क़ोरोना को मात दे रही आँबा कार्यकार्ता …..जंगल में माड़ियाओं का ठौर ढूंढकर भात बनाने सौंपा जा रहा है सूखा राशन
नारायणपुर। कर्तव्य पथ पर डटे रहकर काम करना सीखना हो तो नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले की आंगनबाड़ी कार्यकार्ता से सीखा जा सकता है। विपरीत स्थिति और विषम परिस्थितियों में डटे रहकर पूरी निष्ठा, ईमानदारी और ज़िम्मेदारी से काम करना जैसे इनकी फ़ितरत में या कहें इनके खून में है। ये वो आँगनबड़ी कार्यकर्ताएं है, जो आदिवासी जनजाति (माड़िया) लोगों के घर पर नहीं मिलने पर जंगल में मिलों चल उनके ठौर ठिकाना ढूंढकर भोजन-भात के लिए सूखा राशन और रेडी टू ईट का वितरण कर रही हैं। ताकि उनके मासूम बच्चों और परिवार को भूखा नहीं रहना पड़े। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशानुरूप राज्य शासन के महिला बाल विकास की ओर से पोषण युक्त सूखा राशन बांट रही, ताकि कोरोना के चलते कोई भूखा नहीं रहे। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कु. सेवती मांझी ने मलकटटा के जंगल में जिल्लोबाई को ढूंढकर राशन दिया, बच्चा भी उसके साथ था। राशन देख कर बच्चे के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कराहट साफ देखी जा सकती है। माँ ताज़ा हालात के चलते मुँह पर कपड़ा बांधे हुए थी। आँगनबाड़ी कार्यकर्तायें जहाँ एक ओर क़ोरोना से लड़ रही तो, वही दूसरी ओर माड़ में घर-घर राशन बाँटने का काम कर रही है। ताकि उनके यहाँ भोजन बन सके। इसके साथ ही लोगों को कोरोना महामारी से बचने के उपाय के बारे में बता रही है। इसके साथ ही लोगों को घर में रहने की समझाईश भी दे रही हैं।
छत्तीसगढ़ के हर गरीब जरूरतमंद माँ-बच्चे के चेहरे पर मुस्कराहट लाने के पीछे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल है। उनका कहना है कि प्रदेश में कोई भूखा न रहे। भूखा उठे तो वह रात को भूखा सोये नहीं। मुख्यमंत्री बघेल सभी आवश्यकताओं पर स्वयं पैनी नजर बनाये हुए हैं। वह कोराना के चलते लोगों से विभिन्न माध्यमों के जरिए बातचीत भी कर रहे है। मुख्यमंत्री बघेल ने हाल ही में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं चिठठी लिख कर होैसला अफजाई भी की और उनके काम की सराहना भी की है। वे प्रदेश की जनता को कोरोना लड़ने के लिए हिम्मत दे रहे हैं। वही नियमों और सोशल डिस्टेसिंग की बात हर प्लेटफार्म पर लगातार कर रहे है ।
जब आंगनबाड़ी कार्यकर्तायें कु. सेवती की तरह ही सभी कार्यकर्तायें जंगलों में वनोपज के सीजन के अलावा आसपास लगने वाली हाट-बाजार या कार्यक्रमों आदि से इनके ठिकाने का अनुमान लगा लेते है। यही बात नारायणपुर कलेक्टर पी.एस.एल्मा ने बतायी। लघुनोपज के लिए अबझूमाड़िया जनजाति, भोर होते ही घरों से निकल कर जरूरी वनोपज इकट्ठी करने निकल पड़ते हैं। इस समय इमली, हर्रा, बहेडा, चरौटा आदि का सीजन है। जिन्हें यह तोड़ने बीनने निकल पड़ते है। हम जानते है कि कहा इमली के अधिक पेड़ या अन्य वनोपज है। उस हिसाब से इन्हें ढूंढ लेते है। क्योंकि इनका कोई स्थायी ठिकाना नहीं होता। सांझ ढलते ही ये कहीं भी बिछोना बिछाकर भी सो जाते है। कई बार कई मील तक पैदल चलना पड़ता है। लेकिन बच्चों को देखकर हम अपनी थकान भूल जाते है।
कलेक्टर पी.एस.एल्मा ने बताया कि लॉकडाउन के चलते पहले चरण में मुख्यमंत्री सुपोषण कार्यक्रम के तहत 15 से 49 आयु वर्ग की एनीमिया पीड़ित, शिशुवती माताओं और 06 माह से 3 वर्ष के आयु वर्ग के कुपोषित बच्चों के घर पर 21 दिनों का पोषणयुक्त सूखा राशन उपलब्ध कराया था। नारायणपुर जिले में मुख्यमंत्री ने लॉकडाउन के दूसरे चरण में भी 21 दिनों का और राशन पहुंचाने की व्यवस्था की। इसके साथ ही जिले की 556 आंगनबाड़ी केन्द्रों में दर्ज बच्चों गर्भवती और शिशुवती समेत कुल 17918 हितग्राहियों को हेल्दी रेडी-टू ईट फूट घर-घर जाकर दिया था । इन सभी लोगों ंको एक-एक सप्ताह का फूड दिया गया ।