VIDEO : पहली बार देखा गया दुर्लभ पक्षी खरमोर..टिट्कारी जैसी आवाज, अद्भुत उछाल देख ग्रामीण अचम्भित
रायपुर । छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में पहली बार शाही पक्षी कहे जाने वाले खरमोर को देखा गया हैं। अंग्रेजी में इसे लेसर फ्लोरिकन के नाम से जाना जाता है। रायपुर- बिलासपुर मुख्यमार्ग पर स्थित नांदघाट से लगभग 9 किमी अंदर गिधवा परसदा बाँध के पास स्थित घास के मैदान में दो जोड़े खरमोर देखे गए हैं। लगभग 150 हेक्टेयर में फैले इस इलाके में बड़ी संख्या में दुर्लभ प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों का डेरा रहता हैं। शासन ने इस क्षेत्र को पक्षी विहार बनाने की योजना भी बना रखी हैं।
वर्षा ऋतू के समय में दिखाई देने वाला अति दुर्लभ पक्षी खरमोर के बारे में बर्ड कंजर्वेशन सोसायटी के अनुभव सिन्हा ने बताया कि वर्षा प्रारंभ होते ही खरमोर घास के मैदान एवं खेतों में दिखाई देते हैं। नर खरमोर का रंग काला होता है पर ऊपर के पंख सफेद होते हैं। सिर पर मोर की तरह कलंगी होती है जबकि मादा खरमोर का रंग भूरा होता है। ये आसानी से दिखाई नहीं देती। वर्षा ऋतु में इनके प्रजनन का समय होता है। मादा दो से चार अंडे भूमि पर ही देती है। उनका यह भी कहना है की छत्तीसगढ़ में यह कभी देखा नहीं गया है, यदि सूबे में इनकी आमद हुई है तो यह सुकूनदायक खबर हैं। शासन प्रशासन को इनके संरक्षण का उपाय करना चाहिए। यदि इनको हर साल आमत्रित करना है तो एक बड़े इलाके को घास के मैदान के रूप में फेंसिंग कर सुरक्षित करना पड़ेगा। इनके प्राकृतिक भोजन के लिए अनुकूल व्यवस्था करनी होगी।
उन्होंने बताया की खरमोर के नौ जोड़े इन दिनों मध्य प्रदेश की सैर पर भी हैं। इनमें से पांच जोड़ों ने खरमोर अभयारण्य पानपुरा (सरदारपुर, धार) में डेरा डाला है तो नीमच के जीरन और झाबुआ के मोरझिरी क्षेत्र में भी दो-दो जोड़े दिखाई दे रहे हैं।
पक्षियों के बारे में जानकारी रखने वाले मनहरण लाल पांडेय बताते हैं की पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों में मादा को रिझाने के लिए नर तमाम किस्म के करतब दिखाते हैं। जैसे मोर अपने पूरे पंखों को खोलकर नृत्य करके मोरनी को आकर्षित करते हैं। ऐसे ही खरमोर भी अपने अद्भुत उछाल के लिए जाने जाते हैं। प्रजनन काल में वे टिट्कारी जैसी आवाज निकालते हुए दो-दो मीटर ऊंची उछाल लगाते हैं। इस दौरान उनकी टिट्कारी की आवाज 300-400 मीटर दूर से सुनी जाती है। मादा को आकर्षित करने के लिए दिखाए जाने वाले उनके इस करतब को डिस्प्ले कहा जाता है और तमाम पक्षी प्रेमी इसे देखने की आस लगाए रखते हैं। लेकिन, अब इस पक्षी को देखना लगातार दुर्लभ होता जा रहा है।
जून में जारी भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून की रिपोर्ट बताती है कि कभी भारत के बड़े हिस्से में पाए जाने वाले खरमोर की आबादी अब सिर्फ चार राज्यों में सिमट कर रह गई है। इन जगहों पर भी अब सिर्फ 264 खरमोर बचे हैं। इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान, बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, कार्बेट फाउंडेशन और मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के वन विभाग के साथ मिलकर जुलाई से लेकर सितंबर 2017 के बीच गहन सर्वे किया गया था।
रिपोर्ट से इस बात का खुलासा होता है कि हमारे देश से यह खूबसूरत पक्षी किस तेजी से विलुप्त हो रहा है। वर्ष 2000 में खरमोर की संख्या 3500 के लगभग होने का आकलन किया जाता है। इस प्रकार, सिर्फ कुछ वर्षों के भीतर ही इसकी 80 फीसदी के लगभग आबादी समाप्त हो गई है।
लेसर फ्लोरिकन या खरमोर भारत में पाए जाने वाले बस्टर्ड प्रजाति के पक्षियों में से एक है। इन पक्षियों में ग्रेट इंडियन बस्टर्ड यानी गोडावण या सोनचिड़िया भी विलुप्त होने के कगार पर है। देश के अलग-अलग हिस्सों में अब दो सौ से भी कम गोडावण बचे होने का अनुमान किया जाता है। अगर बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो लगभग इसी तरह के पर्यावास को अपना घर बनाने वाला चीता हमारे यहां से विलुप्त हो चुका है और कराकल यानी स्याहगोश भी लगभग इसी कगार पर है।
खरमोर की आबादी समाप्त होने के पीछे कई कारणों को जिम्मेदार माना जाता है। एक तो खाने के लिए इस पक्षी का जमकर शिकार किया गया। फिर खेती में कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग के चलते कीटों की संख्या बेहद कम होती जा रही है। इसके चलते पक्षी के सामने पेट भरने की समस्या पैदा हो गई है। यह घसियाले मैदानों में रहने वाला पक्षी है और इसके रहवास में ज्यादा से ज्यादा अब खेती होने लगी है। इससे इस पक्षी को रहने के लिए जगह नहीं मिल रही है। घसियाले मैदानों में जमीन पर ही यह अपने घोसले बनाता है। लेकिन, आवारा कुत्ते अब उन घोसलों को नष्ट कर देते हैं या उनके चूजों का शिकार कर लेते हैं।
पक्षियों की दुर्लभ प्रजाति में शुमार खरमोर के जोड़े पहली बार छत्तीसगढ़ आए हैं। यही कारण है कि आस पास के ग्रामीण पक्षियों के बारे में जानकारी रखने वाले लोग इसे देखने से खुद को नहीं रोक पाए। इस क्षेत्र में अभी तक ये पक्षी नहीं देखे गए थे।
जानकारों के मुताबिक खरमोर पक्षी ऐसी जगहों में प्रजनन काल में ही आते हैं। वे मानसून के हिसाब से हर साल अगस्त में आते हैं और सितंबर अंत या अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में वापस लौट जाते हैं। खरमोर घास के मैदान को ज्यादा पसंद करते हैं। इन पक्षियों को जरा-सी भी दखलंदाजी पसंद नहीं हैं। इन्हें अहसास भी हो जाए कि कोई देख रहा है तो छिप जाते हैं। राजस्थान के अजमेर जिले माधोपुरा गाँव में खरमोर पक्षी की अटखेलियों का वीडियो देखें…