September 19, 2024

छत्तीसगढ़ में धान की बुवाई 100 फीसदी पूरी, अब शुरू हुई गिरदावरी, बढ़ सकता है का रकबा

रायपुर। छत्तीसगढ़ में इस साल खरीफ सीजन के धान की बुवाई सौ प्रतिशत हो गई है। साथ ही राज्यभर में राजस्व विभाग द्वारा फसलों की गिरादवरी का काम शुरू हो गया है। गिरदावरी की प्रक्रिया के दौरान ये जानकारी आ रही है, इस साल धान का रकबा पिछले साल के मुकाबले बढ़ सकता है। वजह ये है कि राज्य में धान की कीमत सबसे अधिक 31 सौ रुपए प्रति क्विंटल मिल रही है। यही कारण है कि जिन किसानों ने पिछले साल अपने खेत में धान नहीं बोया था, वे भी इस बार धान लगा चुके हैं।

राजस्व विभाग के सूत्रों के मुताबिक, पूरे प्रदेश में पटवारी अपने-अपने हल्का क्षेत्र में फसलों की गिरदावरी के काम में लग गए हैं। ये काम अगस्त से शुरु हुआ है। संभावना है कि राज्य भर में गिरदावरी का काम सितंबर के पूरे महीने में चलेगा। बताया गया है कि पटवारी गिरदावरी का काम मैन्युअल और ऑनलाईन दोनों सिस्टम से कर रहे हैं। किसानों के खातों में यह दर्ज किया जा रहा है कि उनके पास कुल जमीन में कितने रकबे में धान या अन्य कोई फसल लगाई गई है। राज्य में खरीफ सीजन में सबसे अधिक खेती धान की की जाती है।

छत्तीसगढ़ में इस साल अब तक 2712.63 हेक्टेयर रकबे में धान की बुवाई हो चुकी है। पिछले साल 2676.53 हेक्टेयर में धान बोया गया था। यह बुवाई धान की सीधी बोवाई के माध्यम से हुआ है। राज्य में धान का रोपा 1152.46 हेक्टेयर रकबे में लगाया गया है। इस तरह कुल मिलाकर 3865.09 हेक्टेयर में धान की बुवाई हो चुकी है। यह लक्ष्य का सौ प्रतिशत है। पिछले साल इसी अवधि में 3747.25 हेक्टेयर में धान की बुवाई हुई थी। दूसरी ओर राजस्व विभाग के सूत्रों का कहना है कि इस साल धान का रकबा बढ़ सकता है। वजह ये है कि राज्य में धान की सबसे अधिक कीमत 31 सौ रुपए प्रति क्विंटल मिल रही है। इस हिसाब से प्रति एकड़ धान की कीमत 65 हजार रूपए से अधिक होती है।

इधर रायपुर से लगे अभनपुर क्षेत्र से मिल रही जानकारी के अनुसार, जिन किसानों ने पिछले साल अपनी खेतों में धान नहीं लगाया था, वे भी इस साल धान लगाए हैं। ऐसे किसान पटवारियों से मिलकर उन्हें जानकारी दे रहे हैं कि कितने रकबे में धान लगाया है। ये किसान पटवारियों से रिकार्ड में सुधार करवा रहे हैं। दरअसल जो किसान एक साल भी धान नहीं बोते है, उनकी जमीन के रिकार्ड में पड़त जमीन लिख दी जाती है। ऐसे में संबंधित किसानों का धान बेचने के लिए पंजीयन भी नहीं किया जाता है।

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