December 26, 2024

कोरोना संकट : सार्वजनिक सेवा को ठीक कर भूख पर काबू पाए सरकार

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उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री ने अधिकारिक रूप से कहा है कि देश में 5.3 करोड़ टन खाद्यान्न भंडार हैं, जिसमें से चावल लगभग 3.0 करोड़ टन और बाकी गेहूं है. मैं यह कह सकता हूं कि यह हमारे द्वारा अनुरक्षित भण्डारण के मानदंड से कहीं अधिक है, जिसमें 76 लाख टन चावल और 1.38 करोड़ टन गेहूं या कुल मिलाकर 2.1 करोड़ टन से अधिक अनाज होना चाहिए.

हालांकि, जो हम आसानी से स्वीकार नहीं करते हैं, वह यह है कि एक ही समय में भारत में भूखे रहने वालों की संख्या लगभग 200 मिलियन या 20 करोड़ है, जो इन विशाल भंडार में परिलक्षित होती है. यह भारत की पुरानी खाद्य सुरक्षा की गाथा है जो खुद को दोहरा रही है.

जो गरीबों के घरों में होना चाहिए वह गोदामों में भरा हुआ है. और अब रबी की बम्पर फसल काटने और भण्डारण करने की प्रतीक्षा कर रही है. 2019-20 के अनुमानों के अनुसार, देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 29.2 करोड़ टन होगा, जो कि गए वर्ष के खाद्यान्न के उत्पादन की तुलना में 67.4 लाख टन अधिक है.

अब हमारे सामने भूख और कोविड-19 दोनों हैं. इसे अगर प्रवासी गरीबों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह एक घातक गठजोड़ है. फिर भी, हम अपने सभी लोगों को भोजन खिला सकते हैं, यदि केवल हम अपने लोगों और हमारी सार्वजनिक सेवाओं को ठीक से व्यवस्थित करें, जिसमें COVID- 19 के खिलाफ पूरी तरह से उनकी रक्षा करना शामिल है.

इसकी कुंजी है सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और एकीकृत बाल विकास सेवा (आईसीडीएस,- आंगनवाड़ी) कार्यक्रम, भूमिकारूप व्यवस्था जिसे हमने बनाया है और इस संस्थाओं में काम करने वाले कार्मिकों को जिन्हें हमने भर्ती किया है और इन सेवाओं में 40 वर्षों की अवधि के दौरान प्रशिक्षित किया है. आईसीडीएस के कर्मी देश के हर गांव में मौजूद हैं.

आईसीडीएस कर्मियों का आकार लगभग 17 लाख है जो शायद हमारे सशस्त्र बलों की संयुक्त ताकत से बड़ा है. वे सामाजिक रूप से योद्धा हैं.

ऐसे समय में जब राष्ट्र को भयावह कोविड -19 संकट के कारण बंद कर दिया गया है, इसका प्रभाव मुख्य रूप से असंगठित क्षेत्र में हमारे प्रवासी आबादी पर पड़ना एक अस्तित्वगत संकट है. कोविड-19 से लड़ने का तर्क कि सबसे पहले चरण में आवाजाही पर रोक लगायी जाये. हालाँकि, भारतीय असंगठित क्षेत्र का अस्तित्व या इसके अस्तित्व का सार, आंतरिक प्रवास पर निर्भर है,- अंतर-राज्य और राज्य के भीतर, आवाजाही जिसमें अनिवार्य है. असंगठित क्षेत्र के प्रवास का तर्क भूख है.

इस पहेली को हल करना कोई आसान काम नहीं है. इसलिए, हमें इन दो अतार्किक तर्कों को एक करते हुए समाधान खोजना होगा. भूख इस स्थिति में सर्वोच्च प्राथमिकता है. और जैसा लगता है कि फिलहाल निकट भविष्य में कोरोना -19 के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है, ऐसे में, हम ओनी मदद कैसे करेंगे?

स्वाभाविक तौर पर प्रधानमंत्री देश ने शीर्ष नेता होने के कारण इस समस्या से घिरे हुए हैं. उन्हें चिकित्सा और स्वास्थ्य मानव संसाधनों के साथ पीडीएस और आईसीडीएस कर्मियों और बुनियादी ढांचे को एक साथ इस काम में जुटाने पर विचार करना चाहिए, क्योंकि इस लड़ाई में यह लोग और संस्थाएं पहली पंक्ति योद्धाओं के रूप में है.

