‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को संसद से कैसे पास कराएगी मोदी सरकार? 69 सांसदों का वोट हासिल करना है चुनौती
वन नेशन वन इलेक्शन (ONOE) पर कोविंद समिति के प्रस्ताव को मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी है. प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद सरकार अब संसद में विधेयक लाएगी और वहीं पर उसका असली टेस्ट होगा. बिल को संसद के ऊपरी सदन यानी राज्यसभा से पास कराने में सरकार को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा, लेकिन लोकसभा में लड़ाई मुश्किल दिख रही है. निचले सदन में जब बिल पर वोटिंग की बारी आएगी तो सरकार को 69 सांसदों की जरूरत पड़ेगी जो उसके साथ खड़े रहें.
कोविंद समिति ने कुल 62 राजनीतिक दलों से एक राष्ट्र एक चुनाव पर राय मांगी थी, जिनमें से 47 ने अपने जवाब भेजे, जबकि 15 ने जवाब नहीं दिया. 47 राजनीतिक पार्टियों में से 32 पार्टियों ने कोविंद समिति की सिफारियों का समर्थन किया, जबकि 15 दल विरोध में रहे. जिन 32 पार्टियों ने कोविंद समिति की सिफारिशों का समर्थन किया उसमें ज्यादातर बीजेपी की सहयोगी पार्टियां हैं और या तो उनका उसके प्रति नरम रुख रहा है. नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी जो मोदी सरकार 2.0 में साथ खड़ी रहती थी उसका रुख भी अब बदल गया है. वहीं, जिन 15 पार्टियों ने पैनल की सिफारिशों का विरोध किया उसमें कांग्रेस, सपा, आप जैसी पार्टियां हैं.
क्या है संसद में नंबर गेम?
लोकसभा चुनाव-2024 के बाद 271 सांसदों ने कोविंद समिति की सिफारिशों का समर्थन किया. इसमें से 240 सांसद बीजेपी के हैं. लोकसभा में एनडीए के आंकड़े की बात करें तो ये 293 है. जब ये बिल लोकसभा में पेश होगा और वोटिंग की बारी आएगी तो उसे पास कराने के लिए सरकार को 362 वोट या दो तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी. संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अगर YSRCP, BJD और गैर-एनडीए दलों का साथ मिल जाता है तो भी 362 का आंकड़ा छूने की संभावना नहीं है.
हालांकि ये स्थिति तब होगी जब वोटिंग के दौरान लोकसभा में फुल स्ट्रेंथ रहती है. लेकिन 439 सांसद (अगर 100 सांसद उपस्थित नहीं रहते हैं) ही वोटिंग के दौरान लोकसभा में रहते हैं तो 293 वोटों की जरूरत होगी. ये संख्या एनडीए के पास है. इसका मतलब है कि अगर विपक्षी पार्टियों के सभी सांसद वोटिंग के दौरान लोकसभा में मौजूद रहते हैं तो संविधान संशोधन बिल गिर जाएगा.
राज्यसभा की बात करें तो यहां पर भी हालात सरकार के पक्ष में नहीं दिख रहे हैं. विधेयक को ऊपरी सदन से पास कराने के लिए 164 सांसदों की जरूरत पड़ेगी ( 245 का दो तिहाई). लेकिन अभी राज्यसभा में 234 सांसद हैं. एनडीए के पास 115 सांसद हैं. इसमें से 6 नामित सांसदों को जोड़ दें तो ये आंकड़ा 121 हो जाता है. अकेले बीजेपी के 96 सांसद हैं. राज्यसभा में वोटिंग के दौरान अगर सभी सदस्य मौजूद रहते हैं तो बहुमत का आंकड़ा 156 होगा.
NDA की 27 पार्टियां ONOE के साथ
कुल मिलाकर एनडीए की 27 पार्टियां वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में हैं. सिर्फ नागा पीपुल्स फ्रंट ही विरोध में खड़ी है. जबकि इंडिया गठबंधन की 10 पार्टियां विरोध कर रही हैं. वहीं, 10 पार्टियां ऐसी हैं जो ना एनडीए का हिस्सा हैं और ना ही इंडिया का हिस्सा हैं. इसमें 6 पार्टियां चाहती हैं कि देश में वन नेशन वन इलेक्शन होना चाहिए, जबकि 4 पार्टियां सरकार के इस कदम का विरोध कर रही हैं. जो 15 पार्टियां विरोध में हैं, उसमें कांग्रेस, आप, बसपा, सीपीआईएम, डीएमके, टीएमसी, सीपीआई, एनपीएफ, AIUDF, AIMIM, MDMK, VCK, CPI (M-L), SDP (I) शामिल हैं.
पक्ष में कौन सी पार्टियां?
वन नेशन वन इलेक्शन के साथ जो पार्टियां हैं उसमें बीजेपी, AJSU, अपना दल (सोनेलाल), AGP, LJP (R), NDPP, SKM, मिजो नेशनल फ्रंट, जेडीयू, UPPLA, शिवसेना (शिंदे गुट), टीडीपी हैं. बीजेपी की पूर्व सहयोगी अकाली दल और AIADMK ने भी वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया है. वहीं जिन पार्टियों ने समिति के प्रस्ताव पर जवाब नहीं दिया उनमें BRS, IUML, नेशनल कॉन्फ्रेंस, JDS, JMM, केरल कांग्रेंस (M), एनसीपी (शरद पवार), आरजेडी, RSP, YSRCP, TDP, RLD, शिरोमणि अकाली दल (मान), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट.
क्या कहता है अनुच्छेद 368?
इस अनुच्छेद के मुताबिक, संविधान संशोधन विधेयक को प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से पारित किया जाता है. सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और सदन के उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से विधेयक पास होना चाहिए. प्रत्येक सदन को अलग से विधेयक पारित करना होता है. दोनों सदनों के बीच असहमति के मामले में संयुक्त बैठक आयोजित करने का कोई प्रावधान नहीं है.
संसद के दोनों सदनों द्वारा विधिवत पारित होने और राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित होने के बाद जहां आवश्यक हो, विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिये प्रस्तुत किया जाता है. राष्ट्रपति को विधेयक पर अपनी स्वीकृति देनी आवश्यक है. वह न तो विधेयक पर अपनी सहमति रोक सकता है और न ही विधेयक को पुनर्विचार के लिये संसद को लौटा सकता है. राष्ट्रपति की सहमति के बाद बिल एक अधिनियम (यानी एक संवैधानिक संशोधन अधिनियम) बन जाता है और अधिनियम की शर्तों के अनुसार संविधान में संशोधन किया जाता है.
लोकसभा में किस पार्टी के कितने सांसद
बीजेपी-240
कांग्रेस-99
सपा-37
TMC- 29
DMK- 22
टीडीपी- 16
जेडीयू-12
शिवसेना (UBT)-9
एनसीपी (शरद पवार)- 8
शिवसेना (शिंदे गुट) – 7
YSRCP- 4
आरजेडी-4
सीपीआई (एम)- 4
IUML- 3
AAP-3
JMM- 3
जनसेना पार्टी-2
सीपीआई (एम-एल)- 2
जेडीएस-2
VCK-2
सीपीआई-2
आरएलडी- 2
एनसी-2
UPPL-1
AGP- 1
HAMS-1
केरल कांग्रेस-1
RSP-1
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी-1
VOTPP-1
ZPM-1
SAD-1
RLTP-1
भारतीय आदिवासी पार्टी -1
सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा-1
MDMK-1
आजाद समाज पार्टी-1
अपना दल (सोनेलाल)-1
AJSU पार्टी- 1
AIMIM-1
निर्दलीय-7