April 13, 2025

ईदुलजुहा में जीवित प्राणी की कुर्बानी देने के बदले केक काटकर धार्मिक रस्म अदा करें : डॉ. दिनेश मिश्र

idgah-masjid-3
FacebookTwitterWhatsappInstagram

डॉ. दिनेश मिश्र, अध्यक्ष ,अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति

तेलंगाना सरकार ने एक आदेश जारी किया है कि तेलंगाना में ईदुलजुहा (बकरीद) में ऊंटों को काटने सहित अन्य किसी भी मकसद से लाना गैरकानूनी है. कानून तोड़ने वालों पर मामला दर्ज कर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी. वहीं दूसरी ओर जन जागरूकता प्रयासों के चलते देश के कुछ स्थानों से पिछले वर्ष जीवित प्राणी की कुर्बानी देने के बदले केक काटकर धार्मिक रस्म अदा करने के इको फ्रेंडली ईद मनाने के उदाहरण सामने आए.

दरअसल, तेलंगाना हाई कोर्ट में ईदुलजुहा (बकरीद) के दौरान ऊंटों की कुर्बानी देने पर रोकथाम की मांग वाली एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इस जनहित यहिका पर सुनवाई करने के बाद आदेश जारी करते हुए कोर्ट ने कहा कि परंपरा के नाम पर ऊंट को न मारा जाए. इसके पहले महाराष्ट्र राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश में भी धार्मिक अवसरों पर विभिन्न पशुओं की कुर्बानी दिये जाने के सम्बंध में अलग-अलग समय पर रोक के आदेश जारी किए हैं.

तेलंगाना, राजस्थान, उत्तरप्रदेश में कुछ स्थानों में ईदुलजुहा (बकरीद) पर विभिन्न जानवरों की कुर्बानी दिये जाने के मामले सामने आए है. उत्तराखंड में उच्च न्यायालय ने 2018 में बकरीद सहित सभी धार्मिक आयोजनों में होने वाली कुर्बानी/पशुवध सार्वजनिक स्थानों में किये जाने पर रोक लगा दी थी. उत्तरप्रदेश में सन् 2017 में गाय, बैल, भैस, ऊंट आदि जानवरों की कुर्बानी पर निषेध जारी किया था. वहीं महाराष्ट्र हाई कोर्ट ने भी 2018 में बकरीद के पहले ही विभिन्न पशुओं भेड़, बकरी, पशुओं के कुर्बानी के लिए होने वाले धड़ल्ले से जारी होने वाले निर्यात लाइसेंस के खिलाफ याचिका दायर हुई थी.

देश के अनेक राज्यों में पशुबलि के निषेध के सम्बंध में कानून बने हुए हैं पर उनका पालन न होने से लाखों निर्दोष मासूम पशुओं की कुर्बानी/बलि दी जाती है. जबकि सभी धर्म प्रेम, अहिंसा की शिक्षा देते हैं. अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए किसी दूसरे प्राणी की जान लेना ठीक नहीं है.

पिछले अनेक वर्षों से पशु की कुर्बानी, पशु वध/बलि की क्रूर परम्परा के विरोध में जनजागरण कर रही हैं, पिछले वर्ष महाराष्ट्र के कोराडी के मंदिर में बेमेतरा तथा कुछ अन्य स्थानों में बलि प्रथा बंद हुई है. वहीं बकरीद में भी अनेक स्थानों में मुस्लिम धर्मावलंबियों ने कुर्बानी की प्रथा का परित्याग किया.

पिछले वर्ष कुछ अन्य देशों के साथ भारत में भी लखनऊ आगरा, मेरठ, मुजफ्फरपुर सहित अनेक स्थानों में जन जागरण के प्रयासों से लोगों ने ईदुलजुहा (बकरीद) में बकरे के स्थान पर केक काटा, तो कुछ स्थानों पर तो लोगों ने केक पर ही बकरे का चित्र लगाया और बकरा केक काट कर न केवल सांकेतिक रूप से धार्मिक रस्म अदा की, बल्कि निर्दोष प्राणियों की रक्षा भी की.

महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी भी अहिसा के सिद्धांत को प्रचारित करते रहे हैं. महावीर स्वामी ने जियो और जीने दो के सिद्धांत को प्रमुखता दी है, वहीं अपने उद्धरणों में महात्मा बुद्ध ने कहा है कि मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है. यदि हम किसी को जीवन नहीं दे सकते, तो हमें किसी का जीवन लेने का अधिकार नहीं है.

कुर्बानी का अर्थ त्याग करना होता है. अपनी ओर से किसी जरूरतमंद को आवश्यकतानुसार नगद राशि, दवा, कपड़े, किताबें, स्कूल फीस आदि दान कर भी आत्मसंतुष्टि पाई जा सकती है, साथ ही देश के अन्य प्रदेशों की तरह किसी जिंदा प्राणी को काट कर उसकी जान कुर्बान करने के स्थान पर केक काट कर न केवल धार्मिक रस्म अदा करने बल्कि निर्दोष प्राणी की जान बचाने की पहल की जा सकती है.

FacebookTwitterWhatsappInstagram

मुख्य खबरे

error: Content is protected !!
Exit mobile version