इस रणनीति का मूल होगा कि किस तरह नियंत्रित तरीके से कर्मचारियों और सड़क वाहनों की आवाजाही को उपयोग में लाया जाये और संघ और राज्यों के बीच सच्चे संघवाद की भावना को प्रोत्साहित करी जा सके.

इसमें राष्ट्र के संस्थान जैसे एफसीआई केंद्रीय पूल के खाद्यान्न आपूर्ति के लिए और पर्याप्त ऋण आपूर्ति के लिए आरबीआई हैं और ग्रामीण स्तर पर परिवहन और वितरण के लिए राज्यों की एजेंसियों को शामिल किया जाना चाहिए.

यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाले दिनों में हमारी प्रवासी आबादी की आवाजाही के लिए तर्कसंगत और परिपक्वता से तय किए गए फैसले हमारे आईसीएमआर, विषाणु और अन्य स्वास्थ्य विशेषज्ञों से सलाह के आधार पर हमारे संघ और संघीय नेता एक साथ लेंगे. यह बहुत नाजुक संतुलन है.

जैसे हम पहले करते थे जब सूखा या अकाल जैसे परिस्थितियां होती थी ‘जन कार्यों की जांच’, वैसे ही हमें खुद बस्तियों को चिन्हित करके मुफ्त रसोई शुरू कर देनी चाहिए, ये बस्तियां शहरों में गरीबों की बस्ती हो और गांव में जहां गरीब लोगों के घर बने हुए हैं, और साथ ही पता लगाया जाना चाहिए कि प्रवासी मजदूर परिवार या और कोई भूखा कहां है.

यह हमें इस समय देश में सबसे गंभीर भूख का भौगोलिक स्तर दिखाएगा. वह भी गरीबों को भोजन और एकजुटता की उम्मीद देकर उन्हें खिलाने का एक सक्रिय तरीका होगा. हर जगह भूखे लोगों का होना तय है, इसलिए उन्हें हर जगह खाना देना ज़रूरी है.

शहरों में बस्तियों से शुरुआत करें. और सभी ग्रामीण क्षेत्रों में सूखी भूमि वाले कृषि क्षेत्रों, ऊंचे क्षेत्रों, जनजातीय क्षेत्रों, सूखाग्रस्त और रेगिस्तानी क्षेत्रों से शुरू करें. इस तरह, हम भारत के लगभग सभी भूखे लोगों तक पहुंच सकते हैं, जो लगभग 20 करोड़ हैं.

बढ़ाये हुए काम के समय के साथ आंगनवाड़ी केंद्र और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बड़े पैमाने पर यह काम शुरू करने के लिए आदर्श रहेंगे. उनके पास अपनी एक जगह है और देश के हर गांव और बस्ती का हर शख्स उनको जानता है.

हमें उन्हें हर संभव तरीके से सभी आवश्यक सुरक्षा की गारंटी देनी होगी, जिसमें बढ़ाया पारिश्रमिक और विभिन्न प्रकार के सुरक्षात्मक उपकरण और चिकित्सा आपूर्ति शामिल हैं, और सामाजिक दूरी का अभ्यास करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना होगा. और उनमें से प्रत्येक के लिए पारिवारिक बीमा भी होना चाहिए.

वितरण प्रणाली सबसे महत्वपूर्ण है. दक्षिणी राज्यों में पीडीएस और आईसीडीएस के पास वस्तुओं के ग्राम स्तर के वितरण का ठीक मॉडल हैं. यह आसानी से तेलंगाना, एपी, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में किया जा सकता है.

उत्तरी राज्यों के लिए मॉडल यह होगा कि जैसे सामान्य चुनाव में आयोजित करते हैं अपने देश के नुक्कड़ और कोनों की पहचान करके और खुद सबसे दूरदराज़ की चौकी में पर तैनात होकर. इसके लिए, सभी सरकारी कर्मियों को तलब किया जाना चाहिए और अतिरिक्त पारिश्रमिक के साथ काम पर लगाना चाहिए, और सामाजिक सुरक्षा और सुरक्षात्मक सामग्री के उपयोग का अभ्यास करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और उनके परिवार का बीमा भी कराया जाना चाहिए.

