November 18, 2024

व्यापमं फर्जीवाड़ा : सॉल्वर बैठाकर पुलिस भर्ती परीक्षा की पास, 11 साल नौकरी भी कर ली, अब आरक्षक को मिली 14 साल की सजा

भोपाल। व्यापमं का जिन्न फिर बाहर निकला है। पुलिस भर्ती परीक्षा 2013 में परीक्षा में सॉल्वर बैठाकर फर्जी तरीके से आरक्षक बने एक आरोपी को कोर्ट ने 14 साल की सजा सुनाई है। मजेदार बात ये है कि आरक्षक 11 साल की नौकरी कर चुका था और मामले का खुलासा किसी और ने नहीं, बल्कि फर्जी आरक्षक के एक दूर के रिश्तेदार की शिकायत पर ही हुआ है।

20 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा
सॉल्वर बैठाकर परीक्षा पास कर आरक्षक बने मुरैना निवासी धर्मेंद्र शर्मा (30) को एसटीएफ कोर्ट ने दो मामलों में 7-7 साल की सजा सुनाई है। साथ ही 20 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। एसटीएफ की जांच के बाद एसटीएफ कोर्ट के जज नीति राज सिंह सिसौदिया ने चार माह की सुनवाई के बाद आरोपी को सजा सुनाई।

एसटीएफ कोर्ट की कड़ी टिप्पणी
एसटीएफ कोर्ट ने आरोपी को सजा सुनाने के दौरान कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि अयोग्य एवं बेईमान अभ्यर्थी के शासकीय सेवक के रूप में चयन होने से दुष्परिणामों की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ऐसे अपराधों की पुनरावृत्ति रोकने और व्यवस्था पर लोगों का विश्वास स्थापित रखने अभियुक्त को पर्याप्त दंड देना जरूरी है। ऐसे अपराध से पूरा समाज व युवा वर्ग प्रभावित होता है।

इंदौर के विजय नगर थाने में पदस्थ है आरक्षक
इंदौर के विजय नगर थाने में बतौर आरक्षक पदस्थ मुरैना के आरोपी धर्मेंद्र शर्मा की शिकायत 2022 में एसटीएफ के भोपाल मुख्यालय पर हुई। आरोपी ने दो बार अप्रैल 2013 व सितंबर 2013 में सॉल्वर बिठाकर परीक्षा दी। अप्रैल की परीक्षा में वह असफल रहा, लेकिन सितंबर की परीक्षा में सफल होकर बिना परीक्षा दिए आरक्षक बन गया। मामले की शिकायत आरक्षक के दूर के रिश्तेदार ने 2022 के अंत में एसटीएफ में की थी। मामला दर्ज करने के बाद एडीजी पंकज श्रीवास्तव ने एसपी राजेश भदौरिया के नेतृत्व में जांच टीम बनाई थी।

सॉल्वर से डील करने वाले ताऊ की मौत
2013 में आरोपी धर्मेंद्र की उम्र 19 साल थी। परीक्षा में सॉल्वर बिठाने की डील उसके ताऊ ने की थी। जब शिकायत होने के बाद जांच शुरू हुई तब तक ताऊ की मौत हो चुकी थी। इस कारण 10 साल पुराने सॉल्वर की पड़ताल में मोबाइल व अन्य साक्ष्य नहीं मिल सके। ऐसे में एसटीएफ अब तक सॉल्वर तक नहीं पहुंच सकी। इस मामले की सुनवाई लेट न हो इसलिए एडीजी ने नोडल अधिकारी की भी नियुक्ति की। जिससे कोर्ट में न्यायालयीन कार्रवाई 4 माह में पूरी होकर आरोपी को सजा सुना दी गई।

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