सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा, किस कानून के तहत लगाए पोस्टर
नई दिल्ली। नागरिकता कानून के विरोध में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुई हिंसा के बाद योगी सरकार द्वारा हिंसा करने वाले आरोपियों के पोस्टर लगा दिए गए थे। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जिस पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यूपी सरकार की इस कार्रवाई पर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार की कार्रवाई कानूनन सही नहीं है। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि जनता और सरकार में फर्क है। बता दें कि यूपी में हिंसा के दौरान उपद्रवियों ने सरकारी संपत्ति को जमकर नुकसान पहुंचाया था। उनसे नुकसान की भरपाई करने के लिए यूपी सरकार ने आरोपियों की पहचान करने उनकी तस्वीरें लगा दीं थी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध बोस द्वारा सुनवाई की गई। इस दौरान उन्होंने सरकार द्वारा पोस्टर लगाए जाने पर नाराजगी जताई और कहा कि यह कार्रवाई कानूनन सही नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर किसी खास संगठन के लोग शामिल हों तो अलग बात है लेकिन आम आदमी की ऐसी तस्वीरें लगाने के पीछे क्या तर्क है? कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि आखिर किस कानून के तहत पोस्टर लगाए गए?
बता दें कि इसके पूर्व हाईकोर्ट द्वारा इस मामले पर सुनवाई की गई थी और कोर्ट ने यूपी सरकार को पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। यूपी सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की। उन्होंने कहा कि सरकार ने दोषियों को मुआवजा चुकाने के लिए 30 दिन का वक्त दिया उसके बाद भी उन्होंंने ऐसा नहीं किया। पोस्टर हटाना बड़ी बात नहीं है लेकिन यह विषय बड़ा है।
CAA के खिलाफ देशभर में हुए प्रदर्शनों का असर यूपी में भी पड़ा था। राज्य के कई शहरों में इस दौरान हिंसा भड़क उठी थी। उपद्रवियों ने जमकर सरकारी और निजी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया था। बाद में योगी सरकार ने उपद्रवियों से ही नुकसान की वसूली करने का निर्णय लिया था। पुलिस ने आरोपियों की शिनाख्त कर उनके नाम से वसूली के लैटर भी जारी किए थे। इसी कड़ी में उपद्रवियों के पोस्टर्स भी लगाए गए थे।