सबको खाना दिया जाना चाहिए. पहचान पत्र के साथ या बिना पहचान पत्र वाले लोग, हालांकि, बिना पहचान पत्र वाले लोगों को एक छोटी मौके पर पूछताछ के बाद एक पहचान पत्र किया जाना चाहिए. यह उनके सम्मान के लिए आवश्यक है.

हम प्रवासी कामगारों को अस्थायी राशन कूपन जारी कर सकते हैं और उनके जैसे ही और लोगों को जो लॉकडाउन के कारण काम पर नहीं निकाल सकते हैं.

एक गैर सरकारी संगठन सीओवीए द्वारा हैदराबाद में देखा गया है कि कई प्रवासी अपने मूल स्थानों के पते के साथ आधार कार्ड अपने साथ ले जाते हैं ताकि यह पुष्टि हो सके कि वे प्रवासी हैं.

उनके आधार कार्ड, हालांकि अनिवार्य नहीं होने चाहिए, लेकिन जहां ले जाया जाता है, वहां अस्थायी कूपन जारी करके उसे आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और वे नियमित रूप से राशन की दुकानों से या भोजन शिविरों से खाद्यान्न का लाभ उठा सकते हैं. मौके पर पूछताछ करने से सरकारी अधिकारियों और स्थानीय जनता को प्रवासियों / अन्य गरीबों को भूख और भोजन की आवश्यकता के बारे में पता चल सकेगा. यहाँ मकसद है गरीबों को उदारता से खिलाना और उनकी गरिमा के अधिकार के अनुरूप काम करना.

यह काम मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव द्वारा तेलंगाना राज्य में शुरू किया गया है, जिन्होंने सरकारी आदेशों के माध्यम से हैदराबाद में प्रवासी आबादी को आश्वस्त किया है.

एक बार सरकार आगे बढ़कर काम शुरू कर दे उसके बाद दानदाता और स्वैच्छिक कार्यकर्ता बड़े पैमाने पर प्रयास में शामिल हो जायेंगे क्योंकि लोगों भोजन कराने के काम को सभी धर्मों में दान-संबंधी कार्रवाई के रूप में निर्धारित किया गया है. भारत के लोगों को गरीबों को खाना खिलने में यदि पूछा जाये तो, बहुत ख़ुशी मिलती है.

मनरेगा को तुरंत अपने वेतन में सबसे ज्यादा उपेक्षित खाद्यान्न घटक शामिल करना चाहिए, लेकिन उस घटक को प्रतिभागियों की वास्तविक दैनिक आवश्यकताओं तक सीमित कर देना चाहिए, प्रति परिवार 2.5- 3 किलो प्रति दिन. यह वास्तविक मजदूरी की गारंटी देगा.

हैदराबाद में, कोविड, किसी भी प्रकार के पहचान पत्र के बिना प्रवासी आबादी को निर्धारित करने के लिए आवश्यक सभी परिवार और व्यक्तिगत विवरणों के लिए एक सर्वेक्षण प्रारूप का उपयोग कर रहा है. इनमें विधवापन, वृद्धावस्था, अनाथ होने और मधुमेह और रक्तचाप जैसी चिकित्सा स्थितियों से प्रभावित होने जैसी किसी विशेष स्थिति की भी जानकारी शामिल है. यह सभी राज्यों में किया जाना चाहिए. जाहिर है, अलग-अलग परिस्थितियों के अनुरूप स्वरूपों को अपनाया जा सकता है.

यदि टेस्ट, टेस्ट और टेस्ट मंत्र है, तो इसको अर्थ देने के लिए फीड, फीड और फीड मंत्र होना चाहिए.

अंत में, साड़ी बड़ी राशि वो लाखों और हजारों करोड़ केवल उद्योग के कप्तानों के लिए निर्धारित नहीं होनी चाहिए. उसपर असली हक देश के लोगों का होना चाहिए जिनकी अच्छी सेहत ही देश के वित्तीयचक्र को आगे बढ़ाएगी. हमारे आंगनवाड़ी के रसोई के बगीचे सब्जियों से भरे रहें और हमारी सूखी भूमि स्वास्थ्य देने वाले बाजरे के साथलहलहा उठे. इस तरह कोरोना नामक दुश्मन से लड़ने के लिए हमारे योद्धा काफी मजबूत होंगे.

(के आर वेणुगोपाल, प्रधानमंत्री के पूर्व सचिव रह चुके हैं)

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