फ़र्ज़ी बाबाओं के आश्रम बंद करने पर आदेश देने से SC का इंकार, कहा- सरकार से करें मांग
नई दिल्ली। फर्जी बाबाओं के आश्रमों पर नियंत्रण की मांग पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि वह तय नहीं कर सकता कि कौन सा बाबा फ़र्ज़ी है, कौन नहीं. याचिकाकर्ता चाहे तो सरकार को ज्ञापन देकर अपनी मांग रखे.
याचिकाकर्ता की दलील
तेलंगाना के रहने वाले याचिकाकर्ता दुमपला रामारेड्डी की तरफ से कोर्ट को बताया था कि इस तरह के 17 आश्रमों को खुद अखाड़ा परिषद फर्जी करार दे चुका है. वीरेंद्र देव दीक्षित, आसाराम, राम रहीम, राधे माँ समेत ऐसे कई आश्रमों के संचालक गंभीर अपराध के लिए या तो जेल में बंद हैं, या फरार हैं. लेकिन उनके सहयोगी अब भी आश्रमों को चला रहे हैं. वहां बड़ी संख्या में महिलाओं और दूसरे लोगों को गुमराह करके रखा गया है.
याचिका में कहा गया था कि इस तरह के आश्रमों में महिलाओं के शोषण, नशीली दवाइयों के इस्तेमाल और काले धन के हेर-फेर जैसी बातें भी सामने आई हैं. लेकिन इनकी गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं लगाया जा रहा. इन आश्रमों को बंद कर दिया जाना चाहिए. साथ ही, भविष्य में इन्हें खोलने को लेकर दिशानिर्देश भी बनाए जाने चाहिए.
कोरोना फैलने का अंदेशा
इससे पहले जुलाई 2020 में जब इस याचिका पर सुनवाई हुई थी, तब यह दलील भी दी गई थी कि कोर्ट जेल और बाल सुधार गृह में कोरोना फैलने की आशंका के चलते भीड़ कम करने का आदेश दे चुका है. इस तरह के फ़र्ज़ी आश्रमों में भी लोगों के रहने की उचित व्यवस्था नहीं है. वहां कोरोना फैलने का अंदेशा बना हुआ है. इसलिए, इन्हें खाली करवाना बहुत ज़रूरी है. तब कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल को याचिका पर जवाब देने को कहा था.
‘बाबा के चंगुल में फंसी बेटी’
याचिकाकर्ता ने कोर्ट को यह भी बताया था कि खुद उसकी बेटी वीरेंद्र देव दीक्षित नाम के फर्जी बाबा के झांसे में आकर पिछले 5 साल से रोहिणी में बने आध्यात्मिक विश्वविद्यालय में रह रही है. जबकि फर्जी बाबा महिलाओं के यौन शोषण के आरोप में पिछले 3 साल से फरार है. ऐसे में याचिकाकर्ता ने खास तौर पर मांग की है कि अध्यात्मिक विश्वविद्यालय में रह रही 170 महिलाओं और दूसरे लोगों को वहां से निकाला जाए.
SC ने आदेश देने से मना किया
आज करीब 6 महीने के बाद मामला लगा तो सॉलिसीटर जनरल ने याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की बेटी का मसला दिल्ली हाई कोर्ट में लंबित है. 3 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस ने भी कहा कि कोर्ट यह नहीं जानता कि अखाड़ा परिषद ने लिस्ट कैसे तैयार की है. अगर किसी पर अपराध का आरोप है या उसे सजा मिली है, तो लोग उसके आश्रम में न जाएं. यह लोगों को तय करना है, न कि कोर्ट को. याचिकाकर्ता की वकील मेनका गुरुस्वामी ने कोर्ट से दखल की मांग की. लेकिन कोर्ट ने कहा कि इन आश्रमों पर कार्रवाई के लिए उन्हें सरकार से मांग करनी चाहिए, कोर्ट से नहीं. इसके बाद वकील ने याचिका वापस ले ली.