November 21, 2024

कंघी चुराकर होता है प्यार का इजहार… क्या है ‘घोटुल’ प्रथा, जिसके जरिए आदिवासी चुनते हैं जीवनसाथी?

आदिवासी समाज में ‘घोटुल’ प्रथा का अनोखा महत्व है. घोटुल प्रथा आज भी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के आदिवासी क्षेत्रों में प्रचलित है. यह प्रथा मुरिया और माडिया गोंड संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती है. इसे आदिवासी सभ्यता और संस्कृति की विरासत को सुरक्षित रखने वाली सामाजिक व्यवस्था माना जाता है. यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. विशेषकर गोंड संस्कृति में उन्हें धार्मिक मान्यता प्राप्त है. ‘घोटुल’ प्रथा के बारे में कई भ्रांतियां हैं, लेकिन यह वह संस्था है, जो एक आदर्श नागरिक का निर्माण करती है.

आदिवासियों की एक विशिष्ट आकार की झोपड़ी या घर को ‘घोटुल’ कहा जाता है. मिट्टी या लकड़ी से बनी चौकोर या गोल झोपड़ी. इसके सामान्यतः दो भाग होते हैं. घोटुल के सामने एक बड़ी खुली जगह होती है. इसके चारों ओर एक बाड़ होता है और इसमें एक गेट होता है. खुली जगह पर एक लकड़ी का खंभा होता है. इसलिए झोपड़ियों और घरों की दीवारों पर चित्र बनाए जाते हैं. पैर धोने या स्नान के लिए आंगन में एक बड़ा पत्थर रखा जाता है. घोटुल सामान्यतः गांव से दूर होते हैं, लेकिन कुछ घोटुल गांव के मध्य में भी हैं.

घोटुल सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
आदिवासी सामाजिक व्यवस्था में घोटुल की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. यह एक सामाजिक रूप से मान्यता प्राप्त स्थान है, जो आदिवासी युवाओं की भावनाओं को संरक्षित करता है और साथी चुनने की स्वतंत्रता देता है. घोटुल की स्थापना गोंडों के पुजारी लिंगो ने की थी. यह एक प्रकार की न्याय व्यवस्था है. शाम को सभी काम निपटाने के बाद अविवाहित युवतियां घोटुल की ओर रुख करती हैं. यहां वह ग्रुप डांस करती हैं. इनके व्यवहार में खुलापन होता है. लड़कियों का मजाक उड़ाया जाता है. इसके जरिए ही अपने भावी जीवनसाथी को चुना जाता है.

घोटुल में युवा लड़के-लड़कियां क्या करते हैं?
बच्चा जब शारीरिक रूप से परिपक्व हो जाता है. उस समय वह घोटुल का रास्ता चुनता है. उसे बांस से कंघी बनानी होती है. वह अपनी पूरी कुशलता का इस्तेमाल करते हुए एक कंघी बनाता है, क्योंकि यह कंघी ही होती है, जो अपने भावी जीवनसाथी को चुनती है. एक लड़की जिसे वह कंघी पसंद आती है, वह उसे चुरा लेती है और उसे अपने बालों में लेकर घूमती है. इस हरकत से पता चलता है कि वह लड़के से प्यार करती है. फिर वे सब मिलकर अपना घोटुल सजाते हैं. वे एक ही झोपड़ी में रहने लगते हैं.

दाम्पत्य जीवन का उपदेश
घोटुल में रहने वाले अविवाहित लड़के को ‘चेलिक’ और कुंवारी लड़की को ‘मोटियारिस’ कहा जाता है. ‘सिरदार’ घोटुल का मुखिया होता है. सभी को उनकी आज्ञा का पालन करना होगा. वह घोटुल के सदस्यों को कार्य सौंपता है. घोटुल में एक साथ रहने के बाद दंपत्ति वैवाहिक जीवन से जुड़ी अपनी-अपनी शिक्षा लेते हैं. इसमें एक-दूसरे की भावनाओं को समझने से लेकर शारीरिक जरूरतों को पूरा करना तक शामिल है. एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार का इजहार करने वाले जोड़े घोटुल में एक साथ रह सकते हैं.

आदिवासी समाज में महिलाओं का मान-सम्मान बहुत महत्वपूर्ण है. उन्हें समानता का अधिकार दिया गया है. यहां की संस्कृति यह है कि महिलाएं स्वतंत्र और स्वच्छ जीवन जीने में सक्षम हों. इसी में ‘घोटुल’ संगठन का धार्मिक आधार है. इसलिए यहां किसी भी अनैतिक गतिविधियों की कोई गुंजाइश नहीं है. ऐसा करने पर संबंधित व्यक्ति को कभी-कभी समाज से बाहर भी निकाल दिया जाता है.

यह परंपरा खत्म होने वाली है!
आदिवासी समुदाय द्वारा वर्षों से संरक्षित यह परंपरा अब बंद होने के कगार पर है. बाहरी दुनिया के प्रवेश के साथ ही घोटुल का असली चेहरा अब और भी बदतर होता जा रहा है. बाहरी लोग आते हैं और तस्वीरें लेते हैं, वीडियो फिल्में बनाता है. इसलिए आदिवासियों के इन रीति-रिवाजों और परंपराओं पर हमला हो रहा है. यहां तक ​​कि नक्सली गतिविधियों को अंजाम देने वाले माओवादियों को भी यह परंपरा पसंद नहीं है.

कई जगहों पर उन्होंने आदेश जारी कर इस प्रथा पर रोक लगाने की कोशिश की है. उनका कहना है कि युवा लड़के-लड़कियों को इतनी आजादी देना ठीक नहीं है. इस परंपरा का दुरुपयोग हो रहा है. उनका मानना ​​है कि लड़कियों का शारीरिक शोषण हो रहा है. कई इलाकों में यह परंपरा पूरी तरह बंद नहीं हुई है. हालांकि, यह तय है कि इसमें कुछ हद तक कमी आ रही है.

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