December 24, 2024

देश भर में शराब बिक्री को मंजूरी : लॉकडाउन, अर्थव्यवस्था और परिवारों पर असर

sharab

रायपुर।  देश भर में लॉकडाउन के कारण उपजी आर्थिक मंदी से कई सेक्टर पीड़ित हैं। वज्रपात की तरह कोरोना के अचानक हमले ने लोगों के जीवन और देश की अर्थव्यवस्था को रोक कर रख दिया है। सभी औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों की गतिविधियों से सरकार को राजस्व की हानि हो रही है। 

कोरोना के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रही केंद्र सरकार से सभी राज्यों को आर्थिक प्रोत्साहन देने की मांग की गई।  इन मांगों को अनसुना करने वाली केंद्र सरकार ने हाल ही में कुछ शर्तों के साथ शराब की दुकानें खोलने की अनुमति दी है। इतना ही नहीं अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी शराब बिक्री में रोक लगाने वाली याचिका को ख़ारिज कर दिया और राज्य सरकारों को सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए ऑन लाइन बिक्री या होम डिलीवरी पर विचार करने के लिए कहा हैं। 

बता दें कि करीब डेढ़ महीने से शराब की दुकानों के बंद होने की वजह से राज्यों को करीब 30,000 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ है। 

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और कर्नाटक सरकार को 20 प्रतिशत से अधिक और पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और तेलंगाना के बजट की 15-20 प्रतिशत आमदनी शुल्क इसी से प्राप्त होती है। 

केंद्र की तुलना में, राज्य डेढ़ गुना अधिक वित्तीय बोझ झेल रहे हैं और राज्यों के पर केंद्र के मुकाबले पांच गुना अधिक कर्मचारियों का भार है।  दशकों से शराब से मिलने वाला राजस्व राज्यों के बजट का एक प्रमुख घटक रहा है। 

केंद्र से किसी भी वित्तीय सहायता न मिलने के अभाव में, राज्यों ने शराब की दुकानें खोलने के अवसर को उत्सुकता से स्वीकार कर लिया है। 

कुछ राज्यों ने घाटे की भरपाई के लिए इस अवसर का फायदा उठाते हुए शराब की लिखित कीमत पर शुल्का बढ़ा दिया।  दिल्ली में 70 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 75 प्रतिशत, तेलंगाना में 16 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में शराब की मौजूदा दरों में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शराब खरीदारों की लंबी-लंबी कतार के साथ रिकॉर्ड बिक्री के मद्देनजर, शराब उद्योग मांग कर रहे हैं कि डिस्टिलरीज को बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए काम करने की अवधि बढ़ा दी जाए.
इस बीच नागरिक समाज के सवालों का जवाब कौन देगा कि 40 दिनों के तालाबंदी के दौरान हासिल किए गए सभी सकारात्मक परिणाम क्यों बर्बाद हुए हैं?

कठोर वास्तविकता यह है कि कोरोना अब तक एक लाइलाज महामारी है, लेकिन देश में लगभग 16 करोड़ लोगों की शराब की लत समान रूप से उन लाखों परिवारों के लिए एक महामारी की तरह है जो उसे झेल रहे हैं। 

सितंबर 2018 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि भारत में शराब की वजह से सालाना 2, 60,000 लोगों की असमय मौत हो जाती है। 

हर दिन औसतन 712 मौत का कारण बनने वली शराब, सरकारों को हर दिन 700 करोड़ रुपये का योगदान दे रही है, जबकि चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि शराब के सेवन से लगभग 230 बीमारियां होती हैं। समाजशास्त्री चिंतित हैं कि इस शराब की महामारी के कारण कई परिवार और बच्चे शांति और खुशी से वंचित हैं। 

देशभर में एक्साइज आय, जो 2004-05 में 22,000 करोड़ रुपये थी, इसमें काफी समय पहले ही 10 गुना से ज्यादा बढ़त देखने को मिली। 

शराब ने सामाजिक तबाही से दुख को कई गुना कर दिया है, अनगिनत बच्चें अनाथ हुए हैं, युवा महिलाएं विधवा हुईं हैं और लोगों की असामयिक मृत्यु हुई है।  जिसकी भरपाई किसी पैसै से नहीं की जा सकती है। तालाबंदी के दौरान प्रकृति के सभी पांच तत्व शुद्ध हो गए, और लाखों परिवारों ने राहत की सांस ली।  शराब मिलने के सभी रास्ते बंद होने की वजह से लोग घर में बंद रहे और इस दौरान उन्होने अपने स्वास्थ्य और जीवन शैली में सुधार किया। 

शराब की दुकानें खुलने के साथ, शराब के लती लोगों ने भौतिक दूरी के मानदंडों को हवा में उड़ा दिया है।  जबकि डॉक्टर बार-बार आगाह कर रहे हैं कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह और सह-रुग्णता जैसी पुरानी बीमारियों वाले लोगों को कोरोना से बहुत खतरा है, तो शराब की अनुमति देने का यह निर्णय क्यों, जिससे इस गंभीर समय में केवल महामारी को फैलने में मदद मिलेगी। शराब की दुकानें खोलने का फैसला लॉकडाउन के बीच में घातक साबित हो सकता है। 

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