November 21, 2024

त्वरित टिप्पणी : भारत रत्न ; दिल के रास्ते दल जीतकर चुनाव जीतने की रणनीति…

2024 का लोकसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे मुकाबला भी रोचक होता जा रहा है. पीएम मोदी को सत्ता की हैट्रिक लगाने के लिए एकजुट होकर विपक्षी गठबंधन का हिस्सा रहे दल के दिल अब अचानक से बीजेपी के साथ मिल रहे हैं. INDIA गठबंधन के साथ ब्रेकअप करके ये दल तेजी से पाला बदल रहे हैं. पहले नीतीश कुमार का दिल बीजेपी के साथ मिला और अब जयंत चौधरी के दिल को बीजेपी ने जीत लिया. दोनों का दिल पीएम मोदी ने भारत रत्न के जरिए जीता है. मोदी सरकार ने पहले कर्पूरी ठाकुर और अब चौधरी चरण सिंह को देश के सबसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा गया.

अब समझना होगा कि दिल के रास्ते दल जीतकर बीजेपी ने चुनाव जीतने की कैसी रणनीति बनाई है? इसके लिए सबसे पहले चलते हैं बिहार. INDIA की नींव जिस बिहार में पड़ी थी, वहां पर बीजेपी ने जनता दल (यूनाइटेड) का दिल जीतने का काम किया. INDIA गठबंधन के सृजनकर्ता नीतीश कुमार को ही अपने पाले में लाकर बीजेपी ने पूरे विपक्षी गठबंधन को ही बैकफुट पर ला दिया और अब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी को NDA का हिस्सा बनाकर INDIA की नींव ही हिला दी है. इतना ही नहीं आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी और पंजाब में सियासी आधार रखने वाली शिरोमणि अकाली दल का मन बदल रहा है तो उद्धव ठाकरे के दिल में पीएम मोदी के लिए जगह अभी भी है.

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न के मायने
भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की गिनती एक बड़े किसान नेता के रूप में होती है. उनकी विरासत को पहले बेटे अजित सिंह ने संभाला तो अब जयंत चौधरी संभाल रहे हैं. जयंत चौधरी का दखल पश्चिम यूपी के कई जिलों में हैं. जयंत चौधरी एक बड़े जाट नेता होने के साथ ही किसानों में बड़ी पैठ रखते हैं. यही वजह है कि चाहे 2014 या 2019 का आम चुनाव हो या फिर 2022 का विधानसभा चुनाव, बीजेपी ने जयंत चौधरी को अपने पाले में लाने की हर संभव कोशिश की.

पिछले तीन लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी, एनडीए का हिस्सा नहीं बने, लेकिन बीजेपी ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान किया तो जयंत चौधरी का दिल बदल गया. जयंत चौधरी अगले एक-दो दिन में एनडीए का हिस्सा बन जाएंगे. जयंत चौधरी के जरिए बीजेपी एक साथ कई मैसेज देना चाहती है. पहला उन किसानों को जो अलग-अलग मांगों को लेकर दिल्ली कूच करने निकल पड़ रहे हैं. अब बीजेपी की ओर से किसानों को जयंत चौधरी ही डील करेंगे.

दूसरा उन जाटों को, जो अलग-अलग मुद्दों को लेकर नाराज बताए जा रहे हैं. चाहे वो महिला रेसलर विवाद हो या फिर हरियाणा की राजनीति में जाटों का हक न मिलने का मुद्दा हो. इसके साथ ही बीजेपी ने जयंत को अपने पाले में लाकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की लोकसभा चुनाव को लेकर की जा रही तैयारी को भी बिखेर कर रख दिया है, क्योंकि पश्चिमी यूपी में बीजेपी को रोकने की कमान जयंत चौधरी के हाथ में थी और अब वह बीजेपी के सारथी बन गए हैं. जयंत के एनडीए में साथ आने से बीजेपी को पश्चिमी यूपी के साथ-साथ हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में भी सियासी फायदा मिल सकता है.

दो सीटें देकर पश्चिमी यूपी स्वीप करने का प्लान

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के साथ ही बीजेपी ने आरएलडी को लोकसभा की दो सीटें भी दे दी हैं. पहली बागपत और दूसरी बिजनौर. बागपत से जयंत चौधरी की पत्नी चारू चौधरी मैदान में उतर सकती हैं, जबकि बिजनौर से मलूक नागर की चर्चा है, जो 2019 का चुनाव बीएसपी के टिकट पर जीते थे. इसके अलावा एक राज्यसभा की सीट भी दी गई है, जिस पर सोमपाल शास्त्री को चुनाव लड़ाया जा सकता है. साथ ही यूपी मंत्रिमंडल में आरएलडी को शामिल किया जाएगा.

