Global warming : धरती पर जीना हो जाएगा मुहाल, 5 साल में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ेगा तापमान
नईदिल्ली। ग्लोबल वार्मिंग अब दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बनने जा रही है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगले 5 सालों में दुनिया में तापमान में रिकॉर्डतोड़ बढ़ोतरी होगी और ये सारी सीमाएं तोड़ देगा. रिसचर्स का कहना है कि इस बात की 66 फीसदी संभावना है कि दुनिया का तापमान साल 2027 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी की सीमा को तोड़ देगा. यानि अगले 5 सालों में लोगों का जीवन जीना मुहाल हो जाएगा और चारों तरफ हाहाकार की स्थिति होगी.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अलनीनो और मानव गतिविधियों से जो उत्सर्जन बढ़ रहा है, उस वजह से इसकी संभावना काफी बढ़ रही है. ग्लोबल वार्मिंग से तापमान बढ़ने की आशंका ने वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है. दरअसल धरती पर ग्लोबल वार्मिंग लगातार बढ़ रही है. तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें कमी नहीं आ रही हैं. गौर करने वाली बात है 2015 पैरिस समझौते के तहत तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य रखा गया था. अब ये उस सीमा को भी तोड़ता हुआ नजर आ रहा है.
तापमान बढ़ने से आएंगी विनाशकारी आपदाएं
एक दशक तक यदि हर साल 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तापमान जाता है तो दुनिया को कई विनाशकारी आपदाओं से लड़ना होगा. इसमें लंबे समय तक हीटवेव का दौर, ज्यादा तीव्र तूफान और जंगलों में भयानक आग प्रमुख हैं. लेकिन अगले कुछ सालों में तापमान के किसी स्तर को पास करने का मतलब ये नहीं होगा कि पेरिस समझौते की लिमिट टूट गई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्सर्जन में तेजी से कटौती करके ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अभी भी समय है.
बता दें कि साल 2020 से विश्व मौसम विज्ञान संगठन किसी एक साल में दुनिया में तापमान की 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार करने का अनुमान जता रही है. इसके बाद उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि आने वाले पांच सालों में तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस को तोड़ने की संभावना 20 फीसदी से कम है. पिछले साल ये बढ़कर 50 फीसदी हो गया था और अब ये बढ़कर 66 फीसदी हो गया है.
तापमान के 1.5 डिग्री से ऊपर जाने क्या मतलब है?
दरअसल ये आंकड़ा दुनिया के तापमान को मापने का कोई पैमाना नहीं है, बल्कि ये इस बात की जानकारी देता है कि दीर्घकालिक वैश्विक औसत की तुलना में पृथ्वी कितनी अधिक गर्म हुई है या फिर कितनी ठंडी हुई है. वैज्ञानिक 1850-1900 के बीच की अवधि के औसत तापमान के डेटा का इस्तेमाल इसलिए करते हैं ताकि ये जान सके कि आधुनिक समय मे कोयले, तेल और गैस पर हमारी निर्भरता से पहले दुनिया कितनी गरम थी.
दशकों तक उनका मानना था कि अगर दुनिया 2 डिग्री सेल्सियस के आसपास गर्म होती है तो इसके खतकनाक प्रभाव होंगे, लेकिन 2018 में उन्होंने इसे संसोधित करते हुए 1.5 डिग्री सेल्सियस कर दिया. बता दें कि वैज्ञानिकों ने 2016 को दुनिया का सबसे गर्म साल बताया था. अब रिसचर्स का मानना है कि 2027 से पहले किसी भी साल ये रिकॉर्ड टूट सकता है.
अल नीनो से क्या फर्क पड़ेगा?
मानव गतिविधियों की वजह से लगातार कार्बन उत्सर्जन बढ़ रहा है. महामारी के दौरान इसमें कमी देखी गई थी लेकिन अब ये फिर से बढ़ रहा है, अल नीनो का असर पूरे दुनिया के मौसम पर पड़ता है. इस वजह से मौसम चक्र बुरी तरह प्रभावित होता है. वहीं ला नीना की वजह से जलवायु कुछ हद तक ठंडी रहती है. पिछले तीन सालों में दुनिया ला-नीना का अनुभव कर रही है. जिसने काफी हद तक जलवायु के गर्म होने को कम किया है. लेकिन अल नीनो की वजह से समुद्र की सतह के तापमान में जो बढ़ोतरी होगी वो तापमान को नए उच्च स्तर पर ले जाएगा.