सूर्य ग्रहण का पीछा क्यों कर रहा है नासा, 8 अप्रैल की घटना से कौन-कौन से रहस्य सुलझेंगे?
नईदिल्ली। आज का सूर्य ग्रहण बेहद खास होने वाला है और अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा इस मौके का भरपूर फायदा उठाना चाहती है. जब धरती पर सूर्य ग्रहण होगा, तब नासा की तीन टीम जेट प्लेन से उस ग्रहण का पीछा करके उसे स्टडी करेगी. ऐसा इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि अमेरिका से इस तरह का सूर्य ग्रहण अब सीधा 20 साल बाद यानी 2044 में ही देखने को मिलेगा. 2024 का पहला सूर्य ग्रहण मुख्य रूप से अमेरिका और कनाडा में दिखाई देगा और भारत में नहीं.
8 अप्रैल का सूर्य ग्रहण एक पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा. जब सूरज और पृथ्वी के बीच से चंद्रमा गुजरता है, तब सूर्य ग्रहण होता है. वहीं, जब जब सूरज, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जाते हैं तो वो पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है. अमेरिका के समय के अनुसार पूर्ण सूर्य ग्रहण दोपहर सवा 2 बजे शुरू होगा. आइए जानते हैं कि नासा सूर्य ग्रहण का पीछा करके क्या पता लगाना चाहता है.
सूर्य ग्रहण के वक्त ही क्यों हो रही है स्टडी?
पूर्ण सूर्य ग्रहण अलग-अलग चरणों में संपन्न होता है, जिसमें से सबसे खास स्टेज होती है टोटेलिटी. इस दौरान चंद्रमा पूरी तरह से सूरज को ढक लेता है. नासा की रिपोर्ट के मुताबिक, यह इकलौता ऐसा समय होता है जब ग्रहण को बिना किसी चश्मे या प्रोटेक्शन के देखा जा सकता है. बाकी समय सोलर एक्लिप्स चश्मों का इस्तेमाल सुझाया जाता है. ग्रहण को स्टडी करने के लिए भी यह समय मुफीद होता है.
आम दिनों में सूरज की तेज चौंध में धरती से सूरज की कोरोना (बाहरी सौर वातावरण) लेयर दिखाई नहीं पड़ती है. लेकिन टोटेलिटी में इसे देखा जा सकता है. नासा की तीन में दो टीमें कोरोना की ही तस्वीर लेंगी. इससे जो डेटा हासिल होगी उससे कोरोना की संरचना और उसका तापमान का पता लगाया जा सकेगा. इस स्टडी से यह समझने में भी मदद होगी कि कैसे कोई कण कोरोना के जरिए सूरज से बचकर सोलर विंड बनाते हैं. सोलर विंड कणों का एक प्रवाह है जो लगभग 10 लाख मील प्रति घंटे की गति से सूरज से आता है. कभी-कभार ये धरती के सैटेलाइट कम्युनिकेशन में भी अड़चन पैदा करता है.
आइनोस्फीयर मापने से आम जनता को क्या फायदा होगा?
अमेरिकन एजेंसी की तीसरी टीम पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी इलेक्ट्रिकली चार्जड लेयर यानी आइनोस्फीयर को मापेगी. इससे मिले डेटा से पृथ्वी के वायुमंडल पर सूरज के प्रभाव को परखा जाएगा. आयनोस्फीयर वाली टीम में काम कर रहे प्रोफेसर भरत कुंदुरी ने कहा कि ग्रहण मूल रूप से एक कंट्रोल्ड एक्सपेरिमेंट के तौर पर काम करता है. उन्होंने कहा, ‘इस स्टडी से यह समझने में मदद मिलेगी कि कैसे सोलर रेडिएशन में बदलाव धरती के आयनोस्फीयर को प्रभावित कर सकता है. आयनोस्फीयर प्रभावित होने पर रडार और जीपीएस जैसी रोजाना में इस्तेमाल होने वाली टेक्नोलॉजी पर असर पड़ता है.’
क्यों नासा को 2 मिनट ज्यादा देर के लिए दिखेगा ग्रहण?
नासा ने इससे पहले भी ग्रहण के समय जेट का इस्तेमाल किया हुआ है. साल 2017 में पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान भी ऐसे ही जेट प्लेन से सूरज के कोरोना की तस्वीर खींची गई थी. हालांकि, इस बार ये जेट प्लेन बेहतर कैमरा सेटअप से लैस हैं. हाई-रिज़ॉल्यूशन, हाई-स्पीड वाले कैमरे से सूर्य की परिक्रमा करने वाले एस्टेरॉयड को खोजने में मददगार होंगे.
NASA के WB-57 विमान आसमान में 50,000 फीट की ऊंचाई पर बादलों के ऊपर उड़ान भरेंगे. इतनी ऊंचाई से ये फायदा है कि खराब मौसम होने पर भी ग्रहण को स्टडी किया जा सकेगा. चूंकि विमान 460 मील प्रति घंटे की रफ्तार से यात्रा कर सकते हैं, वो टोटेलिटी में बिताए गए समय को बढ़ाने में भी सक्षम हैं. जमीन के किसी भी पाॅइंट पर ग्रहण साढ़े चार मिनट से ज्यादा नहीं रहेगा. जबकि विमानों को अतिरिक्त समय तक दिखाई देगा जो लगभग 25 प्रतिशत ज्यादा यानी 6 मिनट और 22 सेकंड से ज्यादा का समय होगा. ज्यादा देर टोटेलिटी में बिताने से, उतना ही ज्यादा डेटा इकट्ठा किया जा सकेगा.