राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान 72 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने किराने के सामान के लिए अधिक भुगतान किया
नई दिल्ली। राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान काफी उपभोक्ताओं को कई आवश्यक सामान और किराने के उत्पादों के लिए अधिक भुगतान करना पड़ा, क्योंकि व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं ने छूट कम कर दी और साथ ही वस्तुएं उनके निर्धारित मूल्य (एमआरपी) से अधिक दाम पर बेची गई।
यह बात लोकलसर्कल्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आई है.यह सर्वेक्षण राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान और बाद में उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई जरूरी वस्तुओं को लेकर उनके अनुभवों को बयां करता है. सर्वेक्षण में भारत के 210 जिलों से 16,500 से अधिक उपभोक्ताओं ने अपने अनुभव साझा किए.
कई उपभोक्ताओं ने कहा कि राष्ट्रव्यापी बंद 1.0 से 4.0 के दौरान, उन्होंने बंद से पहले की तुलना में कई आवश्यक और किराने के उत्पादों के लिए अधिक भुगतान किया. इसका कारण निर्माता द्वारा कीमतों में वृद्धि करना नहीं रहा, बल्कि व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं ने छूट कम कर दी और कुछ उपभोक्ताओं को एमआरपी से अधिक दाम पर भी सामान बेचा गया.
सर्वेक्षण में यह सामने आया कि 72 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने राष्ट्रव्यापी बंद 1.0 से लेकर 4.0 के दौरान पैकेज्ड फूड और किराने के सामान के लिए अधिक भुगतान किया. वस्तुओं पर मिली कम छूट और एमआरपी से अधिक दाम वसूलना इसके प्रमुख कारण रहे.
सर्वे में सामने आया कि अनलॉक 1.0 के माध्यम से बंद में मिली कुछ राहत के बावजूद, 28 प्रतिशत उपभोक्ता अभी भी उनके दरवाजे पर ही पैकिंग का खाना और किराने का सामान ले रहे हैं.उपभोक्ताओं से पूछा गया कि 22 मार्च से पैकेट बंद खाद्य पदार्थ और किराने की वस्तुओं की खरीदारी को लेकर मूल्य के संबंध में उनके क्या अनुभव हैं.
इस सवाल पर 25 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने कहा कि उन्होंने समान वस्तुओं के लिए राष्ट्रव्यापी बंद से पहले के दाम पर ही खरीदारी की है, जबकि 49 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने बंद से पहले की तुलना में उसी वस्तु का अधिक दाम चुकाना पड़ा, क्योंकि अब पहले की अपेक्षा छूट कम थी.
इसके अलावा 23 प्रतिशत लोगों ने कहा कि बंद से पहले की तुलना में समान वस्तुओं के लिए अधिक भुगतान करना पड़ा, क्योंकि उन्हें एमआरपी से कई गुना अधिक भुगतान करना पड़ा.बता दें कि ऑनलाइन या खुदरा स्टोर पर एमआरपी से अधिक दाम वसूलना कानूनी मेट्रोलॉजी अधिनियम का उल्लंघन है.