पुरुषों को गलतियों का एहसास कराएगी तापसी पन्नू की ‘थप्पड़’
रायपुर। तापसी पन्नू वैसे ही उम्दा एक्ट्रेस है लेकिन फिल्म थप्पड़ में उनका एक अलग ही आयाम सामने आया है। अभिनय की जिन ऊंचाइयों को वह इस फिल्म में छूती हैं उस ऊंचे स्तर पर वह अभी तक नहीं गई थी। थप्पड़ अपने समय की बहुत महत्वपूर्ण फिल्म है इसे देखा जाना बहुत जरूरी है। निर्देशक अनुभव सिन्हा ने जिस तरह का सिनेमा बनाया है वह तारीफ के काबिल है। उनकी फिल्म थप्पड़ का शुमार अच्छे सिनेमा में जरूर होगा।
फिल्म का विचार है कि शादीशुदा जिंदगी में कोई पति अपनी पत्नी को किसी भी कारण से किसी भी परिस्थिति में थप्पड़ मारने का हक नहीं रखता। भारतीय समाज में पति अगर अपनी पत्नी को मार दे तो ना सिर्फ उसके सास-ससुर बल्कि लड़की के मां-बाप भी यह कहते नजर आते हैं कि पति पत्नी में थोड़ा बहुत लड़ाई झगड़ा तो चलता रहता है और फिल्म थप्पड़ यह कहती है कि कभी भी थप्पड़ मारना सही नहीं है इसका अधिकार पति को नहीं है। थप्पड़ मारना न सिर्फ नैतिक रूप से गलत है बल्कि कानूनन भी गलत है।
इस विचार को निर्देशक अनुभव सिन्हा और उनकी सह लेखिका मृण्मई लागू ने बहुत ही खूबसूरती के साथ न सिर्फ कहानी में बुना बल्कि पटकथा और संवादों के माध्यम से दर्शकों को यह समझाने का प्रयास किया कि आखिर गलत कहां है। फिल्म देखने के बाद सारे पुरुषों को इस बात का एहसास होगा साथ ही शर्मिंदगी भी जाने अनजाने कैसे सदियों पुराना पुरुष जो हमारे भीतर बसा हुआ है गलतियां करता है और उन गलतियों का एहसास तक हम लोग नहीं कर पाते।
उनके पति का किरदार निभा रहे पावेल ने अपनी पहली ही फिल्म से साबित कर दिया वह एक समर्थ कलाकार है । किरदार में कई सारी परतें थी वह एक ऐसे पति का का किरदार निभा रहे हैं जो पॉजिटिव होते हुए भी गलत है और वह कहां गलत है इस बात का एहसास उसे नहीं है। इसे पर्दे पर उतारना वाकई मुश्किल काम था जो पावेल ने पूरी कुशलता से किया है। इसके अलावा दिया मिर्जा की मौजूदगी दृश्य को और मजबूत बना देती है। कुमुद मिश्रा, रत्ना पाठक शाह जैसे कलाकार फिल्म को नई ऊंचाइयां देते हैं।