कोरोना वायरस : बीमार होने पर भगवान भी जाते हैं आइसोलेशन में, हजारों साल पुरानी है परंपरा
रायपुर। कोरोना वायरस की वजह से दुनियाभर में हड़कंप मचा हुआ है। चीन के वुहान शहर से फैली इस महामारी ने दुनिया के अधिकतर देशों को अपनी चपेट में ले लिया है। इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए आइसोलेशन में मरीज को रखने की व्यवस्था की गई है। भारतवर्ष में प्राचीनकाल से क्वारेंटाइन का प्रावधान किया गया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भगवान जगन्नाथ का बीमार होने पर आइसोलेशन में जाना है।
हर साल ज्येष्ठ महिने की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक भगवान जगन्नाथ बीमार होते हैं। भगवान के बीमार होने की दशा में वो आइसोलेशन में चले जाते हैं। इस दौरान मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। इसको अनासार कहा जाता है। भगवान जगन्नाथ का इस दौरान उपचार किया जाता है और उनको जड़ी-बूटियों वाला आहार दिया जाता है। भगवान को आइसोलेशन में रखकर उनको सिर्फ काड़े का भोग लगाया जाता है। भगवान को आइसोलेशन में रखकप उपचार की यह प्रक्रिया हजारों सालों से चल रही है।
शास्त्रोकित कथा के अनुसार राजा इन्द्रदुयम्न अपने राज्य में भगवान की मूर्ति का निर्माण करवा रहे थे, लेकिन शिल्पकार मूर्ति को बीच में ही छोड़कर चला गया। इससे राजा काफी दुखी हुए। राजा को दुखी देख भगवान प्रकट हुए बोले कि भक्त दुखी न हो। मैने नारद को वचन दिया है कि मैं पृथ्वी पर इसी बालरूप में विराजूंगा। उन्होंने राजा से कहा कि मेरा 108 घड़ों के जल से अभिषेक करना। उस समय ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा थी।
तबसे यह मान्यता चली आ रही है कि शिशु को यदि ठंडे जल से स्नान करवाया जाए तो उसका बीमार पड़ना स्वाभाविक है। इसलिए ज्येष्ठ महिने की पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक भगवान की शिशु के रूप में सेवा की जाती है। इसके बाद भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी रोहिणी से भेंट करने गुंडिचा मंदिर जाते हैं। भगवान के लिए उत्सव का आयोजन किया जाता है और पकवानों के भोग लगाए जाते हैं। 9 दिन मौसी के घर रहने के बाद वह जगन्नाथ मंदिर लौट जाते हैं।