विश्व आदिवासी दिवस : जल, जंगल और जमीन से जोड़ने की सार्थक पहल
रायपुर। मूलनिवासियों को हक दिलाने और उनकी समस्याओं का समाधान, भाषा, संस्कृति, इतिहास के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को मूल निवासी दिवस (विश्व आदिवासी दिवस) मनाने का फैसला लिया. इस कड़ी में छत्तीसगढ़ में पहली बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन गत वर्ष 27 से 29 दिसम्बर तक राजधानी रायपुर में किया गया. मुख्यमंत्री ने हाल में ही नवा रायपुर में आदिवासी संग्रहालय के स्थापना की घोषणा की है।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा आदिवासी समुदाय को जल, जंगल और जमीन से जोड़े रखने की सार्थक पहल की गई है. बस्तर और सरगुजा में सिंचाई का प्रतिशत काफी कम है. नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी योजना के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया जीवन प्रदान किया जा रहा है. इसमें यहां के नालों को रिचार्ज करने का काम किया जा रहा है, जिससे सिंचाई के लिए सतही जल और भूमिगत जल की उपलब्धता बढ़ेगी. राज्य सरकार द्वारा आदिवासी समाज के हित में विश्व आदिवासी दिवस पर सामान्य अवकाश घोषित करने का महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया है.
बस्तर और सरगुजा में कनिष्ठ कर्मचारी चयन बोर्ड का गठन करने की घोषणा से स्थानीय युवाओं को भर्ती में प्राथमिकता मिलेगी. पांचवीं अनुसूची के जिलों में बस्तर, सरगुजा संभाग और कोरबा जिले में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों पर स्थानीय लोगों की भर्ती के लिए आयु सीमा में तीन वर्ष की छूट दी गई है. एनएमडीसी के नगरनार प्लांट में ग्रुप सी और ग्रुप डी की भर्ती परीक्षा दंतेवाड़ा में ही कराने को लेकर एनएमडीसी द्वारा सहमति दी गई है. मुख्यमंत्री ने नक्सल पीड़ित युवा बेरोजगारों को डीएमएफ मद से बीएड की डिग्री पूर्ण होने पर रोजगार प्रदान करने की घोषणा की है. इसी प्रकार भोपालपट्टनम में बांस आधारित कारखाना स्थापित करने की पहल की जा रही है.
अनुसूचित जनजाति के समग्र विकास के लिए बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण, सरगुजा क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण और मध्य क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण (रायपुर, दुर्ग एवं बिलासपुर संभाग) का गठन किया गया है. इन तीनों प्राधिकरणों में स्थानीय विधायकों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बनाया गया है. सरकार ने जनजाति सलाहकार परिषद के कामकाज के लिए पृथक सचिवालय की स्थापना का निर्णय लिया है.
मुख्यमंत्री द्वारा जनजाति वर्गाें की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए जाति प्रमाण पत्र बनाने की प्रक्रिया का सरलीकरण करते हुए परिवार में शिशु के जन्म के समय उसके पिता की जाति के आधार पर शिशु का जाति प्रमाण पत्र भी निर्धारित प्रारूप में सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी किया जा रहा है. इसके अलावा नक्सल प्रभावित अंचलों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के रहवासियों के विरूद्ध दर्ज प्रकरणों की समीक्षा की जा रही है और इन प्रकरणों की वापसी के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है.
भूपेश बघेल की सरकार ने आदिवासी अंचल बस्तर में एक नई पहल करते 40 सालों से लंबित बोधघाट बहुद्देशीय सिंचाई परियोजना के काम को आगे बढ़ाने की कार्रवाई शुरू की है. केन्द्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद इसके सर्वे का काम भी शुरू करा दिया गया है. यह परियोजना बस्तर संभाग में खेती-किसानी और समृद्धि का नया इतिहास लिखेगी. राज्य के सभी जिलों में 10-10 छात्रावासों एवं आश्रमों को मॉडल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया है.
