December 27, 2024

दिल्ली हिंसा में गोली से ज्यादा घातक साबित हुई ‘गुलेल’

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नई दिल्ली | उत्तर-पूर्वी जिले के कई संवेदनशील इलाकों को तबाह करने, कई निरीह निर्दोष लोगों की जान लेने, करोड़ों रुपये की संपत्ति स्वाहा करने/कराने में गोली-बम से ज्यादा घातक साबित हुई ‘गुलेल’।

यह कोई आम गुलेल नहीं थीं, जिसे बच्चा या बड़ा कोई भी कहीं भी खड़े-खड़े चला देता। ये खास किस्म की गुलेलें थीं, वह भी एक नहीं, सैकड़ों की तादाद में। तकरीबन हर दो-चार मकान छोड़कर। हिंसा की जांच कर रही दिल्ली पुलिस अपराध शाखा की एसआईटी की टीमों को 10-15 घरों के बाद किसी न किसी एक घर की ऊंची छत पर गुलेल मौजूद मिली है।

दरअसल, उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले के मुस्तफाबाद, मौजपुर, करावल नगर, शिव विहार, कर्दमपुरी, सीलमपुर, ब्रह्मपुरी, भजनपुरा आदि इलाकों में सोमवार से फैली हिंसा की जांच शुक्रवार को शुरू हो गई। जांच के लिए दिल्ली पुलिस अपराध शाखा एसआईटी की दो टीमें गुरुवार को गठित की गई थीं। अगले ही दिन यानी शुक्रवार से इन टीमों ने जांच शुरू कर दी।

एसआईटी में शामिल एक सहायक पुलिस आयुक्त स्तर के अधिकारी ने शनिवार को बताया, “एक टीम के कुछ पुलिस अफसर आम आदमी पार्टी ताहिर हुसैन की भूमिका, आईबी के सुरक्षा सहायक अंकित शर्मा की मौत की जांच कर रही है। दूसरी टीम गोकुलपुरी सब-डिवीजन के एसीपी के रीडर हवलदार रतन लाल की मौत की जांच कर रही है, जबकि बाक टीमें अन्य इलाकों में फैले दंगे की जांच में जुट गई हैं।”

एसआईटी टीमों की नजर यूं तो हिंसाग्रस्त हर स्थान पर है। इन सबमें मगर एसआईटी ने सबसे ऊपर रखा है जाफराबाद, मुस्तफाबाद, गोकुलपुरी, शिव विहार, शेरपुर, नूर-ए-इलाही, भजनपुरा, मौजपुर, घोंडा चौक, बाबरपुर, कबीर नगर, कर्दमपुरी और खजूरी खास, चांद बाग। दो दिन हुए हिंसा के नंगे नाच में इन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा तबाही हुई है। इन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा बेगुनाह मारे गए। इन्हीं इलाकों में सबसे ज्यादा लोग बुरी तरह जख्मी हुए। इन्हीं इलाकों के गली-कूचों में मौजूद छोटे-छोटे अस्पतालों में आज भी लोग इलाज करा रहे हैं।

जांच कर रही दिल्ली पुलिस अपराध शाखा की टीमें उन तमाम अस्पतालों में भी शुक्रवार-शनिवार को गईं, जिनमें दंगों में घायलों का इलाज चल रहा है।

एसआईटी टीम के एक इंस्पेक्टर के मुताबिक, “यूं तो गुरु तेग बहादुर और लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में भी बड़ी तादाद में घायल दाखिल हैं। इनमें से कई लोगों की मौत हो गई। इन दोनों ही अस्पतालों में चूंकि दिल्ली पुलिस के ड्यूटी कांस्टेबिल नियमित रूप से तैनात हैं। लिहाजा, यहां से आंकड़े, तथ्य जुटाने में हमें आसानी हो जा रही है। मुश्किल है घनी आबादी के बीच छोटे-छोटे नर्सिग होम्स में इलाज करा रहे लोगों को तलाशना।”

इस परेशानी से गुरुवार और शुक्रवार को जनरपट की टीम को भी रूबरू होना पड़ा। काफी घनी आबादी के बीच जाकर ओल्ड मुस्तफाबाद में अलहिंद अस्पताल मिला। तीन मंजिला इस छोटे से अस्पताल में मरीज जमीन पर भी लेटे हुए इलाज करा रहे थे। इलाज कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि ये सभी हिंसक वारदात में घायल हुए हैं। रूह कंपा देने वाला यह सच तो एक अस्पताल का है। अपराध शाखा की जांच टीमें महज दो दिन में ही ऐसे 7 से ज्यादा छोटे अस्पतालों और नर्सिग होम्स में जा चुकी है, ताकि गवाह, सबूत, बयान पुख्ता और ज्यादा से ज्यादा इकट्ठे किए जा सकें।

जांच में जुटी एसआईटी ने शनिवार को मुस्तफाबाद, भजनपुरा मेन रोड, गोकुलपुरी, शिव विहार और करावल नगर इलाके में जले मिले कई वाहनों को फोटोग्राफी/वीडियोग्राफी कराके कब्जे में लिया। जांच में जुटीं टीमें सबूत तो गली-मुहल्लों-सड़क से उठा ले रही हैं। इन टीमों को मगर गवाह तलाशने में बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। वजह, कोई पुलिस के फेर में पड़कर अड़ोस-पड़ोस में दुश्मनी मोल नहीं लेना चाह रहा है। ऐसे में अदालत में जांच किस करवट बैठेगी? पूछे जाने पर अपराध शाखा के डीसीपी स्तर के एक अधिकारी ने जनरपट से कहा, “घायलों और उनके परिजनों के बयान जांच को अदालत में पुष्ट करने में मददगार होंगे। फिर भी हमारी कोशिश है कि कुछ गवाह मौका-ए-वारदात के मिल जाते तो जांच और पुख्ता तरीके से अदालत के पटल पर रखी जा सकती है।”

एसआईटी की टीम ‘बी’ के एक सदस्य के मुताबिक, इन दंगों में कई निरीह जानवर भी मार या जला डाले गए। मरने वालों की सही संख्या फिलहाल तय कर पाना मुश्किल है, क्योंकि तमाम घायलों का इलाज अभी जारी है।

अपराध शाखा की टीम ‘बी’ में शामिल एक सहायक पुलिस आयुक्त स्तर के अधिकारी ने खुद की पहचान उजाकर न करने की शर्त पर बताया, “जांच बहुत विस्तृत है। काफी वक्त लग सकता है।”

इसी अधिकारी ने आगे कहा, “शुक्रवार और शनिवार को सबसे ज्यादा खतरनाक कहिए या फिर गंभीर बात जो सामने आई, वह है, ओल्ड मुस्तफाबाद सहित कुछ अन्य इलाकों में छतों पर गुलेलों की बरामदगी। गुलेलें भी कोई छोटी-मोटी नहीं। ऐसी गुलेलें हैं, जिन्हें दो-दो तीन-तीन लोगों के सहयोग से चलाया जाता है। इन्हीं गुलेलों के जरिए 24 और 25 फरवरी को हुए दंगों में तबाही मचाई गई थी। इनमें से कई गुलेलें जब्त कर ली गई हैं। इन्हीं गुलेलों से 50-50 मीटर दूर तक पेट्रोल बम, मिर्ची बम और पेट्रोल में भीगे जलते हुए कपड़ों की गांठें दूसरों की ओर फेंकी गई थीं।”

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