चौंकिए मत …कोरोना वायरस नहीं, यह है बस्तर की घाटी में खिला अल्ली फूल
रायपुर । छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में चित्रकोट से एक ऐसे फूल की तस्वीर सामने आई हैं जिसे देखकर कोई भी चौक जाएगा। … न न आप बिलकुल भी मत चौकिये। यह कोरोना वायरस नहीं हैं। अपितु बस्तर संभाग के चित्रकोट के समीप मटनार घाटी में खिले अल्ली फूल हैं। जो देखने में हूबहू कोरोना वायरस की तरह ही दिखते हैं।
वर्तमान दौर में कोई भी कोरोना वायरस की तस्वीर देखना पसंद नहीं करता। आज जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस एक लाख से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला चुका है ऐसे में अब लोग कोरोना वायरस की तस्वीर देखकर ही घबराने लगे हैं। लेकिन इस तस्वीर को देख कर आप जरा भी घबराएं नहीं। यह कोरोना वायरस बिलकुल भी नहीं हैं अपितु बस्तर संभाग के चित्रकोट के समीप मटनार घाटी में खिले अल्ली फूल हैं। जो देखने में हूबहू कोरोना वायरस की तरह ही दिखते हैं। इन दिनों बस्तर की पथरीली घाटियों में यह फूल अपनी खूबसूरती बिखेरे हुए है। घाटी में खिले इस अल्ली फूल में एक से बढ़कर एक औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। वैसे इसका ज्यादातर उपयोग आदिवासी अंचल में लोग रंग बनाने में ही करते है।
रायपुर के वनस्पतिशास्त्री श्रीमती रूखमणी शर्मा बताती है कि ऑली फूल को छत्तीसगढ़ में सिर्फ बस्तर की पथरीली घाटियों में ही अब तक देखा गया है। स्थानीय ग्रामीण इसे अल्ली के नाम से पहचानते हैं। यह मेलास्टोमेस परिवार का सदस्य है और इसका वैज्ञानिक नाम मेमेकोलीन एड्यूल है। भारत में यह ऑली,आयरन वुड तो श्रीलंका में कोराकह (नीली धुंध) के नाम से चर्चित है। इसमें पीली डाई व ग्लूकोसाइड होता है।
इतना ही नहीं श्रीलंका के तटीय क्षेत्रों में ऑली फूलों का उपयोग रंग बनाने में ही होता है। बौद्ध भिक्षु आमतौर पर इसका उपयोग कपड़ा रंगने में वर्षों से करते आ रहे हैं। ईख की चटाई को रंगने में भी इन फूलों के रंगों का प्रयोग किया जाता है।
आयुर्वेद चिकित्सक डॉ विजय बरनवाल के मुताबिक़ कि ऑली की पत्तियों का रस एंटी डायरियल होता है। इसलिए बस्तर के ग्रामीण दस्त की समस्या होने पर इसकी पत्तियों का रस निकालकर पीते हैं। हाजमा की समस्या से परेशान लोग भी इस फूल की पत्तियों के रस का उपयोग करते हैं। ऑली की शाखाओं का दातून भी ग्रामीण करते हैं। इससे जहाँ मसूड़े मजबूत होते हैं वहीँ जर्म घंटों तक दूर रहते हैं।