9 साल और ऐसी सफलता… क्या लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए हैं पीएम मोदी?
नई दिल्ली। चार राज्यों के चुनाव नतीजों के बाद हर जगह मोदी-मोदी की गूंज सुनाई पड़ रही है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की है और तेलंगाना में उसका प्रदर्शन बेहतर हुआ है। नतीजों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित किया और उसकी अगली सुबह संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार पीएम मोदी ने कहा कि राजनीतिक गर्मी बड़ी तेजी से बढ़ रही है। राज्यों के जो नतीजे सामने आए हैं उससे तो एक बात तय हो गई है कि जब अगली गर्मी में आम चुनाव होंगे तब विपक्ष को पीएम मोदी के सामने चुनौती पेश करने के लिए कहीं अधिक पसीना बहाना पड़ेगा। राज्यों के नतीजों पर यदि बारीकी से गौर किया जाए तो ऐसा लगता है कि कई चीजें ऐसी हुई हैं जो पहले नहीं देखने को मिलीं। चुनाव पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा गया और ‘मोदी की गारंटी’ का असर सबसे अधिक देखने को मिला। मोदी की गारंटी इस चुनाव में विपक्ष के फ्री वादे पर भारी पड़ती हुई दिखाई दी। ऐसे में सवाल है कि क्या पीएम मोदी अपने लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच गए हैं।
एक हार से क्या होता है… विपक्ष को समझनी होगी ये बात
नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने से पहले बीजेपी सिर्फ सात राज्यों में सत्ता संभाल रही थी और मार्च 2018 आते-आते 21 राज्यों में वह सरकार बनाने में कामयाब होती है। हालांकि इसके बाद कुछ राज्यों में उसके हाथ से सत्ता चली भी जाती है। 2019 के आम चुनावों के बाद कुछ ही महीनों के भीतर राज्यों के जो विधानसभा चुनाव हुए उसमें पार्टी का पहले जैसा प्रदर्शन नहीं था। इसके बाद के वर्षों में कुछ राज्यों में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर तो वहीं कुछ राज्यों में प्रदर्शन ठीक नहीं रहा। इन सबके बीच इसी साल कर्नाटक का चुनाव आता है और मई महीने में जो नतीजे सामने आते हैं उसमें बीजेपी की हार होती है। इस हार के साथ ही कई सवाल उठाए जाते है। कर्नाटक चुनाव की चर्चा इसलिए भी अधिक हुई क्योंकि इसके बाद पांच राज्यों के चुनाव होने वाले थे और फिर लोकसभा का चुनाव। कर्नाटक चुनाव के बाद विपक्षी दल एकजुट होने की कोशिश करते हैं और I.N.D.I.A गठबंधन की रफ्तार थोड़ी तेज होती है। विपक्ष पीएम मोदी पर हमलावर होता है और यह बात कही जाने लगी जाती है कि I.N.D.I.A से पीएम मोदी डर गए। हालांकि जब 3 दिसंबर को नतीजे आए तब उसी I.N.D.I.A गठबंधन पर सबसे बड़ा सवालिया निशान लग गया।
निराश होने की जरूरत नहीं… विपक्ष को भी मोदी ने दे दी सलाह
जीत के अगले दिन और शीतकालीन सत्र के पहले दिन पीएम मोदी ने कहा कि चुनाव नतीजे के आधार पर कहूं तो विपक्ष में जो बैठे हुए साथी हैं उनके लिए यह स्वर्णिम अवसर है। इस सत्र में पराजय का गुस्सा निकालने की योजना बनाने के बजाय, इस पराजय से सीखकर, पिछले 9 साल में चलाई गई नकारात्मकता की प्रवृत्ति को छोड़कर, इस सत्र में अगर सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ेंगे तो देश उनकी तरफ देखने का दृष्टिकोण बदलेगा। इस इसलाह में तंज भी हो सकता है लेकिन इससे यह भी समझना होगा कि विपक्ष आज कहां खड़ा है। क्या उसका मनोबल इस कदर गिर गया है। मोदी ने कहा कि वे विपक्ष में हैं फिर भी वह सुझाव दे रहे हैं कि सकारात्मक सोच के साथ ही हर किसी का भविष्य उज्जवल है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि निराश होने की जरूरत नहीं है। मोदी ने कहा कि वह अपने लंबे अनुभव के आधार पर कह रहे हैं कि विपक्ष के साथियों को अपना रुख बदलना चाहिए और और विरोध के लिए विरोध का तरीका छोड़ना चाहिए। पीएम मोदी की लोकप्रियता का अंदाजा विपक्षी दलों को भी है और कई नेता भले ही कैमरे के सामने यह बात नहीं कहते लेकिन उनका मानना है कि उनके दल और बीजेपी के अंतर के बीच बड़े फासले की वजह मोदी हैं।