प्रदेश के दूरस्थ, वनांचल और अंतिम छोर तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधा को लोगों तक पहुंचाने के लिए मुख्यमंत्री हाट बाजार क्लिनिक योजना 02 अक्टूबर को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर शुरू की गई. इस योजना के माध्यम से राज्य के सभी जिलों के हाट बाजारों में मोबाइल, चिकित्सा यूनिट के माध्यम से लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण एवं उपचार की सुविधा नियमित रूप से उपलब्ध कराई जा रही है. बस्तर संभाग में मलेरिया मुक्ति अभियान संचालित किया जा रहा है.
राज्य सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है कि डीएमएफ की राशि का उपयोग खदान प्रभावित क्षेत्र में लोगों के जीवन में बेहतर परिवर्तन लाने के लिए किया जाएगा. आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण दूर करने के लिए चना वितरण के लिए शासन द्वारा 171 करोड़ रूपए और बस्तर संभाग में प्रति परिवार दो किलो गुड़ वितरण के लिए 50 करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है. बस्तर संभाग में कुपोषण दूर करने के लिए बच्चों और महिलाओं को विशेष पोषण आहार के वितरण का काम प्रारंभ हो चुका है. राज्य सरकार के प्रयासों की सराहना नीति आयोग ने भी की है.
इसी तरह तेंदूपत्ता संग्रहण की दर ढाई हजार रूपए से बढ़ाकर चार हजार रूपए प्रति मानक बोरा कर दी गई है. यह दर देश में सबसे अधिक है. अब 31 लघु वनोपजों की खरीदी समर्थन मूल्य पर की जा रही है. इनमें राज्य सरकार द्वारा वनवासियों के हित में अहम निर्णय लेते हुए महुआ के निर्धारित समर्थन मूल्य 17 रूपए से बढ़ाकर 30 रूपए प्रति किलोग्राम की गई है. इससे वनवासियों को वनांचलों में स्व-सहायता समूहों के माध्यम से रोजगार देने में तेजी आई है. बस्तर में प्रस्तावित स्टील प्लांट नहीं बनने पर लोहंड़ीगुड़ा क्षेत्र के किसानों की अधिगृहित भूमि लौटाने का महत्वपूर्ण निर्णय भी लिया गया है. यहां आदिवासियों को 4200 एकड़ जमीन वापस कर राजस्व अभिलेखों में नाम दर्ज करने की कार्रवाई भी पूर्ण कर ली गई है.
राज्य सरकार ने आदिवासियों के हित में अनेक ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं, जिनमें वन अधिकार पट्टों के लिए प्रदेश में पूर्व में अमान्य किए गए आवेदनों पर पुनर्विचार कर पट्टे देने का कार्य किया गया है. 4 लाख 22 हजार व्यक्तिगत वन अधिकार पत्र और 30 हजार 900 सामुदायिक वन अधिकार पत्र वितरित किए गए. व्यक्तिगत वन अधिकार मान्यता के माध्यम से 3.81 लाख हेक्टेयर भूमि और सामुदायिक वन अधिकार पत्रों में 12.37 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि आवंटित की गई.
नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले के लगभग 275 असर्वेक्षित ग्रामों में वर्षों से निवासरत 50 हजार से अधिक लोगों को उनके कब्जे में धारित भूमि का मसाहती खसरा और नक्शा उपलब्ध कराए जाने का निर्णय लिया गया. इस निर्णय से किसान परिवारों के पास उनके कब्जे की भूमि का शासकीय अभिलेख उपलब्ध हो सकेगा और वे अपनी काबिज भूमि का अंतरण कर सकेंगे. इससे अबूझमाड़ क्षेत्र के अंतर्गत लगभ 10 हजार किसानों को 50 हजार हेक्टेयर भूमि का स्वामित्व प्राप्त होगा.