लॉकडाउन में मजदूरों को रोकने के लिए ये है सबसे आसान तरीका
उत्तर प्रदेश-दिल्ली बार्डर पर एक लाख से ज्यादा लोग घर वापसी का इंतजार कर रहे हैं. ये हालात सिर्फ दिल्ली-नोएडा बार्डर के ही नहीं हैं. देश के हर हिस्से में महानगरों से गावों के पलायन की तस्वीरें आम हैं. हर सड़क पर मजदूरों के पैदल हजारों किलोमीटर की दूरी तय करते हुए घरों की ओर जाने की तस्वीरें आ रही हैं. हालात ये हैं कि कोरोना के इस दौर में सामाजिक दूरी का कोई ध्यान नहीं रखा जा रहा है. हर आदमी अपने घर पहुंचने की जल्दी में हैं.
पिछले 24 घंटे में केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों की ओर से जो कोशिशें हुई हैं वो नाकाफी दिख रही हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इन लोगों को उनके घर पहुंचाने का फैसला सही है. या उन सभी लोगों को जहां हैं वहीं सुरक्षित रखा जाए. अब तक जो खबरें आ रहीं उनके मुताबिक सरकार उनको अलग-अलग जगहों पर सुरक्षित रखने की तैयारी कर रही है लेकिन फिलहाल कोई ठोस तरीका सामने नहीं आ रहा है.
दिल्ली से उत्तर प्रदेश के आस-पास के जिलों पर नजर डालें तो उनमें गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, मेरठ जैसे जिलों में सैकड़ों की संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज, लॉ कॉलेज, डेंटल कॉलेज, बीएड कॉलेज हैं. साथ ही इन इलाकों में सैकड़ों स्कूल ऐसे हैं जिनमें हॉस्टल की सुविधा है. नोएडा गाजियाबाद के प्राइवेट विश्वविद्यालय के महानिदेशक जमील अहमद बताते हैं कि दिल्ली से सटे सभी कॉलेज में अगर हॉस्टल की सीटों को देखें तो उनकी संख्या करीब एक लाख से ज्यादा है, और उनमें लोगों के रहने की व्यवस्था के साथ-साथ, खाना बनाने और खाने के लिए किचेन, साफ-सफाई के लिए स्टाफ भी मौजूद है. इन हॉस्टल में वो सारी सुविधाएं मौजूद हैं जिनकी जरूरत एक आम परिवार को होती है.
इन सब बातों को देखते हुए सरकार इन कॉलेजों के हॉस्टल को इन मजदूरों को रखने के लिए इस्तेमाल करने में क्यों संकोच कर रही है. महामारी के इस दौर में सरकार के पास इससे अच्छा कोई विकल्प नहीं दिख रहा है. सामाजिक सरोकार और समाज से जुड़े लोगों का मानना है कि इस तरह के हॉस्टल वाले कॉलेज हर जिले और बड़े शहरों में हैं. ऐसे में सरकार सड़क से गुजर रहे मजदूरों के साथ-साथ उन गरीबों को तीन हफ्ते तक आसानी से रख सकती है. यहां भोजन देने के लिए सिर्फ राशन, सब्जी, मसाले जैसे चीजों की जरूरत है जो सरकार आसानी से कर सकती है, और ये हॉस्टल देश के हर हिस्से में हैं, चाहे वह उत्तर प्रदेश हो, महाराष्ट्र, गुजरात हो, या वो राज्य जहां से मजदूर पलायन कर रहे हैं.
इस तरह के प्रस्ताव का कुछ लोग विरोध भी कर सकते हैं, क्योंकि इसके पहले जहां महामारी के दौरान लोग रखे जाते हैं उन्हें नष्ट कर देने का चलन रहा है, लेकिन वर्तमान दौर में जब ट्रेनों, सेना के कैंपो को आइसोलेशन के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, तो कॉलेज के हॉस्टल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. क्योंकि वर्तमान दौर में सेनेटाइज करने के लिए ऐसी सुविधाएं मौजूद हैं जिसके बाद इन जगहों का दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है.
लेखक : अनिल राय