November 23, 2024

SC ने फैसले में अल्पसंख्यक दर्जे का सिर्फ पैमाना सेट किया, AMU का दर्जा तय करने को बैठेगी नई बेंच

नई दिल्ली। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज अपना फैसला सुना दिया है। 7 जजों की बेंच ने 4:3 से अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम अदालत की बेंच ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा है,लेकिन उसके लिए मानदंड बनाए हैं। इसके बाद इसे 3 जजों की रेगुलर बेंच के पास भेज दिया है। इससे पहले सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस पीठ में सीजेआई के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस एससी शर्मा शामिल थे।

तीन जजों की बेंच के पास पहुंचा मामला
एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर बैठी 7 जजों की बेंच ने 4:3 से फैसल सुनाने के बाद अब इसे 3 जजों की नई बेंच के पास भेज दिया गया है। अभी के हिसाब से अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के लिए पैमाना सेट किया है। इसका अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा। 7 जजों की ओर से बनाए नए मानदंडों को ध्यान में रखते हुए नई तीन जजों की बेंच इसपर फैसला लेगी।

अल्पसंख्यक का दर्जा मिला पर मानंदड के साथ
बहुमत के फैसले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने के लिए मानदंड निर्धारित किए गए हैं। इस निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है कि AMU के अल्पसंख्यक संस्थान होने का निर्धारण वर्तमान मामले में बताए गए परीक्षणों और मानदंडों के आधार पर किया जाएगा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मामले से संबंधित दस्तावेज मुख्य न्यायाधीश (CJI) के समक्ष रखे जाएं ताकि 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता पर विचार करने के लिए एक नई पीठ का गठन किया जा सके। जनवरी 2006 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के उस कानून के प्रावधान को रद्द कर दिया था जिसके तहत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को अल्पसंख्यक दर्जा दिया गया था।

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट की 7-सदस्यीय पीठ ने 4:3 के बहुमत से फैसला दिया है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक का दर्जा पाने का हकदार है। सीजेआई ने कहा कि Azeez Basha के मामले में लिया गया निर्णय रद्द कर दिया गया है, और अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे का निर्धारण वर्तमान मामले में निर्धारित मानदंडों के आधार पर किया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर निर्णय लेने और मामले की सही स्थिति का निर्धारण करने के लिए दस्तावेजों को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाएगा, ताकि एक बेंच गठित की जा सके जो इस विषय की समीक्षा कर सके

अदालत को संस्थान की उत्पत्ति पर विचार करना होगा-CJI
कुछ विश्वविद्यालय ऐसे थे जो शिक्षण कॉलेज थे और शिक्षण कॉलेजों को शिक्षण विश्वविद्यालयों में बदलने की प्रक्रिया एक शैक्षणिक संस्थान बनाने की प्रक्रिया है और इसलिए इसे इतने संकीर्ण रूप से नहीं देखा जा सकता है। यह नहीं कहा जा सकता कि सिर्फ इसलिए कि अधिनियम की प्रस्तावना ऐसा कहती है, इसलिए एक संस्थान कानून द्वारा बनाया गया है। मौलिक अधिकारों को वैधानिक भाषा के अधीन नहीं किया जा सकता है और औपचारिकता को वास्तविकता के लिए रास्ता देना चाहिए। अदालत को संस्थान की उत्पत्ति पर विचार करना होगा और अदालत को यह देखना होगा कि संस्थान की स्थापना के पीछे कौन था,यह देखना होगा कि जमीन के लिए किसे धन मिला और क्या अल्पसंख्यक समुदाय ने मदद की थी?

चीफ जस्टिस ने कहा कि हमने माना है कि एक अल्पसंख्यक संस्थान होने के लिए इसे केवल अल्पसंख्यक की ओर से स्थापित किया जाना चाहिए, न कि जरूरी है कि अल्पसंख्यक सदस्यों की तरफ से प्रशासित किया जाए। अल्पसंख्यक संस्थान धर्मनिरपेक्ष शिक्षा पर जोर दे सकते हैं और इसके लिए प्रशासन में अल्पसंख्यक सदस्यों की आवश्यकता नहीं है।

सीजेआई ने अनुच्छेद 30A का हवाला देकर पूछा सवाल
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि अनुच्छेद 30A के तहत किसी संस्थान को अल्पसंख्यक मानने के क्या मानदंड हैं? सीजेआई ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि संघ उस प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि सात न्यायाधीशों को रेफरेंस नहीं किया जा सकता है। यह विवादित नहीं है कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को भेदभाव न करने का अधिकार देता है। सवाल यह है कि क्या उन्हें भेदभाव न करने के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी प्राप्त है।

उन्होंने आगे कहा कि किसी भी नागरिक की ओर से स्थापित एक शैक्षणिक संस्थान को अनुच्छेद 19(6) के तहत विनियमित किया जा सकता है। इस अदालत ने कहा है कि अनुच्छेद 30 के तहत अधिकार पूर्ण नहीं है। अनुच्छेद 19(6) के तहत अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों का विनियमन की अनुमति है, बशर्ते कि यह संस्थान के अल्पसंख्यक चरित्र का उल्लंघन न करे।

4 जजों का फैसला एक,3 का अलग
एएमयी के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट में फैसला पढ़ा जा रहा है। इस मु्द्दे पर 4 जजों का एक मत है तो वहीं 3 जज ऐसे हैं जो इसके खिलाफ है।मुख्य न्यायाधीश ने खुद, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पार्डीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा के साथ मिलकर बहुमत का फैसला लिखा।जबकि न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति का फैसला दिया। इस मामले को 7 जजों की बेंच सुन रही थी।

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