November 24, 2024

मध्य प्रदेश में सीएम के लिए डिफॉल्ट चॉइस क्यों है शिवराज सिंह चौहान?

(कल्याणी शंकर)
नई दिल्ली।  मध्य प्रदेश में सत्ता की बागडोर वापस भारतीय जनता पार्टी के हाथ में आ चुकी है. बीते दिनों राज्य में मचा सियासी घमासान वास्तव में बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान का कांग्रेस से लिया गया एक मीठा बदला सरीखा था।  कांग्रेस नेता कमलनाथकी 15 महीने की सरकार अस्थिर होने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने सोमवार को चौथी बार सीएम पद की शपथ ली। अब आज विधानसभा में हुए फ्लोर टेस्ट में भी बीजेपी सरकार पास हो गई है।

कमलनाथ ने 20 मार्च को फ्लोर टेस्ट से पहले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस्तीफे का ऐलान कर दिया था।  ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत 22 कांग्रेस विधायकों को बीजेपी खेमे में जाने के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी. ऐसे में फ्लोर टेस्ट कराना जरूरी हो गया था. हालांकि, कांग्रेस अभी भी बीजेपी पर सत्ता का गेम खेलने का आरोप लगा रही है।

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ‘मामाजी’ नाम से जाने जाते हैं. मुख्यमंत्री के तौर पर वह कई कारणों से एक दिलचस्प विकल्प हैं।  61 साल के बीजेपी नेता शिवराज चौहान 2018 तक लगातार 15 साल तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. 2005 में जब से उन्होंने पदभार संभाला, तब से मध्य प्रदेश की राजनीति के केंद्र में थे।

साल 2013 में शिवराज सिंह चौहान को नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवारी का प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा है।  लेकिन, उन्होंने इन बातों से इनकार किया. चौहान तब लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी भी माने जाते थे. हालांकि, अब चीजें बदल गई हैं।  पीएम मोदी बीजेपी में एक मजबूत नेता के तौर पर उभर चुके हैं. यहां तक कि उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल की लोकप्रियता को भी पीछे छोड़ दिया है।

अब शिवराज सिंह चौहान की तरफ दोबारा वापस लौटते हैं. अगर जाति फैक्टर की बात करें, तो उन्होंने खुद को पिछड़ी जाति के नेता के तौर पर साबित किया है.शिवराज सिंह चौहान ने नब्बे के दशक की शुरुआत में चुनावी राजनीति में प्रवेश किया और राज्य की राजनीति में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी।  चौहान का मोदी और अमित शाह की पसंद बनने के पीछे जाति भी एक कारण रही. क्योंकि, अन्य बीजेपी शासित राज्यों में ज्यादातर मुख्यमंत्री अगड़ी जातियों से थे. चाहे वह यूपी में योगी आदित्यनाथ हों, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा हों या फिर हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर।
हालांकि, मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान ने पिछले 15 साल में उच्च जातियों का एक सामाजिक गठबंधन बनाया था, जो परंपरागत रूप से पार्टी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के साथ था. पार्टी नेतृत्व का ये भी मानना है कि चुनाव में हार के बाद भी चौहान जैसे नेताओं का उत्साह बढ़ाया जाना चाहिए. चौहान भी इस तरफ आगे बढ़े और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के और करीब आए. जिसके बाद उन्होंने स्कूल में योग क्लासेस और वंदे मातरम के गान की शुरुआत करने का ऐलान किया।

चौहान ने मध्य प्रदेश की सत्ता की दौड़ इसलिए भी जीती, क्योंकि चुनाव हारने के बाद से वह से ही उन्होंने इसकी रणनीति बना ली थी और लागातार इसपर काम कर रहे थे।  ये चौहान ही थे, जिन्होंने बीते दिनों कमलनाथ सरकार का फ्लोर टेस्ट कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी।  इसके साथ ही बागी विधायकों के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीटों पर उपचुनाव जीतने के लिए चौहान अन्य मुख्यमंत्री उम्मीदवारों की तुलना में बीजेपी के लिए सबसे बेहतर विकल्प थे।  बीजेपी बीजेपी स्थिर सरकार बनानी है, तो उसे कम से कम 15 सीटें जीतनी हैं।

चौथी बार सीएम बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान के सामने कई चुनौतियां है।  पहली चुनौती कोरोना वायरस से लड़ने की है।  दूसरी चुनौती सभी को साथ लेकर चलने की और तीसरी चुनौती उपचुनाव में विजय हासिल करने की।

(लेखक पॉटिलिकल एनालिस्ट हैं। ये उनके निजी विचार हैं)
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