गर्व की बात : हम भारतीय जिस तरीके से खाते हैं, वो धरती के लिए सबसे अच्छा! WWF की रिपोर्ट में दावा
नई दिल्ली। हर देश का खान-पान अलग होता है। उन्हें तैयार करने का तरीका अलग होता है। लेकिन अगर कोई पूछे कि दुनिया में खान-पान का सबसे अच्छा तरीका किस देश का है तो आप बेहिचक भारत का नाम ले सकते हैं। ये हम नहीं कह रहे बल्कि वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) की रिपोर्ट कह रही। हम भारतीय जिस तरीके से खाते हैं, वह धरती के लिए सबसे अच्छा है। क्लाइमेट चेंज के लिहाज से सबसे अच्छा है।
मन में सवाल आ सकता है कि खाने-पीने के तरीके का आखिर धरती की सेहत से क्या संबंध हो सकता है? क्लाइमेट चेंज से क्या संबंध हो सकता है? तो इसका जवाब छिपा है इसमें कि आप खा-पी क्या रहे हैं, उन्हें तैयार कैसे कर रहे हैं। खाना तैयार करने में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कितना होता है, इससे तय होता है कि धरती की सेहत के लिहाज से वह ठीक है या नहीं।
WWF ने अपनी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’ में भारत के खाने के तरीके को सराहा है। रिपोर्ट कहती है कि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (G20 देशों) में भारत का खानपान सबसे ज्यादा सही है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर 2050 तक दुनिया के सभी देश भारत के खाने के तरीके को अपना लें, तो पर्यावरण को सबसे कम नुकसान होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका का खानपान सबसे खराब है।
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘अगर 2050 तक दुनिया का हर व्यक्ति मौजूदा बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के खानपान को अपना ले, तो खाने से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से 263 प्रतिशत ज्यादा बढ़ जाएगा। इतना ही नहीं, हमें अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए एक पृथ्वी की जगह सात पृथ्वियों की जरूरत होगी।’
रिपोर्ट में भारत के ‘मिलेट मिशन’ की भी तारीफ की गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर 2050 तक दुनिया के सभी देश भारत के खाने के तरीके को अपना लें, तो हमें अपनी खाने की जरूरतें पूरी करने के लिए एक से भी कम (0.84) धरती की जरूरत होगी। भारत में खाने की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन इतना कम है कि दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ेगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, अर्जेंटीना के खानपान को अपनाने पर दुनिया को सबसे ज्यादा 7.4 धरतियों की जरूरत होगी। इसका मतलब है कि सही खानपान के मामले में अर्जेंटीना सबसे पीछे है। उसके बाद ऑस्ट्रेलिया (6.8), अमेरिका (5.5), ब्राजील (5.2), फ्रांस (5), इटली (4.6), कनाडा (4.5) और ब्रिटेन (3.9) का नंबर आता है।
बेहतर स्थिति में भारत (0.84) के बाद इंडोनेशिया (0.9) का नंबर है। उसके बाद चीन (1.7), जापान (1.8) और सऊदी अरब (2) का नंबर आता है।
रिपोर्ट में जलवायु के हिसाब से मजबूत मोटे अनाजों (पौष्टिक अनाज) को बढ़ावा देने की भारत की कोशिशों की भी सराहना की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय मिलेट अभियान’ को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इससे देश में इस पुराने अनाज की खपत बढ़े। यह अनाज सेहत के लिए तो अच्छा है ही, साथ ही जलवायु परिवर्तन के हिसाब से भी यह काफी मजबूत है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगर हम सही तरीके का खाना खाएंगे, तो हमें खाना उगाने के लिए ज्यादा जमीन की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे चरागाहों को दूसरी चीजों के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा, जैसे कि कुदरत को फिर से हरा-भरा बनाना और कार्बन उत्सर्जन को कम करना।’
रिपोर्ट में प्रोटीन के दूसरे विकल्पों को बढ़ावा देने की बात भी कही गई है, जैसे कि दालें, पौष्टिक अनाज, पौधों से बनने वाला मीट और पोषक तत्वों से भरपूर एल्गी (एक तरह का शैवाल)।