December 23, 2024

बलरामपुर : लॉकडाउन में सपेरा परिवार के बच्चों के लिए प्रशासन ने खोला चलित स्कूल

sapera

अम्बिकापुर। छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में अंबिकापुर- रामानुजगंज राष्ट्रीय राजमार्ग पर ग्राम पंचायत ककना के नजदीक सड़क किनारे आम के पेड़ के नीचे एक अनूठा विद्यालय संचालित हो रहा है। यहां शिक्षक गीत ,नृत्य के साथ बच्चों को पढ़ा रहे हैं। बच्चे भी पूरे उत्साह के साथ यहां संचालित गतिविधियों में सहभागिता दर्ज कर रहे हैं। खेल खेल में पढ़ाई से बच्चों में आत्मबल का संचार हो रहा है। वे उमंग और उत्साह के साथ पूरा दिन गुजार अगले दिन शिक्षकों के आने का इंतजार करते रहते है। घर से दूर इन गतिविधियों से बच्चों का समय भी रचनात्मक गतिविधियों में बीत रहा है और उन्हें अक्षर ज्ञान के साथ जोड़, घटाव की भी सामान्य जानकारी मिल जा रही है जो जीवन में बेहद जरूरी है। 
इस विद्यालय की परिकल्पना बलरामपुर कलेक्टर संजीव झा ने की।उन्होंने शिक्षकों की ड्यूटी लगवाई और बच्चों को मनोरंजन के साथ पढाई और खेलकूद से भी जोड़े रखा। बलरामपुर कलेक्टर संजीव झा और पुलिस अधीक्षक टीआर कोसीमा कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव और नियंत्रण के लिए लॉक डाउन के दौरान लगातार सीमावर्ती क्षेत्रों का भ्रमण कर रहे हैं ।सरगुजा जिले की सीमा से लगे ग्राम पंचायत ककना क्षेत्र के भ्रमण पर जब वे पहुंचे थे तब उन्हें पता चला कि बिलासपुर जिले के कोटा क्षेत्र से सवरा जनजाति के 21 परिवार के 80 से अधिक लोग लॉक डाउन की वजह से ककना में फंसे हुए हैं।
प्रशासनिक स्तर पर जन सहयोग से इन परिवारों की दैनिक जरूरतों की पूर्ति तो की जा रही थी, लेकिन उनके जीवन यापन की जानकारी लेने के लिए कलेक्टर व एसपी ने खुद उनके बीच जाना उचित समझा। जब दोनों अधिकारी सवरा जनजाति के लोगों के बीच पहुंचे तो देखा कि सभी ने छोटा-छोटा डेरा बना रखा है। उसी में निवास करते हैं। इस बस्ती में 20 से अधिक बच्चों को भी देखा गया जो साधन सुविधा के अभाव में परेशान नजर आए। कलेक्टर ने इस विषम परिस्थिति को देखकर मौके पर मौजूद अधिकारियों को जनजाति के लोगों की सारी जरूरतें पूरी करने का तत्काल निर्देश दिया।
उन्होंने बच्चों के मानसिक व शारीरिक विकास के लिए चलित विद्यालय संचालित करने के निर्देश दिए। कलेक्टर की पहल पर तत्काल शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई। ये शिक्षक हर रोज सुबह 8 बजे ककना पहुंच जाते हैं। यहां पेड़ के नीचे टेंट पंडाल में बच्चों की पढ़ाई शुरू होती है। खेल- खेल में गीत और नृत्य के साथ बच्चों को मनोरंजक गतिविधियों से जोड़ अक्षर ज्ञान और जोड़ घटाव की जानकारी दी जा रही है। बच्चों में गजब का उत्साह देखा जा रहा है। वे शिक्षकों के साथ हर गतिविधियों में उमंग और उत्साह से शामिल हो रहे हैं । इन गतिविधियों के बाद बच्चे अपने डेरे में लौटने के बाद भी अभ्यास करते रहते हैं। उनका मनोरंजन भी हो रहा है और पढ़ाई भी हो रही है। यह चलित विद्यालय क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है।
लॉक डाउन से पहले सवरा जनजाति के लोग राजपुर विकासखंड के गांवों में घूम घूम कर सांप दिखाने का काम करते थे। इसी से इनका परिवार चलता था। अचानक लॉक डाउन आरंभ हो जाने के बाद गांवों में प्रवेश पर रोक लग गया। बाहरी लोगों के आवाजाही पर गांव वाले अप्रसन्नता जाहिर करने लगे। सांप दिखा कर जीवन यापन करने वाले परिवार के समक्ष संकट खड़ा हो गया।
ऐसे में जानकारी मिलते ही प्रशासनिक अधिकारियों ने पहल की। जन सहयोग से चावल ,दाल सहित दूसरी दैनिक जरूरतों की आपूर्ति कराई गई। खाने पीने की समस्या तो दूर हो गई लेकिन बच्चों को रचनात्मक गतिविधियों से जोड़ कर रखना बड़ी चुनौती थी जिसे चलित विद्यालय खोलकर दूर कर दिया गया है । डेरा में रहने वाले घुमंतु परिवार के लोग भी अब खुश है। 

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