जयंत को दो सीटें (बागपत और बिजनौर) देकर बीजेपी उन सीटों पर मजबूत स्थिति में आ गई है, जहां पर उसे 2019 में हार (सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, संभल, अमरोहा) का सामना करना पड़ा था या फिर जहां पर वह मामूली अंतर से (मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत) ही चुनाव जीत पाई थी. जयंत चौधरी के एनडीए में आने का असर पश्चिमी यूपी के साथ ही पूर्वी यूपी में भी पड़ेगा, जहां पर पिछले कई सालों से आरएलडी अपनी जमीन बना रही थी.

नीतीश से मिला दिल और बदल गए समीकरण

आरएलडी से पहले बीजेपी का दिल नीतीश कुमार के साथ मिला था. दिल मिलने की नींव भी भारत रत्न ही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पुरोधा कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया था. इस ऐलान के बाद नीतीश कुमार का INDIA से मोहभंग हुआ और वह एनडीए के पाले में आ गए. नीतीश कुमार के एनडीए के साथ आने पर न केवल आरजेडी सरकार से बाहर हो गई, बल्कि लोकसभा चुनाव का पूरा समीकरण ही बदल गया.

नीतीश कुमार के आते ही पिछड़ों और महादलित का एक बड़ा तबका भी बीजेपी के साथ आ गया, जो INDIA के लिए बिहार में संजीवनी की तरह दिख रहा था. नीतीश कुमार के INDIA का हिस्सा रहने के दौरान जिस NDA को 20 के करीब लोकसभा सीटों पर समेटा जा रहा था, अब वह ताजा सर्वे के आंकड़ों में 30 से अधिक सीटें लाती हुई दिख रही है. नीतीश कुमार के साथ बीजेपी के दिल मिलने के बाद अब जयंत का दिल भी बीजेपी पर आ गया है. यानी बीजेपी ने दिल के रास्ते दल जोड़ने की जो कवायद बिहार से शुरू की थी, वह अब यूपी में दस्तक दे चुकी है.

बीजेपी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपना सियासी कुनबा बढ़ाने में जुटी है, क्योंकि लक्ष्य पीएम मोदी ने एनडीए का 400 पार का तय किया है. बीजेपी जानती है कि अकेले दल पर पहाड़ जैसा लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता है. ऐसे में बीजेपी अपने सियासी कुनबे के दायरे को बढ़ाने में जुटी है, जिसके लिए हर एक दांव खेल रही है. उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्वोत्तर से लेकर पश्चिम तक के राज्यों में बीजेपी नए साथी के साथ एनडीए के पुराने सहयोगियों को भी मिलने में लगी है.

मोदी सरकार ने समाजवादी नेता पूर्व कर्पूरी ठाकुर से लेकर बीजेपी के दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी, पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह और पूर्व पीएम नरसिम्हा राव तक को देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से नवाजने का कदम उठा रही है. इतना ही नहीं खेती की दशा और दिशा को नया रूप देने के वाले और हरित क्रांति के जनक एमएस स्वीमीनाथन को भी भारत रत्न देने का ऐलान किया गया है. इस तरह सम्मान से सियासी समीकरण साधने की कोशिश पीएम मोदी ने की है. मोदी का यह सियासी दांव उत्तर से लेकर दक्षिण तक को सियासी संदेश देने की है.

नीतीश कुमार और जयंत चौधरी के बाद अकाली दल के प्रमुख सुखबीर बादल और टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू की मन भी एनडीए के साथ मिलता नजर आ रहा है. चंद्रबाबू नायडू ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात कर टीडीपी की बीजेपी के साथ गठबंधन की पटकथा लिख दी गई है तो अकाली दल से साथ भी दोस्ती की परवान चढ़ रही है. ऐसे में उद्धव ठाकरे का दिल भी डगमगा रहा है. उद्धव ने हाल ही में कहा है कि’मैं प्रधानंत्री मोदीजी को बताना चाहता हूं कि हम कभी भी आपके दुश्मन नहीं थे. आज भी हम दुश्मन नहीं हैं. हम आपके साथ थे. हमने पिछली बार आपके लिए प्रचार किया था.’

उद्धव ठाकरे ने कहा था कि पीएम मोदी ने ही शिवसेना के साथ संबंध तोड़ने का फैसला किया था. उद्ध ठाकरे के इस बयान के महाराष्ट्र की राजनीति गरमा गई थी, चर्चा शुरू हो गई थी कि उद्धव फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन की तैयारी में तो नहीं है. उद्धव ठाकरे के सुर भी बदलते दिख रहे हैं, जिस पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं. इसकी वजह यह है कि एकनाथ शिंदे के बगावत के बाद उद्धव ठाकरे के हाथ से सत्ता ही नहीं पार्टी भी चली गई. ऐसे में उद्धव के सामने अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने की चुनौती है. एनडीए के पुराने सहयोगी दलों की जिस तरह से वापसी हो रही है. ऐसे में उद्धव ठाकरे के एनडीए में वापसी की चर्चा तेज हो गई है?

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