CG : बिना सीमेंट खास फॉर्मूले से बना ये सायफन बांध, इंजीनियरिंग कोर्स का है हिस्सा, कैसे मैडम सिल्ली से बन गया माडमसिल्ली…
धमतरी। अंग्रेजों के जमाने का बना माडमसिल्ली बांध आज भी अपनी खासियत के चलते अपनी अलग पहचान रखता है. अंग्रेजो ने बिना सीमेंट और रेत इस बांध का निर्माण किया. अपने निर्माण के 10- साल पूरे करने के बाद भी ये बांध उसी मजबूती के साथ पानी की लहरों को रोके खड़ा है. बांध की एक नहीं कई ऐसी खासियतें हैं जो इसे बेहतरीन बांध की श्रेणी में खड़ा करता है. इस बांध का निर्माण इंग्लैड की मैडम सिल्ली ने कराया था.
माडमसिल्ली बांध अब सौ साल की उम्र पूरी कर चुका है. इतिहास के पन्नों में झांकर देखें तो पता चलता है साल 1923 में ये बांध बनकर तैयार हुआ. इस बांध की इंजीनियरिंग का नमूना इतना बेहतरीन है कि इसे अब इंजीनियरिंग के कोर्स में भी पढ़ाया जा रहा है. राजधानी रायपुर से करीब 110 किमी की दूरी पर धमतरी में बना माडमसिल्ली बांध का निर्माण अंग्रेजों ने कराया था. सिलियारी नाले पर बना ये बांध आज भी उसी मजबूती से खड़ा जैसे आज ही बना हो.
माडमसिल्ली बांध में करीब 5 दशमलव 8 टीएमसी के जलभराव की क्षमता है. माडमसिल्ली बांध गंगरेल बांध का सहायक बांध है साथ ही रविशंकर सागर बहुउद्देश्यीय परियोजना का अहम हिस्सा भी है. माडमसिल्ली बांध से इलाके के लाखों किसानों को फायदा होता है. इस बांध के पानी से सालों भर किसान अपनी खेत की सिंचाई करते हैं. किसानों के लिए जहां ये बांध जीवनदाता साबित होता है वहीं इस बांध से सैकड़ों मछुआरों का परिवार भी अपना पेट पालता है. माडमसिल्ली बांध का पानी बाद में जाकर गंगरेल बांध में मिल जाता है. इसके पानी से आधे छत्तीसगढ़ के खेतों को पानी मिलता है. इसके पानी से भिलाई, रायपुर और धमतरी शहर की प्यास बुझती है.
इस बांध की सबसे बड़ी खासियत इसके आटोमेटिक सायफन सिस्टम है. जिसमें कुल 34 गेट लगे हुए हैं. पानी जब एक खास स्तर तक पहुंचता है तब इसके चार बेबी साइफन गेट अपने आप खुल जाते हैं. गेट खुलते ही पानी नहर में जाने लगता है. अगर जलस्तर खतरनाक रूप से बढ़े तब इसके बाकी के 32 गेट भी अपने आप खुल जाते हैं. जैसे ही जल स्तर खतरे के नीचे जाता है गेट अपने आप बंद भी हो जाते हैं. बांध का ये आटोमेटिक सिस्टम भले ही 100 साल पुराना हो लेकिन इसकी इंजीनियरिंग आज भी बेजोड़ है.
माडमसिल्ली बांध एशिया में अपनी तरह का इकलौता बांध है. 100 साल बाद भी इसकी मजबूती देख कर लोग हैरान होते हैं. बिना सीमेंट और रेत के बने इस बांध की मजबूती आज भी लोहे की दीवार की तरह सख्त है. बांध को देखने आने वाले आज भी इसके फार्मूले को समझने की कोशिश करते हैं. बांध के निर्माण में उस वक्त लोहे के बुरादों का इस्तेमाल किया गया था. दीवार को मजबूत बनाने के लिए बजरी, मिट्टी और चूना को बैलों की घानी से मिलाकर मिक्स किया गया. तब जाकर ये मजबूत दीवार बांध की बनी.
3- 3 घन फीट के पत्थर तराश कर उनके बीच बजरी, मिट्टी और चूना को बैलों की घानी से मिले मसाले को मिलाया जाता था. बांध को बनाने के लिए जो मशीनें मंगाई गई वो साल 1921 में इंग्लैंड से आए थे. बांध को देखकर आप भी ये कहने को मजबूर हो जाएंगे कि ये दूसरा शतक लगाकर भी यूं ही तनकर खड़ा रहेगा. छत्तीसगढ़ के जिन कॉलेजों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई होती है वहां पर इस बांध की इंजीनियरिंग को भी पढ़ाया जाता है.