सकारात्मक ऊर्जा संचार के लिए सनातन काल से चली आ रही शंख, घंटी बजाने की परंपरा
रायपुर । छत्तीसगढ़ सहित देशभर में कोरोना वायरस से पीड़ित लोगों की सेवा में लगे चिकित्सकों, नर्स, समाजसेवियों, कर्मियों के प्रति सम्मान देने के लिए जनता कर्फ्यू के दौरान 22 मार्च को देश भर में घर-घर शंखनाद किया जाएगा। घंटे, घंटियां बजाए जाएंगे। भले ही यह शंखनाद और घंटा नाद सम्मान के तौर पर करने की घोषणा प्रधानमंत्री ने की है, लेकिन भारतीय सनातन संस्कृति में पूजा-पाठ के दौरान शंखनाद करने और घंटी बजाने की परंपरा हजारों सालों से चली आ रही है।
ऐसी मान्यता है कि शंख, घंटी की ध्वनि से मन को शांति मिलती है, सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही वातावरण में मौजूद दूषित जीवाणु, कीटाणुओं का खात्मा होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित अजय शर्मा और मनोज शर्मा के अनुसार सनातन संस्कृति में पूजा पाठ, हवन, शुभ संस्कारों में शंखनाद किया जाता है। अब वैज्ञानिकों ने भी मान लिया है कि शंख की ध्वनि से कीटाणु खत्म होते हैं और वातावरण पवित्र होता है। दैनिक पूजा-पाठ एवं कर्मकांड अनुष्ठानों के आरंभ में तथा अंत में शंख का नाद किया जाता है। इसकी ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
शंख बजाने के वैज्ञानिक लाभ :
0 इसे बजाने से सांस की बीमारियों से छुटकारा मिलता है। शंख बजाने से पूरक, कुंभक और प्राणायाम एक ही साथ हो जाते हैं। 0 घातक बीमारी हृदयाघात, उच्च रक्तचाप, सांस से संबंधित रोग, खांसी, दमा, दिल की बीमारी में लाभ होता है। 0 प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं हो सकते। 0 शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का भी व्यायाम हो जाता है।