SBI पहुंचा सुप्रीम द्वार, इलेक्टोरल बॉन्ड केस में लगाई राहत की गुहार…
नईदिल्ली। देश के चुनावी माहौल में अब इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा गरमा सकता है. पिछले महीने की 15 तारीख को सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में लाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था. साथ ही इन बॉन्ड्स को जारी करने वाले भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को हिदायत दी थी कि वह इससे जुड़ी सारी डिटेल 6 मार्च तक चुनाव आयोग के पास जमा करा दे. डेडलाइन खत्म होने से ऐन पहले एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर, इस काम के लिए और टाइम मांगा है.
एसबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी चुनाव आयोग के पास जमा कराने में अपनी असमर्थता जताते हुए इसकी तारीख 30 जून तक बढ़ाने की मांग की है. बताते चलें कि आने वाले कुछ दिनों में चुनाव आयोग देश में लोकसभा का चुनाव की घोषणा कर सकता है. मौजूदा सरकार का कार्यकाल 26 मई तक है, ऐसे में चुनाव आयोग के पास लोकसभा चुनाव 26 मई से पहले कराने की जिम्मेदारी है.
SBI को देनी थी ये सारी जानकारी
इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत मिले ‘सूचना के अधिकार’ का उल्लंघन बताया था. ऐसे में इन बॉन्ड्स के ना सिर्फ जारी करने पर तत्काल रोक लगाई गई थी, बल्कि एसबीआई को आदेश दिया गया था कि वह अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को 6 मार्च तक सौंपे.
अगर एसबीआई इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी शेयर करता, तो इससे पता चल जाता कि किस पार्टी को कितना चुनावी चंदा मिला है. ये चंदा उसे किस कॉरपोरेट हाउस, बिजनेसमैन या अन्य किसी व्यक्ति ने दिया है. 2018 में जो इलेक्टोरल बॉन्ड योजना लाई गई थी, उसके हिसाब से कोई भी व्यक्ति या कंपनी इन बॉन्ड को एसबीआई की चुनिंदा शाखाओं से खरीदकर अपनी पसंदीदा राजनीतिक पार्टी को दे सकती है. पार्टी को ये बॉन्ड 15 दिन के अंदर भुनाना होता है.
SBI ने याचिका में दी ये दलील
SBI ने सुप्रीम कोर्ट में जो अपील दायर की है, उसमें उसने कहा है कि हर इलेक्टोरल बॉन्ड और उससे जुड़े व्यक्ति की जानकारी निकालना और आपस में उसका मिलान करना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है. ऐसे में उसे और समय चाहिए. इसकी वजह ये है कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करते वक्त दानदाता की पहचान गुप्त रखी जाती है, इसलिए इसके लिए अलग प्रक्रिया का पालन किया गया और अब उसे डिकोड करने में वक्त लगेगा.