छत्तीसगढ़ी में पढ़ें – पपची ल लेगे टरक वाला
परमानन्द वर्मा
होली के परब का परगे, रंग-गुलाल मं सब चोरोबोर कर डरिन. सबके बबा लाग (रिश्ता) होथौं , तब जेने नहीं तउने बुजा मन बुरा न मानो होली है काहत मुंह-कान सबो कोती बोथ डरत रिहिन हे. यहां नतनीन मन ल तो देख, उहू मन उसमान छूटे सही झपाय परत रिहिन हे. कोनो-कोनो मुंह लगी रिहिन हे तउन मन तोलगी ले खींचे ले धरत रिहिन हे. गारी देंव, फटकारेंव अउ कहेंव- बुजा हो रे बबा हौं त का मोला नंगरा कर डरिहौ. ओमन छेड़त राहय, मजाक करत राहय. भउजी लाग मन के छोड़े अउ दूसर संग आज के दिन तो अइसन मजाक नइ कर सकय. एके दिन तो मिलथे अइसन करे बर.
ये होली रंग, रूप, रस के सेती सबके हुलिया बदल देथे. चउंक-चउंक मं नंगाड़ा बजत हे तब कोनो-कोनो मेर छत्तिसगढिय़ा पारंपरिक लोक नृत्य अउ धुन मं डंडा नाच होवत रिहसे. अब पहिली जइसन उछाह नइ देखे ले मिलय. धीरे-धीरे सब नंदावत जावत हे. एक दिन सिरतोन मं ये सब नंदा जही का, तइसे लागथे. पहिली तो अइसन नइ रिहिसे, कइसे का जमाना आगे, अउ आघू चलके कइसन दिन देखे ले मिलही, समझ नइ परत हे.
जेने मेर देखबे तेने मेर सब माते परे रहिथे. शराब संस्कृति गांव अउ शहर ल बरबाद करत हे. का लइका, सियान, बेटी, बेटा, जवान गोसइन अउ बहू मन ल शराब के चस्का लगत जात हे. पूरा गांव, शहर के जतका जुन्ना संस्कृति, मरियादा, परम्परा अउ परब हे, काला का बताबे, गोठियाय, बताय के मन नइ करय. सब के घर लेसावत हे, बिन मारे के मारे सबो झन मरत हे. जइसे कोनो एमन ला जहर खवा देहे. आंसू ढरकथे, आंखी डहर ले जुन्ना बखत ल सुरता करबे अउ ओकर ले आज के तुलना करबे ते सब बेकार हे, अबिरथा हे जइसे जउने रस्दा मं चलत हे गाड़ी हा तइसन चलन दे.
एके ठन बात के मजा मारे ले मिलथे, तिहार बार मं बने-बने सुन्दर कलेवा खाये पीए ले मिल जथे. अइरसा, ठेठरी, खुरमी, डेहरौरी, गुझिया अउ पपची. अपन घर मं तो माइलोगिन मन बनाबे करथे अउ दूसरो घर कहूं उठे-बइठे ले चल देस तब उहों इही सब जिनिस ल परोस देथे. मैं तो जेकर घर गेंव फकत अइरसा, गुझिया, ठेठरी खाये ले मिलिस.
बचपन के मोर खास पसंद डिस रिहिसे अइरसा. दू-तीन, चार-पांच ठन अइरसा ल झड़क दौं. हमर इहां मंडलिन भड़कय, अउ काहय, देख के खा, जादा हदरही झन कर. पेट ला देख के खा, अइसे झन हो जाय, लोटा धर बाहिर कोती जाय ले पर जाय. का करौं, मोर खास पसंद हे. अब परोस दे हे तब ओला लहुटाय के मन नइ होवय, दाई घला काहय- जादा अलकरहा झन खाय कर बेटा, फेर मन माडय़ तब ना?
सब घर बनथे अइरसा. बने कोंवर अउ लुदलुद ले. ठेठरी तो आय जेकर बर हाथ, मुंह ल टोरे-मरोरे बर अउ मुंह मं डार के खाय मं मेहनत लागथे, फेर अइरसा तो अइरसा हे, कोनो रूपवती रानी कस देखते साठ काबा भर पोटार के चूमा-चांटी ले ले, अइसन हाल अइरसा के हे. गुझिया घला कुछु-कुछु वइसने कस हे. बने सुन्दर रूप अउ बोली मं जइसे कोनो सुन युवती बातों-बात मं फंसा लेथे तइसे हाल गुझिया रानी के हे. मैं तो ओला हाथ मं लेते साठ कहिथौं- वाह रे मंटोरा, तोर कतेक दिन ले रिहिस अगोरा. फेर ओकर जउन हाल करथौं, ओहर बताय के लइक नइहे.
सब ले जादा, दुख आज ये बात के लगत हे, अइरसा के बड़े बहिनी- आह, ओकर सुरता करथौं तब मोर मुंह मं पानी आ जथे. ओकर रूप तो मनमोहिनी ले अउ बढ़के हे. फेर का बतावौं ओकर दुख ला, एमा मोरो दुख शामिल हे. कोन जनी कोन बेर्रा, ननजतिया, कलमुंहा टरक वाला के नजर परगे ते ओला अपन टरक मं बइठार के कहां लेगे ते ओकर आज तक पता नइ चलिस. कोनो-कोनो बताथे- ओला कोलकाता लेगे, मुंबई अउ नई दिल्ली लेगे. ओला ढकेल दे हें नरक मं अउ ओकर से धंधा करावत हे. रूप, रस अउ गुन मं तो अपसरा ले कोनो कम नइ रिहिसे.
ओकर दाई-ददा पपची बेटी के सुरता मं आंसू ढारत-ढारत ये दुनिया ले बिदा होगे. अब मैं अपन दुख ला कइसे बतावौं. ओ पपची संग मेहर बचपन ले पियार करत आवत रेहेंव. अइरसा ले जादा ओला भावौं. अब कहूं, ककरो घर मं पपची नइ बनय, नइ चुरय. पहिली के समय मं थारी अतका बड़े-बड़े पपची बनावय. तिहार-बार, बर-बिहाव मं बनावय, बेटी के बिदा करयं तब जोरन मं जउन कलेवा रखयं तेमा अउ कोनो कलेवा भले नइ रखतिन फेर पपची ल जरूर जोरय.
जइसे बेटी पराया घर के धन होथे, मइके के रहत ले ओहर सब ला मोर-मोर कहिथे, मोर दाई-ददा, मोर भाई, बहिनी, भइया-भउजी, कका-काकी, दादी-दादा काहत रहिथे फेर जउनदिन सात फेरा परथे, मांग भरा जथे अउ अधरतिहा डोली मं बइठके बिदा हो जथे, तहां ले ओकर जतका मोर-मोर के सपना रेत मं बने घर असन ढह जथे. उही हाल होगे पपची के. कहां होही, कोन हाल मं होही, कइसे होही एकर कोनो कउंआ अउ कबूतर घला सोर देबर नइ आवत हे. ओकर सुरता मं मरे जात हौं. कवि, लेखक, साहित्यकार अउ कलाकार मन बोधावत कहिथे- धीर धर बबा, धीर धर, जउन चल दिस तउन अब कहां ले लहुट के आना हे. नंदागे गा ओहर नंदागे, सब जिनिस जइसे एक-एक करके नंदावत जात हे तइसने पपची घला नंदागे, ककरो घर अब पपची नइ बनय. सुरता करत गोहराथौं- हाय रे मोर पपची.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये उनके निजी विचार हैं.)