गुजरात तो समझ आता है लेकिन इस सफलता को क्या कहेंगे
गुजरात को लेकर यह कहा जाता है कि पीएम मोदी का चेहरा ही यहां काफी है। पिछले चुनाव में जब बीजेपी के प्रदर्शन को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे तब यह बात सामने आई कि पब्लिक वहां सिर्फ एक चेहरे को देख रही है। वह हैं मोदी। गुजरात और मोदी का कनेक्शन समझ आता है लेकिन एक साथ तीन राज्यों में मोदी की गारंटी का जादू चला। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ने यह दिखा दिया। मोदी की गारंटी के साथ टिकटों का वितरण होता है, चुनाव प्रचार होता है और जीत पर मुहर भी लगती है। मोदी के नाम पर पहले भी कई राज्यों में बीजेपी को जीत मिली है लेकिन इन तीन राज्यों की जीत पूर्व की जीत से कई मायनों में अलग है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की जीत तो और भी खास है। 9 साल बीजेपी बेमिसाल यदि यह बात पार्टी की ओर से कही जा रही है तो इसमें दम नजर आता है। इस चुनाव में कांग्रेस की बात की जाए तो उसके हाथ से दो राज्यों की सत्ता चली जाती है और उसे उम्मीद थी कि मध्य प्रदेश में उसकी सत्ता में वापसी होगी लेकिन ऐसा होता नहीं दिखा। तेलंगाना की एक जीत उसके खाते में आई है।
फ्री के वादे से काम नहीं…कांग्रेस को सोचने की जरूरत
कांग्रेस को तेलंगाना में जीत मिली है। उसके लिए यह थोड़ी ही राहत की बात है क्योंकि नतीजों के बाद I.N.D.I.A के साथियों की ओर से उस पर जो हमले हुए हैं उससे एक राज्य की जीत के भी मजे को किरकिरा कर दिया है। I.N.D.I.A में शामिल दलों को यह समझने की जरूरत है कि कि वह अभी भी बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में नहीं टिक सकती है। तीन राज्यों में बीजेपी की जीत से इस गठबंधन के भविष्य और कांग्रेस पार्टी के कद पर असर पड़ना तय माना जा रहा है। भाजपा का मुकाबला करने के लिए मुफ्त सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस का यह विचार कि मुफ्त सुविधाएं ही बीजेपी के हिंदुत्व-राष्ट्रवाद का एकमात्र उपाय नहीं है। कांग्रेस को मोदी के लिए एक वास्तविक योजना बनानी होगी।
2024 से पहले विपक्ष के सामने बड़ा सवाल
नरेंद्र मोदी पर न तो भ्रष्टाचार के आरोप टिकते हैं और न ही व्यक्तिगत हमले। राफेल और फिर अडानी… इन दो मुद्दों को लेकर राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर खूब हमला बोला लेकिन उसका क्या नतीजा निकला। हाल ही में पनौती शब्द का सहारा लेने की कोशिश की गई। राहुल गांधी ने मोहब्बत की दुकान बनाम नफरत का बाजार की अवधारणा पर चलने की कोशिश की, इसे उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान गढ़ा और इसमें कुछ राजनीतिक रस भी था। लेकिन उसे भी भुला दिया गया। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में वसुंधरा, शिवराज और रमन सिंह जैसे नेता थे लेकिन एक सामूहिक नेतृत्व और मोदी की गारंटी के साथ बीजेपी आगे बढ़ी और इसमें वह कामयाब रही। पीएम मोदी ने यह बता दिया है कि वह सफलता के कितने ही शिखर पर क्यों नहीं हों लेकिन जमीनी लगाव और लगातार मेहनत से पीछे नहीं हट सकते। इसमें संदेश केसीआर के लिए भी है जो तेलंगाना से भारत की ओर बढ़े थे। नाम बदलने से चीजें नहीं बदलती हैं।