संग की शुरुआत की. एक बातचीत के दौरान भोले बाबा ने दावा किया था कि उनका कोई गुरु नहीं है, पुलिस के साथ 18 साल काम के बाद अचानक ऐच्छिक रिटायरमेंट ले लिया. परमात्मा से उनका साक्षात्कार हो गया और अध्यात्म से लगाव होते ही सत्संग शुरू कर दिया. स्वयंभू संत ने इसकी शुरुआत गांव की झोपड़ी से ही की थी. धीरे-धीरे लोग बातों में आने ले और साकार विश्व हरि का प्रभाव बढ़ता रहा. अब साकार विश्व हरि के दरबार कई बीघा जमीन पर लगते हैं.

पश्चिमी यूपी में प्रभाव, जाटव-बाल्मीकि समाज के ज्यादा भक्त
पटियाली तहसील के बहादुरनगरी गांव से निकलकर भोले बाबा ने अपना वर्चस्व बढ़ाना शुरू किया. अब एटा, आगरा, मैनपुरी, शाहजहांपुर, हाथरस समेत कई जिलों में स्वयं भू संत का प्रभाव है. इसके अलावा पश्चिमी यूपी से सटे मध्य प्रदेश और राजस्थान, हरियाणा के कई जिलों में इनके समागम लगते हैं. स्वयंभू बाबा के ज्यादातर भक्त गरीब तबके हैं, इनमें ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो जाटव-बाल्मीकि और अन्य पिछड़ी जातियों से आते हैं. इनकी संख्या लाखों में है.साकार विश्व हरि भले ही खुद को भगवान का सेवक कहते हैं, लेकिन उनके भक्त बाबा को भगवान का अवतार बताते हैं.

भक्तों को बांटा जाता है पानी
भोले बाबा के सत्संग में जो भी जाता है, उसे वहां उन्हें प्रसाद के तौर पर पानी पिलाया जाता है. बाबा के अनुयायी ऐसा मानते हैं कि इस पानी को पीने से उनकी समस्याएं खत्म हो जाती हैं. तमाम लोग इसे भरकर भी ले जाते हैं. बाबा का पटियाली तहसील के बहादुर नगरी गांव में स्थित आश्रम में भी दरबार लगता है. यहां आश्रम के बाहर एक हैंडपंप भी है, दरबार के दौरान इस हैंडपंप का पानी पीने के लिए भी लाइन लगती है.

हजारों सेवादार संभालते हैं व्यवस्था
स्वयं भू संत साकार विश्व हरि का सत्संग जहां भी हो, उसके 500 मीटर दूर से ही चौराहों और सड़कों पर गुलाबी ड्रेस में उनके सेवादार व्यवस्था संभालते हैं. इसके अलावा संबंधित शहर के सभी चौराहों पर कई किमी दूर से ही उनके सेवादार नजर आने लगते हैं, जो ट्रैफिक व्यवस्था संभालने में मदद करने के साथ-साथ समागम में आने वाले अनुयायियों को योजना स्थल के बारे में जानकारी दी जाती है. रास्ते में भर ड्रमों में पानी की व्यवस्था की जाती है.

सफेद ड्रेस में प्रवचन देते हैं स्वयंभू संत
समागम में स्वयं भूल संत सफेद ड्रेस में प्रवचन देते हैं, मंच पर उनके साथ उनकी पत्नी भी बैठती हैं, जिन्हें देवी लक्ष्मी कहा जाता है. वह अपने प्रवचनों में कहते हैं कि वह साकार विश्व हरि के चौकीदार बनकर काम करते हैं, पूरे संसार में साकार विश्व हरि की गिनती नहीं की जा सकती. साकार विश्व हरि बताते हैं कि उनके सेवादारों में भी ईश्वर का अंश है. स्वयंभू संत ये भी दावा करता हे कि लाखों श्रद्धालु उनके शिष्य हैं. शरण में आने वाले हर व्यक्ति का कल्याण हो जाता है.

आसाराम के केस के बाद हटा दिए थे महिला कमांडो
स्वयं भू संत भोले बाबा ने आसाराम बापू प्रकरण के बाद मीडिया से दूरी बना ली थी, भोले बाबा ने उस वक्त समागम में अपने अनुयायियों को भी फोटो खींचने से रोक दिया था. इसके अलावा अपनी सुरक्षा में तैनात महिला कमांडो भी हटा दिए थे. सन् 2014 में एक समागम में भोले बाबा ने आसाराम का जिक्र भी किया था. उन्होंने कहा था कि मीडिया से आसाराम को बदनाम किया है. उनके सत्संग पर भी अंगुली उठाई जा सकती है.

नेता भी लगाते हैं हाजिरी
स्वयं भू संत भोले बाबा का दरबार अब इतना बड़ा हो चुका है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यूपी के बड़े-बड़े नेता भी स्वयंभू संत के समागम में हाजिरी लगा चुके हैं. इसके अलावा यूपी के सटे राजस्थान और मध्य प्रदेश के जिलों के भी बड़े-बड़े नेता भी बाबा के यहां पहुंचते रहे हैं.

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